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ईडी की विश्वसनीयता

सत्ता का अस्त्र बनने पर कोर्ट की फटकार
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यह कोई नई बात नहीं है कि देश की जांच एजेंसियों पर सरकार की आकांक्षाओं के अनुरूप कार्य करने को लेकर विपक्षी राजनीतिक दलों की तरफ से पक्षपात के आरोप लगे हों। सरकारी जांच एजेंसियों को वे विपक्ष के नेताओं को डराने-धमकाने का हथियार बताते रहे हैं। अब इन्हीं चिंताओं और सवालों पर देश की शीर्ष अदालत ने भी मोहर लगाई है। विपक्षी नेता खासकर धनशोधन निरोधक अधिनियम के तहत की जा रही कार्रवाइयों पर रोक लगाने की गुहार लगाते रहे हैं। उनका आरोप रहा है कि प्रवर्तन निदेशालय सरकार के हितों की पूर्ति के लिये दुराग्रह से कार्रवाई करता है। हालांकि, अदालत का मानना रहा है कि भ्रष्टाचार,देशविरोधी गतिविधियों तथा आतंकवादी संगठनों को मदद पहुंचाने वालों के खिलाफ कार्रवाई अतार्किक नहीं है। सवाल इस बात को लेकर भी उठते रहे हैं जितने आरोप पत्र ईडी द्वारा दायर किए जाते हैं, उसकी तुलना में दोषसिद्धि की संख्या में बेहद ज्यादा अंतर क्यों है। जो इस बात की ओर इशारा करता है कि मामले दुराग्रह से प्रेरित होते हैं। अदालत भी मानती है कि ठोस प्रमाण के बिना किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। लेकिन एक हालिया मामले में प्रवर्तन निदेशालय की कारगुजारियों पर कोर्ट ने उसे कड़ी फटकार लगाते हुए सीमाएं लांघकर संघीय ढांचे के अतिक्रमण करने की बात कही है। कोर्ट ने यह टिप्पणी तमिलनाडु में शराब की दुकानों के लाइसेंस देने में बरती गई कथित धांधली में राज्य विपणन निगम के विरुद्ध धनशोधन मामले में ईडी की जांच पर की है।

दरअसल, निगम द्वारा शीर्ष अदालत में मामला ले जाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने न केवल जांच रोकी बल्कि ईडी की कारगुजारियों पर सख्त टिप्पणियां भी की हैं। निस्संदेह, ईडी को इस सुप्रीम नसीहत पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। कोर्ट को यहां तक कहना पड़ा कि प्रवर्तन निदेशालय संघीय अवधारणा का उल्लंघन कर रहा है। उल्लेखनीय है कि पीएमएलए की धाराओं के दुरुपयोग को लेकर शीर्ष अदालत पहले भी ईडी के खिलाफ सख्त टिप्पणी कर चुकी है। निस्संदेह, अदालत की इस सख्त टिप्पणी से उन तमाम विपक्षी दलों को संबल मिलेगा जो आए दिन ईडी व अन्य जांच एजेंसियों का सत्तापक्ष द्वारा दुरुपयोग करने का आरोप लगाते थे। वहीं दूसरी ओर तमिलनाडु राज्य विपणन निगम की दलील थी कि जिन शराब की दुकानों के लाइसेंस देने में अनियमितताओं के मामले में ईडी ने हस्तक्षेप किया है, उसमें वर्ष 2014 से कार्रवाई की जा रही है। साथ ही इस मामले में चालीस से अधिक प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी हैं। वहीं निगम कई मामलों में शिकायतकर्ता है। ऐसे में इस मामले में ईडी के कूदने पर सवाल उठे हैं। यही वजह है कि कोर्ट ने ईडी की इस जांच पर रोक लगा दी है। उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु सरकार भी ईडी की कार्रवाई को संवैधानिक अधिकारों व संघीय ढांचे का उल्लंघन बताती रही है। विश्वास किया जाना चाहिए कि कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद ईडी केंद्र की इच्छाओं के अनुरूप आंख बंद कर कार्रवाई करने की बजाय अपनी कार्यशैली में अपेक्षित परिवर्तन करेगी।

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