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सुरक्षा पहले

एयरलाइंस अपनी प्राथमिकताएं तय करें
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हाल के दिनों में हवाई उड़ान को लेकर तमाम ऐसी खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती रही हैं कि जिससे आम लोगों के मन में हवाई यात्रा को लेकर असुरक्षा बोध पनपा है। यह स्वाभाविक है क्योंकि हवाई यात्रा के साथ तमाम तरह के जोखिम जुड़े हैं। गत बारह जून को अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया के भयावह विमान हादसे के बाद, जिसमें 260 लोग मारे गए थे, भारत का नागरिक उड्डयन क्षेत्र गहन जांच के घेरे में है। यद्यपि प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में कई तरह की व्याख्याएं और निष्कर्ष सामने आ रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद आम धारणा यही है कि भारत की हवाई यात्रा व्यवस्था में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। हाल ही में हुए एक राष्ट्रव्यापी ऑनलाइन सर्वेक्षण में लगभग 76 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि भारत में कई एयरलाइनें यात्रियों की सुरक्षा की तुलना में प्रचार पर ज़्यादा धन खर्च कर रही हैं। निस्संदेह यह गलत प्राथमिकताओं का एक ज्वलंत प्रसंग है, जो यही दर्शाता है कि हवाई यातायात व्यवस्था को पारदर्शी व जवाबदेह बनाने की सख्त जरूरत है। यह भी कि यात्रियों की सुरक्षा और कुशल हवाई संचालन में किसी चूक के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति सख्ती से अपनाई जानी चाहिए। निस्संदेह इस बाबत सख्त कार्रवाई कुशल व सुरक्षित हवाई यातायात का मार्ग सुनिश्चित करेगी। विडंबना यह है कि हमने विगत के हवाई हादसों से कोई गंभीर सबक नहीं सीखे। ‘सब चलता है’ की नीतियां ही क्रियान्वित होती रही हैं। एक के बाद एक हादसों के लिए जांच आयोग तो कई बैठे, लेकिन सुधार के प्रयास तार्किक परिणति तक नहीं पहुंचे। हमारी राजनीतिक अक्षमताएं और निगरानी करने वाले संस्थानों में राजनीतिक हस्तक्षेप से अनुभवहीन लोगों को बैठाना भी हवाई परिचालन में अव्यवस्था का सबब बना। जिसके चलते हमारी हवाई व्यवस्था असुरक्षा के भय से मुक्त न हो पा रही है। साथ ही हमारी हवाई सेवाएं वैश्विक मानकों की कसौटी पर खरी न उतर पायीं। जिसका खमियाजा देश के हवाई यात्री भी भुगत रहे हैं।

निस्संदेह विश्व की चौथी आर्थिक शक्ति बने भारत में नागरिक सेवाओं में यह गुणवत्तापूर्ण झलक नजर आनी चाहिए। यह गुणवत्ता विदेशी निवेशकों के लिए भी जरूरी है लेकिन फिलहाल हमारा नागरिक सेवाओं के प्रति अपेक्षित भरोसा नहीं बन पा रहा है। उल्लेखनीय है कि नागरिक सहभागिता मंच, लोकल सर्किल्स द्वारा किए गए सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि सर्वे में शामिल 64 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने माना कि पिछले तीन वर्षों में कम से कम एक बार उन्होंने कठिन उड़ान का अनुभव किया था, जिसमें टेकऑफ़, लैंडिंग या उड़ान के दौरान कठिन परिस्थितियां शामिल थीं। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने सोमवार को इस चिंताजनक स्थिति का सारांश प्रस्तुत किया, जिसमें राज्यसभा को बताया गया कि पिछले छह महीनों में पांच ‘पहचाने गए’ सुरक्षा उल्लंघनों के संबंध में एयर इंडिया को नौ कारण बताओ नोटिस जारी किए गए थे। यह वास्तव में एक उल्लेखनीय दिन था जिस दिन संसद में विमानन सुरक्षा का ज्वलंत मुद्दा गूंजा - उसी दौरान एक विमान लैंडिंग के दौरान रनवे से भटक गया, दूसरे ने आपातकालीन लैंडिंग की, एक विमान की बाहरी खिड़की का फ्रेम हवा में ही टूट गया, और एक उड़ान का टेकऑफ़ तकनीकी खराबी के कारण अंतिम समय में रद्द कर दिया गया। सौभाग्य से, इन घटनाओं में किसी की जान या अंग की हानि नहीं हुई, लेकिन यात्रियों के आत्मविश्वास को निश्चित रूप से ठेस पहुंची। अब समय आ गया है कि विभिन्न एयरलाइंस कंपनियां यह समझें कि सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। लेकिन यदि प्रचार अभियानों के ज़रिए ज़्यादा से ज़्यादा यात्रियों को हवाई यात्रा के लिए आकर्षित करने की कवायद के बीच हवाई सुरक्षा से जुड़ी बुनियादी बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया, तो ये तमाम लुभावनी कोशिशें नाकाम हो सकती हैं। निस्संदेह यात्रियों को हर योजना में प्राथमिकता का स्थान मिलना चाहिए; उनकी सुरक्षा को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। और जब भी कोई एयरलाइंस सुरक्षा प्रोटोकॉल में किसी तरह की कोताही बरते, विमानन नियामक को तुरंत सख्त कार्रवाई करनी ही चाहिए।

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