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पीड़ारहित प्राकृतिक उपचार देने का लक्ष्य

विश्व होम्योपैथी दिवस : 10 अप्रैल
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स्वास्थ्य की सौम्य और स्थायी बहाली व रोग का जड़मूल से खात्मा- इलाज के इसी आदर्श को ध्यान में रख डॉ. हैनिमैन ने होम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली की शुरुआत की। यह ‘समानता का नियम’ पर आधारित है कि कोई पदार्थ जो स्वस्थ व्यक्ति में बीमारी के लक्षण पैदा करता है, वह सूक्ष्म मात्रा में बीमार व्यक्ति के समान लक्षणों का उपचार करने में सक्षम है।

डॉ. मधुसूदन शर्मा

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अठारहवीं शताब्दी में डॉ. हैनीमैन ने न केवल एक नई चिकित्सा प्रणाली की नींव रखी, बल्कि मानवता को एक सुरक्षित, किफायती और समग्र चिकित्सा पद्धति भी प्रदान की। उनकी खोज पर आधारित चिकित्सा का समता का सिद्धांत - “सिमिलिया सिमिलीबस क्यूरेंटुर” है जिसका अर्थ है ‘समान से समान का उपचार’। होम्योपैथी की विशेषता है कि यह केवल रोग के लक्षणों को नहीं, बल्कि रोग के मूल कारण को दूर करने में विश्वास रखती है। यह पद्धति शरीर की प्राकृतिक उपचार क्षमता को प्रोत्साहित करके व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक व भावनात्मक स्वास्थ्य को संतुलित करती है। बता दें कि डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनिमैन का जन्म 10 अप्रैल 1755 को जर्मनी में हुआ था। उनके योगदान को याद करने के लिए इस दिन को विश्व होम्योपैथी दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे तीव्र बुद्धि के बालक थे। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने शिक्षा को प्राथमिकता दी। उनकी चिकित्सा यात्रा लीपज़िग विश्वविद्यालय से शुरू हुई। हैनिमैन ने 1779 में चिकित्सा विज्ञान की उन दिनों की सर्वश्रेष्ठ डिग्री एमडी उच्चतम अंक लेकर पास की।

हानिरहित तरीके से रोग का जड़मूल से खात्मा

हैनिमैन के समय में चिकित्सा पद्धति बहुत कष्टप्रद और अमानवीय थी। रोगियों का इलाज कठोर और असहनीय तरीकों से किया जाता था। बीमारी ठीक करने के लिए भारी मात्रा में दवाइयां दी जाती थीं। रक्त निकालना और जोंक लगाना भी इलाज का हिस्सा था। शल्य-क्रियाएं अक्सर जानलेवा साबित होती थीं। हैनिमैन उस समय की कष्टप्रद, अव्यवस्थित और आधारहीन चिकित्सा प्रणाली से असंतुष्ट थे। उनका मानना था कि इलाज का सर्वोच्च आदर्श होना चाहिए-स्वास्थ्य की तीव्र, सौम्य और स्थायी बहाली। साथ ही रोग का जड़मूल खात्मा करना। कम समय में, विश्वसनीय और हानिरहित तरीके से।

समानता का नियम है आधार

कालांतर लगातार चिंतन-मनन के पश्चात हैनिमैन ने एक कोमल और तर्कसंगत उपचार पद्धति की खोज की। उनकी क्रांतिकारी खोज तब हुई जब उन्होंने सिनकोना की छाल पर प्रयोग किया। जिससे ‘समानता का नियम’ विकसित हुआ- यह विचार कि कोई पदार्थ जो स्वस्थ व्यक्ति में बीमारी के लक्षण उत्पन्न करता है, वह सूक्ष्म मात्रा में बीमार व्यक्ति के समान लक्षणों का उपचार करने में सक्षम है। यह क्रांतिकारी अवधारणा और शक्तिकरण की प्रक्रिया होम्योपैथी का मूलभूत सिद्धांत बन गयी। उन्होंने तत्कालीन पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के बीच इस नई चिकित्सा प्रणाली होमियोपैथी का विकास किया उन्होंने पारंपरिक चिकित्सा मानकों को चुनौती दी और न्यूनतम खुराक पर जोर दिया।

पीड़ा रहित चिकित्सा

हैनिमैन की पहल को उनके समय के चिकित्सा समुदाय से भारी विरोध का सामना करना पड़ा। फिर भी, वैज्ञानिक दृष्टि और रोगी कल्याण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें अपनी खोज जारी रखने के लिए प्रेरित किया। उनकी प्रमुख कृति, ‘ऑर्गेनन ऑफ मेडिसिन’ में होम्योपैथी के सिद्धांतों को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया गया। हैनिमैन ने माना कि रोगी को उसके कष्टों से बिना दर्द के राहत मिलनी चाहिए। चूंकि बीमारी स्वयं एक पीड़ा है, इसलिए कठोर उपचार से रोगी की तकलीफ और बढ़ सकती है। महात्मा गांधी ने भी होम्योपैथी को ‘मानवता के लिए अहिंसक चिकित्सा’ का दर्जा दिया था। 30 अगस्त 1936 को, होम्योपैथी के साथ अनुभवों के बाद एक लेख में उन्होंने लिखा- ‘होम्योपैथी रोगियों के इलाज की नवीनतम और परिष्कृत पद्धति है, जो किफायती और अहिंसक है। इसे प्रोत्साहित और संरक्षित करना चाहिए। यह किसी भी अन्य उपचार पद्धति की तुलना में अधिक प्रतिशत मामलों में रोगों को ठीक करती है। यह अधिक सुरक्षित, किफायती और पूर्ण चिकित्सा विज्ञान है।’

इलाज की समग्र और सुरक्षित पद्धति

दरअसल, होम्योपैथी एक समग्र और सुरक्षित चिकित्सा पद्धति है जिसका मकसद रोग के मूल कारण तक पहुंचना और शरीर की प्राकृतिक उपचार क्षमता को सक्रिय करना। भविष्य में होम्योपैथी केवल उपचार तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि रोग प्रतिरोध में भी इसकी भूमिका बढ़ेगी। होम्योपैथिक दवाएं शरीर की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करती हैं, जिससे मौसमी संक्रमण, एलर्जी और संक्रामक रोगों से बचाव संभव है।

क्रॉनिक रोगों के उपचार में कारगर

आधुनिक जीवनशैली से उत्पन्न होने वाली क्रॉनिक बीमारियों जैसे—डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, माइग्रेन, आर्थराइटिस, त्वचा विकार और मानसिक तनाव के मामलों में होम्योपैथी एक प्रभावी विकल्प बन सकती है। यह पद्धति रोगी के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक पहलुओं को ध्यान में रखकर उपचार करती है। होम्योपैथी हर रोगी का व्यक्तिगत मूल्यांकन करती है। यह न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य में भी सहायक है। आने वाले समय में मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह एक भरोसेमंद चिकित्सा पद्धति होगी। यदि वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी विकास को प्रोत्साहन दिया जाए, तो होम्योपैथी वैश्विक स्वास्थ्य समाधान में एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है।

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