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त्रेता की पहली दीपावली सा अयोध्या का दीपपर्व

उमेश चतुर्वेदी त्रेता युग में लंका विजय के बाद अपने राम को देख अयोध्या निहाल हो गई थी। चौदह वर्ष के वनवास के बाद सरयू के तीर पर श्री राम के स्वागत में अयोध्या ने खुद को प्रकाशमान करने की...
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उमेश चतुर्वेदी

त्रेता युग में लंका विजय के बाद अपने राम को देख अयोध्या निहाल हो गई थी। चौदह वर्ष के वनवास के बाद सरयू के तीर पर श्री राम के स्वागत में अयोध्या ने खुद को प्रकाशमान करने की जो परंपरा डाली, आज पूरी दुनिया उसे दीपावली के नाम से जानती है। अयोध्या की इस बार की दीपावली त्रेता युग की पहली दीपावली जैसी ही है। अयोध्या के पावन मंदिर में रामलला की स्थापना के बाद दीपों का पहला त्योहार आया है। राम की वापसी के बाद अयोध्या इस बार त्रेता युग की ही तरह निहाल होने जा रही है। सरयू के तीर पर स्थित पचपन घाटों पर 28 लाख से ज्यादा दीपों के जरिये अयोध्या अपने राम का स्वागत करने जा रही है।

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28 लाख दीपों से नया कीर्तिमान

दावा है कि यह दीपोत्सव दुनिया में नया कीर्तिमान बनाने जा रहा है। यूं तो कई साल से हर दीपावली को अयोध्या के घाट दीपों से सजाए जा रहे हैं। ऐसे दीपोत्सवों का इस दिवाली पर आठवां संस्करण है। जिसके प्रबंधन का दायित्व अयोध्या के डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय की कुलपति प्रतिभा गोयल को दिया गया है। जो 30 हजार वालंटियर्स के सहयोग से 28 लाख से अधिक दीयों को प्रज्वलित करने की तैयारी में हैं। दीपोत्सव के रिकॉर्ड को जांचने के लिए अयोध्या में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड की टीम पहुंच चुकी है।

खास ध्यान ताकि तेल बाहर न छलके

दीपों के जलाते वक्त तेल बाहर न गिरे व घाट पर भी न गिरे, इसका ध्यान रखने के लिए वालंटियरों को कहा गया है। वहीं 30 अक्तूबर के दिन दीपोत्सव के दीयों में तेल डालने के लिए एक-एक लीटर के सरसों तेल की बोतलें दी जा रही हैं। हर दीप में सावधानीपूर्वक तेल डालने के लिए विशेष तौर पर निर्देश दिए गए हैं।

जगह-जगह खिलेगी रोशनी

त्रेता युग में राम के स्वागत में पूरी अयोध्या दीपों से जगमगा उठी थी। इसके बाद से ही हर साल कार्तिक महीने की अमावस्या को पूरा सनातन समाज, अपने घर, झोपड़ियां, ठीये, पशुओं की नाद, कुएं के चबूतरे, तुलसी के चबूतरे व मंदिरों के द्वार राम के स्वागत में दीपों से सजाता रहा है। सनातन समाज की हर गली, हर हर रास्ता, हर अंधियारा कोना इस दिन प्रकाश की रेखाओं से जैसे खिल उठता है। इस परंपरा में समूची अयोध्या भी इस दीपावली को इसी अंदाज में सजेगी, लेकिन सरयू के 55 घाट अलग ही अंदाज में नजर आएंगे। सरयू के घाट इस बार 28 लाख दीयों के साथ अलग ढंग से सज रहे हैं, जिनसे उठी रोशनियों की लंबी लकीरें सरयू की लहरों में अप्रतिम दृश्य वितान यानी शामियाना रचने जा रही हैं।

स्वास्तिक से भव्यता का सार्वभौमिक संदेश

दीपोत्सव की भव्यता विश्व पटल पर दिखे, इसके लिए सरयू नदी के दसवें नंबर के घाट पर 80 हजार दीयों के जरिये स्वास्तिक बनाया गया है। इसके जरिये दीपोत्सव की टीम पूरी दुनिया को रोशनी युक्त शुभ्रता का संदेश देने की कोशिश कर रही है। माना जा रहा है कि दीपोत्सव में यह दृश्य अद्भुत आकर्षण का केन्द्र होगा।

मेगा दीपोत्सव की व्यवस्था

अयोध्या में हजारों वालंटियर्स द्वारा सरयू के घाटों को दीयों के 16×16 के ब्लाकों से सजाया जा रहा है यानी ब्लॉक में 256 दीए हैं। एक वालंटियर का 85 से 90 दीए प्रज्वलित करने का लक्ष्य निर्धारित है। दीपोत्सव नोडल अधिकारी प्रो. संत शरण मिश्र के मुताबिक, जिला प्रशासन इस अनूठे दीपोत्सव के लिए हर संभव सहयोग दे रहा है। घाटों पर दीयों की सुरक्षा पुलिस प्रशासन व विश्वविद्यालय के सुरक्षा कर्मियों द्वारा की जा रही है।

शांति-प्रगति के प्रतीक दीये

यह सच है कि रोशनी के महत्व को हम तभी समझ पाते हैं, जब हमारे सामने गहन अंधकार होता है। बेशक अपना देश युद्ध से बचा हुआ है। लेकिन इस्राइल-फिलीस्तीन के साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध की आंच में दुनिया झुलस रही है। इसकी किंचित आंच भारत और भारतीयों तक भी पहुंच रही है। त्रेता युग में राम ने रावण वध और लंका विजय के जरिये संदेश दिया था कि शांति ही दुनिया और मानव जीवन की प्रगति का आधार है। रामलला के अपने पावन घर में आ विराजने के बाद की पहली दीपावली सिर्फ दीयों की संख्या के आधार पर ही रिकॉर्ड नहीं बनाने जा रही, बल्कि वह दुनिया को एक संदेश भी देने जा रही है। संदेश यह कि रोशनियों के सामने अंधेरे को हारना ही होता है। अयोध्या की यह दीपावली दुनिया को यह भी संदेश दे रही है कि युद्ध के अंधेरे से उसे निकलना ही होगा और मानव जीवन की प्रगति के लिए रोशनियों की लहरों पर ही सवार होना होगा।

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