निर्विवाद रूप से जलवायु परिवर्तन से उपजी चुनौतियों का सामना आज समाज का हर वर्ग कर रहा है। खासकर विकासशील व गरीब देशों की स्थितियां विकट हैं जहां पर्यावरणीय प्रदूषण व लचर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते स्थिति गंभीर बनी हुई है। विशेष तौर पर इन दिनों जब अमेरिका-यूरोप समेत एशिया के तमाम देश भीषण गर्मी की चपेट में हैं। लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर विभिन्न रोगों से जूझ रहे बुजुर्गों पर ज्यादा पड़ रहा है। जिसकी पुष्टि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी यूएनइपी की ताजा रिपोर्ट करती है। चौंकाने वाली रिपोर्ट बताती है कि बीती सदी में नब्बे के दशक के बाद से लेकर अब तक भीषण गर्मी से बुजुर्गों की मौत में पिच्चासी फीसदी की वृद्धि हुई है। दरअसल, यूएनइपी की यह रिपोर्ट बुजुर्गों के समक्ष दरपेश गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों की ओर इशारा करती है। यह संकट लचर स्वास्थ्य सेवाओं व प्रदूषित वातावरण वाले गरीब व विकासशील मुल्कों में ज्यादा है। दरअसल, बुजुर्गों पर बढ़ते इस संकट की मूल वजह बड़ी उम्र में आंतरिक तापमान को नियंत्रण में करने की क्षमता घटना है। जिससे वे मौसम की तीव्रता को सहन नहीं कर पाते। फलत: गर्मी व ठंड की तीव्रता को सहन करने में उनका शरीर सक्षम नहीं हो पाता। कुल मिलाकर उनकी कम होती रोग प्रतिरोधक क्षमता गंभीर बीमारियों का कारण बनती है। वैसे भी मौसम के चरम का असर उन लोगों के लिये ज्यादा संवेदनशील होता है जो बढ़ती उम्र के रोगों से जूझ रहे होते हैं।
ऐसे में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रहे देशों को बुजुर्गों को सामाजिक सुरक्षा देने के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करना चाहिए। दरअसल, पर्यावरण प्रदूषण इस संकट को और गहरा कर रहा है। खासकर शहरों में स्थिति ज्यादा विकट है, जहां बुजुर्ग बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के प्रलोभन में आ बसते हैं। फलत: मरीजों के दबाव से स्वास्थ्य सेवाएं भी चरमराने लगती हैं। जिसकी कीमत बुजुर्गों को चुकानी पड़ती है। सेवानिवृत्ति के बाद व्यक्ति की आय कम हो जाती है, फलत: शारीरिक क्षमता में गिरावट के बाद बढ़ती उम्र के रोगों का इलाज करा पाना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। ऐसे में यदि उनके बच्चे उनका साथ नहीं देते तो उनके लिए संकट और गहरा जाता है। निस्संदेह, बुनियादी ढांचे को मजबूत करके स्वास्थ्य सेवाओं को सस्ती व सर्व सुलभ बनाने की भी जरूरत है। जिससे संवेदनशील वर्ग के संकट के समाधान में मदद मिल सके। ऐसे में बुजुर्गों की भागीदारी सामाजिक कार्यक्रमों व आय के साधन जुटाने में बढ़ाई जानी चाहिए। जिससे शारीरिक गतिशीलता से उनके स्वास्थ्य में सुधार हो सके। दरअसल,बढ़ती उम्र व बीमारियां उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करती हैं। निस्संदेह, यदि वैश्विक तापमान में और वृद्धि होती है, तो बुजुर्गों के लिये ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के घातक परिणाम हो सकते हैं। यूएनइपी की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक तापमान में यदि औद्योगिक समय के बाद से दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो वर्ष 2050 के बाद बुजुर्गों की मौत के प्रतिशत में तीन सौ फीसदी से अधिक की वृद्धि हो सकती है। इस आसन्न संकट से योजनाबद्ध प्रयासों से ही निबटा जा सकता है।