रजनी अरोड़ा
सर्दी के मौसम में तापमान में होने वाली गिरावट, खुष्क और बर्फीली हवाओं से हाथ-पैर ठंडे होना आम बात है। लेकिन कुछ लोगों के हाथ-पैर की उंगलियां ठंड के मारे सफेद, नीली या लाल पड़ जाती हैं। उनमें दर्द रहता है और यहां तक कि उंगलियों के पोरों पर नाखूनों के नीचे की स्किन पर घाव हो जाते हैं और उनमें से ब्लड भी आने लगता है। मेडिकल टर्म में ऐसी स्थिति को रेनॉड्स डिज़ीज़ कहा जाता है जो मूलतः ब्लड सर्कुलेशन का विकार है। दरअसल यह कोई गंभीर बीमारी नहीं है। ध्यान रखने पर इसका उपचार आसानी से किया जा सकता है। आंकड़ों के हिसाब से रेनॉड्स के कुल मरीजों में 80 प्रतिशत महिलाएं होती हैं। मौटे तौर पर रेनॉड्स को दो स्टेज में बांटा जा सकता है।
रेनॉड्स डिजीज
40 साल से कम उम्र के लोगों में रेनॉड्स डिजीज की प्राइमरी स्टेज मिलती है। ठंड की वजह से शरीर के टेम्परेचर में गिरावट आने लगती है। ब्लड आर्टिरीज ब्लॉक हो जाने से उंगलियों तक शुद्ध ऑक्सीजन और ब्लड की सप्लाई में रुकावट आती है। उंगलियों की स्किन का रंग पहले सफेद, फिर धीरे-धीरे नीला पड़ने लगता है। ठंड से बचाने के लिए किए गए उपायों के बाद रिकवरी फेज़ में ये लाल रंग के हो जाते हैं। इनमें हल्की-हल्की सूजन और दर्द की शिकायत भी होती है। रेनॉड्स डिजीज का असर कान के सिरे या ईयरलूप्स और नाक जैसे सॉफ्ट टिशूज पर भी पड़ता है।
उपचार
आमतौर पर रेनॉड्स डिजीज की प्राइमरी स्टेज में ज्यादा नुकसान नहीं होता। ठंड से गर्म माहौल में जाने पर स्वास्थ्य लाभ ज्यादा मिलता है।
रेनॉड्स फिनोमिना
यह सेकेंडरी स्टेज है जो 40 साल की उम्र से बड़े लोगों को होती है। कई बार प्राइमरी स्टेज के मरीज इमोशनल स्ट्रेस के कारण कैफीन-निकोटिन एल्कोहल जैसी चीजों का आधिक सेवन करने लगते हैं। जिससे यह मामूली-सी डिजीज रेनॉड्स फिनोमिना में बदल जाती है। ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, अर्थराइटिस, रूमैटिक्स जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीज़ इसकी चपेट में ज्यादा आते हैं।
सेकेंडरी स्टेज में मरीज को हाथों में अल्सर, गेन्ग्रीन की स्थिति आ जाती है। ज्यादा समय तक ब्लड सर्कुलेशन बाधित होने से हाथ-पैर की स्किन डेड होने लगती हैै, बहुत सख्त होकर जगह-जगह से कटने लगती है, नाखूनों के नीचे की स्किन से खून निकलने लगता है, उंगलियों में झनझनाहट सी महसूस होती है, सूनापन आ जाता है यानी ठंडे-गर्म का अहसास नहीं रहता।
उपचार
मरीज को ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने वाली मेडिसिन दी जाती हैं। हालात में सुधार न आने पर मरीज़ की प्रभावित उंगलियों की सिम्पैनेक्टोमी सर्जरी की जाती है। सिम्पैनेक्टोमी नर्व जो दूसरी आर्टिरीज़ को सिकोड़ती है, उसमें छोटा-सा चीरा लगाया जाता है। इससे ब्लड सर्कुलेशन ठीक हो जाता है और रेनॉड्स फिनोमिना का खतरा टल जाता है।
बचाव और रोकथाम
शरीर में ब्लड सर्कुलेशन और गर्माहट बढ़ाना ज़रूरी है। इसके लिए कुछ तरीकों पर अमल किया जा सकता है। एक तो जहां तक हो सके ठंडे पानी में हाथ डालने, फ्रिज में से सामान निकालने से बचें। काम करते हुए रबड़ के ग्लव्स पहनें। इसके अलावा बार-बार डिटर्जेन्ट से हाथ न धोएं। स्किन सॉफ्ट रखने के लिए मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल करें। ठंडे हाथ-पैर गर्म करने के लिए आपस में रगड़ें। गुनगुने पानी में हाथ डुबो कर गर्म करें।
यह भी ध्यान रहे कि नियमित रूप से ऑलिव, नारियल या सीसम ऑयल से मसाज करें। अगर ऐसा न हो पाए तो फिर मॉइश्चराइजर से मालिश कर ग्लव्स या जुराबें पहन लें। इससे ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहेगा और हाथों में गर्माहट बनी रहेगी। साथ ही नियमित रूप से योग और व्यायाम करें। इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी नहीं होगी। उंगलियों में झनझनाहट महसूस हो, तो ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने के लिए दाएं-बाएं घुमाएं। अपने हाथों को चारों ओर घुमाएं, एक स्थान पर खड़े होकर दौड़ें। गर्म तासीर वाली चीजें खाएं। ड्राई फ्रूट्स, अलसी, तिल, चिया जैसे सीड्स सिर्फ शरीर को गर्म रखते हैं, बल्कि इनमें पाए जाने वाले पोषक तत्व लंबे समय तक के लिए इम्यूनिटी को मजबूत बनाते हैं। अपने आहार में पालक, बादाम, मछली, ब्रोकली, कद्दू, गाजर, टमाटर जैसी विटामिन ई से भरपूर चीजों को शामिल करें। ये चीजें ब्लड सर्कुलेशन केा बढ़ाती हैं। हरी पत्तेदार सब्जि़यां अदरक, लहसुन, फलियां दालें, एवाकाडो, केला जैसी मैग्नीशियम से भरपूर चीजें ब्लड आर्टिरीज को बढ़ाती है अैार रेनॉड्स डिजीज के खतरे को कम करती हैं। आहार में ओमेेगा 3 फैटी एसिड, विटामिन बी, नियासिन से भरपूर मटर, मशरूम, एवाकेडो, चिकन, मछली लीवर, अंडे जैसे खाद्य पदार्थ फायदेमंद है। चाय-कॉफी, अल्कोहल जैसे पेय पदार्थों, धूम्रपान और तंबाकू निकोटिन वाली चीजों के बजाय गर्म तासीर वाले सूप, ब्रेवेरेज, हल्दी या केसर, बादाम, छुआरे वाला दूध जैसे ड्रिंक्स ज्यादा लें। ये सभी तरह के ड्रिंक्स शरीर को गर्माहट प्रदान करने के साथ-साथ इम्यूनिटी को बूस्ट भी करते हैं।
(डॉ. मोहसिन वली, सीनियर फिजिशियन, सर गंगा राम अस्पताल, नयी दिल्ली से बातचीत पर आधारित)