यह विडंबना है कि नियामक संस्था की सख्ती और शिक्षण संस्थाओं की सक्रियता के बावजूद रैगिंग का रोग काबू में नहीं आ रहा है। जब-तब कुछ छात्रों के आत्महत्या करने और कई मामलों में दोषी छात्रों के निलंबन व पुलिस कार्रवाई के मामले भी अक्सर उजागर होते हैं, मगर मर्ज है कि लाइलाज होता जा रहा है। सीनियर छात्र नये छात्रों को परेशान करने के लिये नये-नये तौर-तरीके तलाश लेते हैं। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले यूजीसी ने देश के 89 उच्च शिक्षा संस्थानों को कारण बताओ नोटिस जारी करके सख्त हिदायत दी है कि रैगिंग पर नियंत्रण करने वाले नियमों को सख्ती से क्यों लागू नहीं किया गया। यूजीसी ने इन उच्च शिक्षण संस्थानों के अधिकारियों को चेताया है कि इन संस्थाओं के परिसर में छात्रों की सुरक्षा से किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता है। अब जब देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में नये छात्रों के प्रवेश का सिलसिला आरंभ होने वाला है, यूजीसी ने एक बार फिर सख्ती दिखाई है। उसने रैगिंग के नये तौर-तरीकों से कड़ाई से निपटने का निर्देश दिया है। दरअसल, विभिन्न प्रसंगों में देखा गया है कि सीनियर छात्र नये छात्रों को परेशान करने के लिये नये तौर-तरीके इस्तेमाल कर रहे हैं। यूजीसी के मुताबिक, ऐसे मामले प्रकाश में आये हैं कि सीनियर छात्र अनौपचारिक व्हाट्सएप समूह बनाकर नये छात्रों को उससे जुड़ने के लिये बाध्य करते हैं। फिर छात्रों के मानसिक उत्पीड़न का सिलसिला आरंभ हो जाता है। यही वजह है कि यूजीसी ने नये छात्रों को परेशान करने के इस नये तरीके के प्रति शिक्षा संस्थानों के अधिकारियों को चेताया है कि ऐसे मामले भी रैगिंग विरोधी नियमों के दायरे में आते हैं। इन मामलों में भी सख्त कार्रवाई की जाएगी। दरअसल, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने विश्वविद्यालय, शैक्षणिक संस्थानों व कालेजों को रैगिंग मुक्त वातावरण बनाने के निर्देश दिए हैं। साथ ही नियमों के उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करने को कहा है।
निश्चित रूप से नया सत्र शुरू होने से पहले यूजीसी की यह सक्रियता व सार्थक पहल स्वागत योग्य है। ऐसे में उच्च शिक्षण संस्थानों और कालेज प्रबंधन का दायित्व बनता है कि वे रैगिंग के नये तौर-तरीकों की सतर्कता से निगरानी करें। ताकि इसका इस्तेमाल नये छात्रों को आतंकित करने तथा अपमानित करने के लिए न किया जा सके। यह विडंबना ही है कि सीनियर छात्र नये छात्रों को परेशान करने के लिये नये-नये तरीके निकाल लेते हैं। यही वजह है कि नये छात्रों की शिकायतें लगातार सामने आती रहती हैं। पिछले सत्र में शिकायतें मिलीं कि सीनियर छात्र अनौपचारिक व्हाट्सएप ग्रुप में नये छात्रों को शामिल करके उन्हें धमकाते हैं। उन पर अपमानजनक नियम थोपते हैं। उन पर न केवल व्यंग्य करते हैं बल्कि गालियां भी देते हैं। ऐसे में नये भविष्य के लिए उत्साहित छात्र नयी परिस्थितियों में खुद को ढालने की कोशिश में विफल हो जाते हैं। उन्हें कई तरह से मानसिक व शारीरिक कष्टों तक का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि भयाक्रांत होने से कई छात्र विश्वविद्यालय या कालेज छोड़ने तक के लिए बाध्य हो जाते हैं। कुछ छात्र लंबे तनाव के बाद डिप्रेशन तक में चले जाते हैं। निस्संदेह, शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की घटनाओं को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। कहीं न कहीं विश्वविद्यालय व कालेज प्रशासन की शिथिलता व उदासीनता भी सीनियर छात्रों की गुंडाई को बढ़ावा देती है। जिसके लिये जवाबदेही तय की जानी चाहिए। यही वजह है कि यूजीसी को चेतावनी देने को बाध्य होना पड़ा कि रैगिंग के किसी तरह के क्रियाकलाप पूरी तरह अस्वीकार्य हैं। ऐसा न करने पर इन शिक्षण संस्थानों की रेटिंग कम करने तथा अनुदान रोकने की कार्रवाई भी हो सकती है। दरअसल, शिक्षण संस्थानों को अपने परिसर में रैगिंग जैसी कुरीति पर रोक लगाने के लिये जहां सीनियर छात्रों के लिये परामर्श केंद्र बनाये जाने चाहिए, वहीं नये छात्रों की भी काउंसिलिंग की जानी चाहिए, ताकि वे नयी परिस्थितियों से साम्य स्थापित कर सकें।