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पंजाब का भविष्य देखें

राजनीतिक मतभेद भुला प्राथमिकताएं तय हों
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यह विडंबना ही है कि पंजाब में आसन्न चुनौतियों को नजरअदांज करके राजनीतिक लाभ के लिये गैरजरूरी गतिविधियां की जा रही हैं। इसी कड़ी में मान सरकार द्वारा विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा के खिलाफ मामला दर्ज करना, एक अनाश्यक राजनीतिक उकसावा ही कहा जाएगा। निश्चित रूप से यह प्रकरण एक अनुचित समय पर हुआ है। आज एक बार फिर पंजाब दोराहे पर खड़ा है, जहां उसे उन ताकतों का सामना करना पड़ रहा है, जिन्होंने अतीत में राज्य को भयावह संकट में धकेल कर अमन-शांति को ग्रहण लगाया था। इन ताकतों के खतरनाक मंसूबों को गंभीरता से महसूस किया जाना चाहिए। हाल के दिनों में ग्रेनेड हमलों की शृंखला शासन-प्रशासन के साथ आम लोगों को व्यथित किए हुए है। ऐसी किसी भी आतंकी गतिविधि के खिलाफ समय रहते सामूहिक संकल्प लेने की सख्त जरूरत है। इस वक्त पंजाब के राजनीतिक परिदृश्य में जिम्मेदार नेतृत्व की सख्त जरूरत है। यह समय नहीं है कि राजनीतिक लाभ-हानि के गणित को दृष्टिगत रखकर एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ दिखाई जाए। यदि पंजाब में सिर उठा रही आतंकवाद की नई चुनौती के खतरे को गंभीरता से लेने की बजाय, अभद्र भाषा की टिप्पणियों को प्राथमिकता दी जाएगी तो राज्य का बहुत कुछ दांव पर लगेगा। इससे भी बड़ी विडंबना यह है कि इस राजनीतिक विवाद में पुलिस को घसीटा जा रहा है। ऐसे चुनौती वाले समय में जब पुलिस का मनोबल बढ़ाकर उसकी पूरी ऊर्जा उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई पर केंद्रित करने की जरूरत है, जो राज्य को फिर से अतीत के उस काले दौर की ओर धकेलने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे उबरने में पंजाब के लोगों ने भारी कीमत चुकाई थी। कोई नहीं चाहेगा कि राज्य को फिर उस भयावह दौर से गुजरना पड़े। इसमें दो राय नहीं कि पंजाब के समक्ष मौजूदा चुनौतियों और हिंसक अतीत को दृष्टिगत रखते हुए राजनीति प्रतिष्ठानों से संवेदनशील मामलों में संयमित और सावधान प्रतिक्रिया की उम्मीद की जा सकती है।

लेकिन विडंबना है कि नये सिरे से पंजाब की शांति को भंग करने की कुत्सित कोशिशों के प्रति राजनीतिक दलों द्वारा गंभीर प्रतिसाद नहीं दिया जा रहा है। हाल के दिनों में राज्य में सत्तापक्ष और विपक्ष के नेताओं की सतही बयानबाजी से तो ऐसा नहीं लगता है कि राजनेताओं द्वारा चुनौतीपूर्ण स्थितियों में परिपक्वता का व्यवहार किया जा रहा हो। सवाल है कि क्या कांग्रेस नेता बाजवा को अपने बयानों को अभिव्यक्त करने में अधिक सावधान नहीं रहना चाहिए था? निस्संदेह, उन्हें गंभीरता व परिपक्वता का परिचय देना चाहिए था। सवाल यह भी है कि उनके बयानों के जबाव में क्या सरकार की ओर से मामला दर्ज किया जाना चाहिए था? निश्चित रूप से नहीं दर्ज किया जाना चाहिए था। सत्तापक्ष और विपक्ष की कारगुजारियों को देखकर निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं है कि दोनों की तरफ से मौजूदा परिदृश्य में प्राथमिकताएं निर्धारित करने में गलती की जा रही है। यानी बयानबाजी व कार्रवाई में संकीर्ण राजनीतिक हितों को प्राथमिकता दी जा रही है। इससे उन तत्वों को शह मिलती है जो पंजाब के अमन-चैन को ग्रहण लगाना चाहते हैं। वक्त की मांग है कि पंजाब के दूरगामी हितों से जुड़े गंभीर मुद्दों को राजनीतिक चश्मे से ही कदापि नहीं देखा जाना चाहिए। राज्य के हित निश्चित रूप से राजनीति से ऊपर उठकर होने चाहिए। निस्संदेह, यदि राज्य सरकार की कारगुजारियों में नीतिगत खामियां हैं, तो विपक्ष को उन्हें सूचीबद्ध करके उजागर जरूर करना चाहिए। लेकिन आतंकवाद के खिलाफ किसी भी लड़ाई का एक स्वर में समर्थन किया जाना चाहिए। यदि जरूरत महसूस होती है तो आम आदमी पार्टी सरकार को सर्वदलीय बैठक बुलाने पर भी विचार करना चाहिए। इस मामले में तथ्यात्मक स्थिति को तो उजागर करना ही चाहिए, जिससे इससे जुड़ी किसी आशंका को दूर किया जा सके। निश्चित रूप से किसी आसन्न खतरे को महसूस करके उसके खिलाफ एकीकृत प्रतिक्रिया से जहां राज्य विरोधी तत्वों का मनोबल गिरेगा, वहीं आम लोगों की आशंकाओं को भी दूर किया जा सकेगा। निश्चित रूप से आगे की राह कठिन है, लेकिन उसका मुकाबला व्यक्तिगत अहंकार व राजनीतिक स्वार्थों को त्यागने से होगा।

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