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ट्रंप का यू टर्न

टैरिफ युद्ध में भारत के लिए अवसर
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कहा जाता है कि जिद्द के पक्के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आमतौर पर अपने फैसलों से पीछे नहीं हटते हैं। यदि ऐसा कोई कदम उठाते हैं तो उसे असामान्य बात ही कहा जाएगा। लेकिन हाल ही में उनके उस फैसले ने सबको चौंकाया है जिसमें उन्होंने भारत और यूरोपीय संघ के सदस्यों समेत दुनिया के साठ देशों के खिलाफ घोषित ‘पारस्परिक टैरिफ’ को नब्बे दिनों को टालने की घोषणा की है। बहरहाल, उनके इस अप्रत्याशित फैसले ने वैश्विक बाजारों को राहत दी है। जो यह दर्शाता है कि अड़ियल माने जाने वाले डोनाल्ड ट्रंप प्रतिकूल वैश्विक प्रतिक्रिया और घरेलू स्तर पर लगातार तेज होती असंतोष की आवाज से पूरी तरह से बेखबर नहीं हैं। वहीं दूसरी ओर ट्रंप ने चीन के खिलाफ टैरिफ बढ़ाने की रफ्तार तेज कर दी है। अमेरिका ने चीनी उत्पादों पर लगाये जाने वाले कर की दर को बढ़ाकर एक सौ पच्चीस कर दिया है। ऐसा लगता है कि चतुर सुजान ट्रंप को इस बात का अहसास हो गया है कि दुनिया के बहुत सारे देशों को नाराज करने की तुलना में एक मुख्य प्रतिद्वंद्वी पर निशाना केंद्रित करना अधिक सुरक्षित और समझदारी से भरा फैसला होता है। दरअसल, टैरिफ वाॅर के बाद अमेरिका में शेयर बाजार जिस तेजी से ध्वस्त हुए हैं, उसके मद्देनजर उनके ‘अमेरिका ग्रेट अगेन’ के सपने को खतरा पैदा होने की आशंका पैदा हो गई है। तभी वह अपने टैरिफ थोपने के फैसले को कुछ दिनों के लिये आगे टाल रहे हैं। वैसे अभी भी यह अनुमान लगाना मुश्किल ही है कि उनकी यह नई समझदारी निरंतरता के साथ स्थायी होगी भी या नहीं। लेकिन अनिश्चय के दौर से गुजर रहे वैश्विक बाजार को कुछ समय के लिये राहत जरूर मिली है। जिसका असर दुनिया के शेयर बाजारों पर भी नजर आया है। जिससे मंदी की तरफ बढ़ रही दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं कुछ समय तक राहत की सांस ले सकती हैं।

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बहरहाल, भारत ने ट्रंप के द्वारा भारतीय उत्पादों पर लगाए गए टैरिफ का तत्काल जवाब न देकर सकारात्मक पहल की है। ऐसा लगता है कि भारत ने ट्रंप के टैरिफ पर आक्रामक रुख अपनाने के बजाय इंतजार करने का फैसला करके समझदारी भरा कदम उठाया है। हालांकि, इस फैसले को लेकर विपक्षी आलोचना के स्वर भी सुनाए देते रहे हैं। दरअसल, दांव पर दोनों देशों के बीच होने वाला द्विपक्षीय समझौता भी है, जिस पर नई दिल्ली और वाशिंगटन काम कर रहे हैं। भारत का लक्ष्य है कि दोनों देशों के बीच व्यापार को ढाई गुना बढ़ाना है। भारत ने चतुराई से असहज स्थितियां पैदा करने वाले कारकों को टाला है। बहरहाल, हाल में मिली राहत के बीच यह सुनिश्चित करने के लिये निरंतर बातचीत की आवश्यकता होगी कि भारत को लंबे समय तक भारी टैरिफ का बोझ न उठाना पड़े। साथ ही भारतीय हितधारकों को अधिक नुकसान से भी बचाया जाना चाहिए। वहीं चीन ने अमेरिका द्वारा टैरिफ थोपे जाने के खिलाफ अंत तक व्यापार युद्ध लड़ने की कसम खाई है। उसने मौजूदा परिस्थितियों में अमेरिका विरोधी मोर्चा बनाने के लिये यूरोपीय संघ और आसियान के देशों से संपर्क साधा है। ऐसा लगता है कि चीन को इस बात का अहसास हो चला है कि टैरिफ युद्ध में वह अकेला ही अमेरिका का मुकाबला करने में सक्षम नहीं हो सकेगा। दिलचस्प बात यह है कि चीन भारत को संकेत दे रहा है कि दो सबसे बड़े विकासशील देशों को मौजूदा कठिनाइयों को दूर करने के लिये एक साथ खड़ा होना चाहिए। हालांकि, भारत चीन के इस अवसरवाद को बखूबी समझता है। लेकिन एक मुश्किल बात यह है कि चीन और अमेरिका भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में शामिल हैं। लेकिन अतीत में चीन की भारत के खिलाफ जिस तरह की हरकतें रही हैं और जिस तरह वह दक्षिण एशिया में भारत की घेराबंदी कर रहा है, उसके मद्देनजर चीनी आकांक्षा के प्रति भारत को सतर्क प्रतिक्रिया देनी चाहिए। लगातार विषम होती परिस्थितियों के बीच भारत को अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिये बेहद सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए।

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