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अश्लीलता-अभद्रता की हद

सोशल मीडिया की जवाबदेही तय हो
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हाल के दिनों में सोशल मीडिया से जुड़े प्लेटफॉर्मों के कार्यक्रमों में स्वेच्छाचारिता और वर्जनाएं तोड़ने के अनगिनत मामले प्रकाश में आए हैं। जो भारतीय सामाजिक व पारिवारिक मूल्यों का अतिक्रमण करते हुए अराजक व्यवहार कर रहे हैं। पिछले दिनों संसद से लेकर सड़क तक यूट्यूब पर प्रसारित एक फूहड़ व अभद्र कार्यक्रम के खिलाफ कार्रवाई की मांग गूंजती रही, जिसमें अभद्रता से सामाजिक मर्यादा की सीमाएं लांघने की कुत्सित कोशिश हुई। पिछले दिनों कॉमेडियन समय रैना के यूट्यूब शो ‘इडियाज़ गॉट टैलेंट’ में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर व यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया ने एक अश्लील, अभद्र व अमर्यादित टिप्पणी की। इस बदमिजाज यूट्यूबर ने शो के एक प्रतिभागी के माता-पिता के अंतरंग पलों के बारे में घोर निंदाजनक प्रश्न किए। जैसा अपेक्षित था, भारतीय परिवार व सांस्कृतिक मूल्यों पर हमला करने वाली टिप्पणी पर देश में भारी विवाद हुआ। देश के विभिन्न भागों में इस मामले में शिकायतें दर्ज की गईं, और राष्ट्रीय महिला आयोग ने ऐसे कार्यक्रमों के नियमन की मांग करते हुए कार्रवाई की सिफारिश की। साथ ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने यूट्यूब से इस विवादित कार्यक्रम को हटाने के निर्देश दिए। देश के राजनीतिक क्षेत्रों में भी इस विवाद को लेकर तीखी टिप्पणियां सामने आईं। इस विवाद ने देश में इस बहस को एक बार फिर तेज किया कि सामाजिक मूल्यों को लेकर अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा के निर्धारण और डिजिटल कंटेंट निर्माताओं की जवाबदेही कैसे तय की जाए। साथ ही रचनात्मक अभिव्यक्ति तथा सार्वजनिक शिष्टाचार में सामंजस्य कैसे बनाया जाए।

दरअसल, सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर लाइक और फॉलोअर्स बढ़ाने के लिये तमाम फूहड़ व तल्खीभरे कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाता है, ताकि इससे यूट्यूबरों की आय बढ़ सके। बदलते वक्त की विडंबना यह है कि धीर-गंभीर व उपयोगी कार्यक्रमों को दर्शकों का वह प्रतिसाद नहीं मिलता, जो ऊल-जलूल कार्यक्रमों को मिलता है। इन कार्यक्रमों के ज्यादा देखे जाने से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का विज्ञापन भी बढ़ता है। इसी होड़ में अमर्यादित और विवादास्पद कार्यक्रमों की शृंखला का जन्म होता है। ऐसे में सवाल उठाया जा रहा है कि क्या सोशल मीडिया नियमन को लेकर बने कानून इस अराजकता पर अंकुश लगाने में सक्षम हैं? क्या इलेक्ट्रानिक माध्यमों के जरिये प्रसारित सामग्री पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम को सख्त बनाने की जरूरत है? क्या अश्लील अभिव्यक्ति को दंडनीय बनाने के लिये सख्त कानूनों की जरूरत है? सवाल यह भी है कि हंसी मजाक के कार्यक्रमों के लिये सामाजिक मर्यादाओं की सीमा कैसे तय की जाए? जाहिर है अब वक्त आ गया है कि मनोरंजक हास्य कार्यक्रमों और आपत्तिजनक कंटेंट के बीच सीमा का निर्धारण किया जाए। निस्संदेह, किसी लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपरिहार्य शर्त है, लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि हम तमाम सामाजिक व पारिवारिक मर्यादाओं को ताक पर रख दें। किसी भी सूरत में सोशल मीडिया को एंटी सोशल अभिव्यक्ति की आजादी नहीं दी जा सकती। निस्संदेह, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को कंटेंट के बाबत जवाबदेह बनाने की जरूरत है। इसके संचालकों को चाहिए कि रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर सार्वजनिक शिष्टाचार का अतिक्रमण न करें।

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