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आमवात रोग पर जीवनशैली से पाएं काबू

यदि शरीर में भोजन का पाचन लंबे समय तक सही व पूर्ण न हो तो विकार पैदा होकर जोड़ों में रमकर असहनीय पीड़ा उत्पन्न करता है। इसे आमवात कहते हैं। साथ-साथ बुखार, बदन दर्द, सूजन, पसीना अधिक आना व कॉन्स्टिपेशन...
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यदि शरीर में भोजन का पाचन लंबे समय तक सही व पूर्ण न हो तो विकार पैदा होकर जोड़ों में रमकर असहनीय पीड़ा उत्पन्न करता है। इसे आमवात कहते हैं। साथ-साथ बुखार, बदन दर्द, सूजन, पसीना अधिक आना व कॉन्स्टिपेशन जैसे इसके लक्षण रयूमेटायड आर्थराइटिस रोग से मिलते हैं। औषध चिकित्सा के अलावा उपवास व सेक इसमें कारगर हैं।

प्रो. अनूप कुमार गक्खड़

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यदि जठराग्नि की शक्ति कम हो तो आहार रस का अवशेष पाचन के अंत में बिना पचा रह जाता है तो इसे आम कहा जाता है और यह शरीर की सन्धियों में जाकर संचित हो जाता है और इससे जोड़ों में दर्द होता है। सूजन का बना रहना और सुबह उठने पर इनका बढ़ जाना- यह व्यक्ति के आमवात रोग से पीड़ित होने की सम्भावना को दर्शाता है। इसमें बिच्छू के डंक के समान पीड़ा होती है। दर्द के साथ-साथ बुखार, पूरे बदन में दर्द, पसीने का अधिक आना, कब्ज की शिकायत रहना जैसे लक्षण मिलते हैं। यह रोग प्रायः प्रौढ़ावस्था में होता है, लेकिन खानपान व रहन-सहन के गलत तरीकों के कारण छोटी उम्र में भी लोग इसके शिकार बन जाते हैं। इस रोग में भोजन में रुचि नहीं होती, प्यास अधिक लगती है। सुस्ती पड़ी रहती है, शरीर में भारीपन रहता है, भोजन ठीक से नहीं पचता है। इस प्रकार के लक्षण प्रायः र‍्यूमेटायड आर्थराइटिस के लक्षणों के साथ भी मिलते हैं।

पुराना होने पर कष्टसाध्य

रोग की शुरुआत प्रायः मध्यम अंगुली से होती है और धीरे-धीरे अन्य अंगुलियों की ओर फैलती है और उचित चिकित्सा व पथ्य-अपथ्य का पालन न करने से यह अन्य सन्धियों में फैल जाता है। रोग की प्रारम्भिक अवस्था में शरीर के अंगों में कोई विकृति महसूस नहीं होती। धीरे-धीरे सन्धियां विकृत हो जाती है। रोग के बढ़ने पर मुख में विरसता हो जाती है। उत्साह हीनता व रात्रि में निद्रानाश होता है। बाद में शरीर अकर्मण्य हो जाता है। ऐसे समय चिकित्सा कठिन हो जाती है।

कारण

मन्दाग्नि के कारण विरुद्ध आहार-विहार करना, चिकनाई युक्त भोजन अधिक मात्रा में करना, भोजन के बाद व्यायाम करना, भोजन पकाने वाली अग्नि मन्द होना -इन कारणों से खाया हुआ भोजन ठीक प्रकार से पचता नहीं है।

कैसे रोकें

आमवात के रोगियों को दही, मछली, उड़द,गुड़, भैंस का दूध, अधिक पिसा हुआ अन्न, केला, तला हुआ बासी भोजन, दूषित जल, देरी से पचने वाला भोजन, रात को जागना, पूर्वी हवा का सेवन व अनियमित दिनचर्या से बचना चाहिए। वहीं मल-मूत्र के वेग को रोकना नहीं चाहिए।

उपवास चिकित्सा का प्रथम सोपान

आमवात के रोगियों के लिए उपवास चिकित्सा की प्रथम सीढ़ी है। इसको चिकित्सकीय निर्देशन में चार दिनों में विभाजित करके सम्पन्न किया जा सकता है। प्रथम दिन प्यास लगने पर केवल उष्ण जल का प्रयोग करना चाहिए। दूसरे दिन मूंग की दाल का पानी दो बार पीना चाहिए। तीसरे दिन भूख लगने पर केवल मूंग की दाल और चौथे दिन मूंग की दाल की खिचड़ी दिन में दो बार लेनी चाहिए। रात को सोते समय एरण्ड तैल का प्रयोग करने से शरीर में संचित आम काफी कम हो जाता है। उसके बाद औषधि का सेवन करना चाहिए।

शीतल जल पीने से बचें

आमवात के रोगियों को ठण्डे पानी से परहेज करना चाहिए। पीने के लिए केवल उष्ण जल का ही प्रयोग करे। प्यास लगने पर पिप्पली और सोंठ उबाल कर जल पिएं।

सेक है उत्तम उपाय

सेक करना इस रोग की उत्तम चिकित्सा है और इसमें रूक्ष स्वेद हितकर होता है। इसमें रेत को गर्म कर पोटली में बांध कर सम्बन्धित स्थान पर सेक करने से लाभ होता हैं। रेत के स्थान पर नमक का भी प्रयोग किया जाता है।

इनका सेवन हितकर

कुलथ की दाल, मूंग,सहजन, बथुआ, करेला, परवल, एरंड तैल, लहसुन, शहद,छाछ,अदरक, सोंठ, तक्र व कांजी, पुराने चावल, शालि चावल, करेला,बैंगन, सहजिन की फली,गोमूत्र,अदरक और वो द्रव्य जो जठराग्नि को प्रदीप्त करते हैं उन सबका प्रयोग आमवात में श्रेष्ठ फलदायी होता है। कुलत्थ,मटर और चने का सूप आमवात के रोगी के लिए वरदान है। एरण्ड तैल सेवन करें।

उपचार के लिए नुस्खे

हरड़, सोंठ और अजवायन- इन तीनों का चूर्ण बनाकर रख लें और तीन से पांच ग्राम तक की मात्रा में प्रातः-सायं गरम पानी के साथ लेने से आमवात में लाभ होता है। सोंठ़ और गुड़ूची का क्वाथ नियमित रूप से सेवन करने पर पुराने आमवात में आशातीत लाभ होता है। एरण्ड के बीजों का छिलका निकाल कर उनको दूध में डालकर पकाकर प्रयोग करने से आमवात में लाभ होता है। लहसुन और सोंठ का क्वाथ तीव्र वातशामक होता है। त्रिफला क्वाथ को एरण्ड तैल के साथ लेने से आमवात में लाभ होता है। आमवात के रोगी को कब्ज नहीं रहे, इसके लिए हरीतकी चूर्ण का प्रयोग करें। हरीतकी चूर्ण एरण्ड तैल के साथ भी लाभ देता हैं। इस रोग को जीवनशैली संयमित रखकर नियन्त्रित किया जा सकता है।

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