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जनादेश के मायने

फिर लोकतंत्र की प्रहरी बनी जनता
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अठारहवीं लोकसभा के लिये सात चरणों के चुनाव के बाद आए अप्रत्याशित आकलनों-भविष्यवाणियों से इतर मंगलवार को जो परिणाम सामने आए, उन्होंने पूरे देश को चौंकाया है। पिछले दो बार के आम चुनाव में लगातार भारी बहुमत से सत्ता में आई भाजपा इस बार अपने बूते पूर्ण बहुमत से दूर रह गई। वहीं कांग्रेस नीत इंडिया गठबंधन ने इन चुनावों में उम्मीदों से कहीं ज्यादा सफलता हासिल की। यहां तक कि अब कांग्रेस को लोकसभा में विधिवत विपक्षी नेतृत्व का अधिकार मिलेगा। बहरहाल, वर्ष 2024 के जनादेश ने साफ किया है कि जनता लोकतंत्र में किसी भी दल को स्वच्छंद व्यवहार की अनुमति नहीं देती। वह लोकप्रहरी की भूमिका में आ जाती है। अब चाहे सामने कितना भी कद्दावर नेता क्यों न हो। जनता देश में सशक्त विपक्ष की भूमिका की जरूरत भी महसूस करती है। देश में आपातकाल के बाद भी बदलाव का जनादेश आया था। सही मायनों में यह जनादेश किसी की जीत व हार का नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जीत का है। विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि सत्तारूढ़ दल निरंकुश व्यवहार करते हुए सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग विपक्षी नेताओं को भयभीत करने को करता है। कुछ विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों व मंत्रियों को राजनीतिक दुराग्रह के लिये जेल भेजने के आरोप भी लगे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि गठबंधन सरकार के दौर में अब सत्ताधीश निरंकुश व्यवहार नहीं कर पाएंगे। निस्संदेह, इन हालिया चुनाव नतीजों के दूरगामी परिणाम होंगे। इसी साल हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी इन परिणामों का असर दिख सकता है। वहीं, इन चुनाव परिणामों ने समता-ममता के लोकतंत्र की जरूरत को पुष्ट किया है। जनादेश ने भारतीय संवैधानिक संस्थाओं को मजबूती की जरूरत भी बतायी है। निश्चित रूप से इंडिया गठबंधन को इस सम्मानजनक स्थिति में लाने में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के मुखर प्रतिरोध ने विपक्ष को ताकत दी।

वहीं दूसरी ओर इन लोकसभा चुनावों के परिणामों ने सत्ताधीशों को बताया है कि बेरोजगारी, महंगाई और आम जीवन से जुड़े मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हरियाणा व राजस्थान में अग्निवीर भर्ती प्रक्रिया का प्रतिकार युवाओं की अभिव्यक्ति के रूप में इन चुनावों में नजर आने की बात कही जा रही है। पेपर लीक की घटनाओं ने युवाओं को ही नहीं, उनके परिजनों को भी व्यथित किया। युवाओं के देश में हर हाथ को काम देना सरकारों को अपनी प्राथमिकता बनानी होगी। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीटों में गिरावट पार्टी को आत्ममंथन का मौका जरूर देगी। वहीं उड़ीसा व अरुणाचल में भाजपा की अप्रत्याशित कामयाबी भी सामने आई है। अब केरल में उसका खाता खुला है और तेलंगाना में सीटें बढ़ी हैं। उसका वोट प्रतिशत भी कमोबेश बढ़ा है, भले ही ये वोट सीटों में न बदल सके हों। दिल्ली, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल व गुजरात में उसकी बड़ी कामयाबी जरूर पार्टी का उत्साह बढ़ाने वाली है। लेकिन हरियाणा में डबल इंजन की सरकार के बावजूद कांग्रेस की बढ़त पार्टी के लिये चिंता बढ़ाने वाली है, क्योंकि राज्य में इसी साल विधानसभा चुनाव भी होने हैं। भाजपा के एक पक्ष में एक बात यह जरूर है कि देश में वर्ष 1962 में पं. नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस के लगातार तीसरे बार सरकार बनाने का रिकॉर्ड इस बार नरेंद्र मोदी दोहरा सकते हैं। लेकिन ये पार्टी के लिये आत्ममंथन का मौका है कि क्यों पार्टी को अपने बूते सरकार बनाने का अवसर नहीं मिल पाया। यह भी कि अब पार्टी स्वीकारे कि लोकतंत्र सत्तापक्ष और विपक्ष के सामंजस्य व तालमेल से ही समृद्ध होता है। मजबूत विपक्ष लोकतंत्र में सचेतक की भूमिका निभा सकता है। बहरहाल, हाल के वर्षों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने निर्भीक होकर जिस तरह सत्ता पक्ष का मुकाबला किया, देशव्यापी सफल पदयात्राएं की, उससे शेष विपक्ष को मुखर बनाने में मदद मिली। चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस की प्रेसवार्ता में पार्टी ने इंडिया गठबंधन के दलों के साथ मिलकर सत्ता में भागीदारी की संभावनाओं से इनकार नहीं किया है। संकेत दिया कि पार्टी के एजेंडे में जाति गणना जैसे मुद्दे प्राथमिकता के आधार पर रहेंगे। निष्कर्ष यह भी कि समाज में आर्थिक असमानता दूर करना इंडिया गठबंधन का मुख्य मुद्दा बना रहेगा।

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