हरियाणा के महेंद्रगढ़ स्थित कनीना में ड्राइवर की लापरवाही से एक निजी स्कूल की बस के पेड़ से टकराने के बाद हुई दुर्घटना में छह छात्रों की मौत हृदय विदारक है। दो भाइयों की मौत से उनके परिवार पर क्या गुजर रही होगी, अहसास करना कठिन नहीं है। इस तरह के हादसे हर संवेदनशील व्यक्ति को झकझोरते हैं। इसे एक दुर्घटना कहने की बजाय आपराधिक लापरवाही कहना उचित होगा। जिसमें स्कूल प्रबंधन, चालक तथा प्रशासन की काहिली की बराबर की जिम्मेदारी है। एक खटारा बस को शराबी चालक द्वारा बेलगाम रफ्तार से दौड़ाना एक आपराधिक कृत्य ही कहा जाएगा। सवाल उठाये जा रहे हैं कि जब ईद पर राष्ट्रीय अवकाश था तो स्कूल क्यों खोला गया था? सार्वजनिक अवकाश के दिन स्कूल खोलने पर प्रबंधकों की जवाबदेही तय की जानी चहिए। इस दुर्घटना में कई स्तर पर आपराधिक लापरवाही नजर आती है। ग्रामीणों के अनुसार कई साल पहले इस बस के फिटनेस प्रमाणपत्र की अवधि खत्म हो चुकी थी, इसके बावजूद स्कूल प्रबंधन द्वारा बच्चों के जीवन से खिलवाड़ करते हुए इसे सड़कों पर चलाया जा रहा था। स्कूल प्रबंधन मोटी फीस वसूलने में तो लगा रहता है लेकिन उसे ख्याल क्यों नहीं आया कि बस का फिटनेस प्रमाणपत्र छह साल पहले खत्म हो चुका है। क्यों नहीं देखा कि ऐसे वाहन से तमाम बच्चों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है? सवाल उठना लाजिमी है कि बस की हालत और चालक की आदतों को देखते हुए इन मासूमों के जीवन को खतरे में डालने की स्थिति क्यों पैदा होने दी गई? सवाल पुलिस प्रशासन पर भी है कि क्यों बेलगाम गति से चलने वाले वाहनों की निगरानी का कोई तंत्र काम नहीं कर रहा है? विडंबना है कि हर हादसे के बाद शासन-प्रशासन चुस्ती दिखाता है और कुछ समय बाद सब कुछ ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। कमोबेश इस घटना के बाद भी इसकी पुनरावृत्ति होगी।
विडंबना यह है कि सरकारी स्कूलों की बदहाली से खिन्न होकर जागरूक अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यमों वाले प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने को प्राथमिकता दे रहे हैं। अभिभावकों की इसी सोच के चलते अनेक कारोबारियों, व्यापारियों तथा राजनेताओं ने बड़े नाम व चमक-दमक वाले निजी स्कूल खोल लिये हैं। लेकिन इन स्कूलों में शैक्षिक मानकों तथा छात्रों को दी जाने वाली सुविधाओं में घोर लापरवाही बरती जाती है। छात्रों से फीस तो मोटी ली जाती है लेकिन उच्चस्तरीय सुविधाएं उपलब्ध नहीं करायी जाती। शिक्षकों को दिये जाने वाले वेतन को लेकर भी अकसर सवाल उठते रहते हैं। बेरोजगारी का आलम यह है कि कम वेतन व असुरक्षित सेवाओं के बावजूद शिक्षक व अन्य कर्मचारी मिल जाते हैं। कमोबेश यही स्थिति ड्राइवरों की भी है। चालक को इतना वेतन नहीं मिलता है कि प्रशिक्षित व अनुभवी चालक इन बसों में तैनात किये जा सकें। जिसका नतीजा महेंद्रगढ़ के कनीना में हुआ हादसा है। जिसके चालक पर आरोप है कि वह ड्यूटी के दौरान शराब पीकर नशे में बस को बेतहाशा दौड़ा रहा था। निस्संदेह, ऐसी स्थितियां ही दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं। हमेशा की तरह शासन-प्रशासन ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है, परिवहन विभाग के किसी कनिष्ठ कर्मी को निलंबित किया है। कुछ दिनों मामले के गरम रहने तक नई सुरक्षा घोषणाएं होती रहेंगी। नेताओं की तरफ से संवेदनाएं व्यक्त की जाती रहेंगी। कुछ दिनों बाद फिर स्थितियां ढर्रे पर लौट आएंगी। ऐसे हादसों को टालने के लिये अभिभावकों की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए। उन्हें अभिभावक-शिक्षक बैठकों में बच्चों की सुरक्षा व बसों की आवागमन स्थिति को लेकर स्कूल प्रशासन पर निरंतर दबाव बनाना चाहिए। प्रशासन को भी स्कूल बसों की फिटनेट व बस चालकों की शारीरिक व मानसिक स्थिति की जांच समय-समय पर करनी चाहिए। निस्संदेह, इस हादसे में केवल स्कूल प्रबंधन ही नहीं, बसों की फिटनेस की निगरानी करने वाले विभाग और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की भी जवाबदेही तय की जानी चाहिए। बसों की गति को ऑनलाइन ट्रेकिंग व्यवस्था से नियंत्रित किया जाना चाहिए। बसों में फर्स्ट-एड बॉक्स व आपातकालीन सुरक्षा सेवाओं के नंबर लिखे हों। अन्यथा हादसों का यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा।