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एक और युद्ध

भ्रामक-फर्जी सूचनाओं से जूझने की चुनौती
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हाल ही में भारतीय चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ जनरल अनिल चौहान का एक चौंकाने वाला बयान सामने आया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सेना की पंद्रह फीसदी ऊर्जा भ्रामक सूचनाओं व फर्जी खबरों से जूझने में लगी। यह बयान न केवल चिंताजनक है बल्कि परेशान करने वाला भी है। यूं तो विश्व युद्धों के दौरान भी घातक व भ्रामक सूचनाओं के युद्ध परंपरागत युद्ध के साथ लड़े गए, लेकिन हाल के वर्षों में सूचना क्रांति व डिजिटल युग में यह चुनौती बेहद जटिल हो गई है। हिटलर के प्रचारतंत्र के मुखिया का वह बयान अकसर दोहराया जाता है कि सौ बार एक झूठी खबर को दोहराने से वह सच बन जाती है। इस बार ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भी कुछ ऐसा ही देखने में आया। यह हकीकत है कि भारत ने त्वरित व सटीक कार्रवाई से न केवल पाकिस्तान में बड़े आतंकी ठिकाने ध्वस्त किए बल्कि पाक वायु सेना को भी भारी क्षति पहुंचायी। वहीं हमने हवाई हमलों की रूसी प्रतिरोधक प्रणाली व स्वदेशी रक्षा कवच से पाक के मिसाइल व ड्रोन हमले विफल कर दिये। इसके बावजूद फर्जी व भ्रामक सूचनाओं के जरिये पाकिस्तानी जनमानस को बताया गया कि जीत पाकिस्तान की हुई है। बाकायदा विजय जुलूस निकाले गए, मिठाइयां बांटी गई। इतना ही नहीं करारी शिकस्त के बावजूद सेना प्रमुख को फील्ड मार्शल बना दिया गया। भ्रामक-फर्जी सूचनाओं का यह सैलाब बाहर व भीतर दोनों तरफ से था। देश की जनता ऊहापोह में रही कि वास्तविकता क्या है। खबरों की तार्किकता के लिये सेना को भी जद्दोजहद करनी पड़ी। बाकायदा विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के साथ सेना के अधिकारियों ने तथ्यों की तार्किकता के साथ अपनी बात रखी। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान ने अपने मित्रों व दुनिया के अन्य देशों को गलत सूचनाएं देकर बरगलाने का प्रयास किया। इस दिशा में तमाम राजनीतिक दलों के भारतीय सासंदों ने विभिन्न देशों में पहुंचकर भारत के पक्ष को मजबूती से रखा। इसके बाद ही कोलंबिया को पाक के पक्ष में दिए बयान को वापस लेने को बाध्य किया।

बहरहाल, अब वह वक्त आ गया है कि परंपरागत युद्ध के साथ-साथ नैरेटिव व सूचना युद्ध की भी तैयारी की जाए। तेज सूचना तंत्र और सोशल मीडिया के दौर में कैसी-कैसी खबरें निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा गढ़ी जाती हैं, ये हमने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान देखा। एआई की मदद से काल्पनिक कथानक तैयार करके झूठ को सच बनाने की कवायद की गई। दरअसल, आईटी क्रांति ने सूचनाओं के प्रसार को अभूतपूर्व गति दी है। ये काम पाकिस्तान इस दौरान करता रहा है। आधा दर्जन भारतीय फाइटर जेट गिराने के दावे पाक करता रहा तो चीन का सरकारी मीडिया पाकिस्तान के मंसूबों को हवा देता रहा। ये घटनाक्रम हमें सचेत करता है कि आने वाले वक्त में भारत को आक्रामक सूचना युद्ध के मुकाबले को फुलप्रुफ तंत्र विकसित करना पड़ेगा। निस्संदेह, ऐसी भ्रामक सूचनाएं सैन्य अभियानों के मार्ग में तो अवरोध खड़े करती ही हैं, साथ ही देश की जनता का मनोबल भी गिराती हैं। ये एक तरह से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी चुनौती है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद देश में पाकिस्तान के लिये जासूसी के तमाम मामले प्रकाश में आए। यह भी एक तरह का सूचना युद्ध ही था। सोशल मीडिया इंफ्लुएंसरों के जरिये भारत से जुड़ी गोपनीय सूचनाएं जुटाई जा रही थी। साथ ही सोशल मीडिया के जरिये भारतीय सेना की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही थी। वहीं दूसरी ओर इस तरह की फर्जी व भ्रामक सूचनाएं अंतर्राष्ट्रीय जनमत को भी प्रभावित करती हैं। यही वजह है कि आसन्न संकट को देखते हुए सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने सूचना युद्ध के मुकाबले के लिये सेना की एक नई विंग बनाने की जरूरत पर बल दिया। दरअसल, युद्ध जैसी स्थितियों में भ्रामक सूचनाओं का तुरंत कारगर ढंग से तथ्यों के जरिये मुकाबला करने की सख्त जरूरत होती है। निस्संदेह, नये दौर में परंपरागत युद्ध के साथ आधुनिक तकनीक व सूचना माध्यमों की बड़ी भूमिका होती जा रही है। जितना जल्दी हम इस नये तरह के युद्ध के लिये खुद को तैयार कर लें, उतनी ही बढ़त हम युद्ध के दौरान ले सकते हैं।

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