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किसने बनाया हमास को हाईटेक हमलावर

पुष्परंजन हमास और इस्राइल के बीच फुल स्केल वार का प्रभाव इंटरनेट तक फैल गया है। जेरूसलम पोस्ट की वेबसाइट पर साइबर हमलों में वृद्धि हुई है, जिसके कारण शनिवार से ही इस अखबार की वेबसाइट बंद हो गई है।...
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पुष्परंजन

हमास और इस्राइल के बीच फुल स्केल वार का प्रभाव इंटरनेट तक फैल गया है। जेरूसलम पोस्ट की वेबसाइट पर साइबर हमलों में वृद्धि हुई है, जिसके कारण शनिवार से ही इस अखबार की वेबसाइट बंद हो गई है। जेरूसलम पोस्ट के प्रधान संपादक एवी मेयर ने एक ई-मेल में लिखा, ‘कल सुबह युद्ध शुरू होने के बाद से हमें लगातार विनाशकारी साइबर हमलों का निशाना बनाया गया है। हम उनसे निपटने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने हमें कई बार हराया है।’ एवी मेयर ने मेल में लिखा कि सही से जांच पर पता चल गया कि कौन जिम्मेदार था और वे कहां स्थित थे।

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इस्राइल में यहूदी समर्थक बहुत सारे मीडिया वाले साइबर हमलों के जिस तरह शिकार हुए हैं, उससे साफ पता चलता है कि हमास आज की तारीख़ में हाईटेक हो चुका है। हमास दो दशक पहले वाला लड़ाका संगठन नहीं है, जो मानव बमों के ज़रिये दहशत फैलाता था। वर्ष 2003 में रामल्ला, रफात और जेनिया की तंग गलियों में जब मैं मानव बम पर स्टोरी करने गया था, तब यह तसव्वुर में नहीं था कि कबीलाई जैसे दिखने वाले हमास लड़ाके दो दशक बाद, इस्राइल पर रॉकेट की बौछार कर पूरी दुनिया को हिला देंगे।

हमास, हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया (इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन) की स्थापना 1960 के आरंभ में फिलिस्तीनी मौलवी शेख अहमद यासीन ने की थी। 1967 के छह-दिवसीय युद्ध के बाद यासीन के लड़ाकों ने इस्राइल के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया था। वेस्ट बैंक, गाजा और पूर्वी यरुशलम पर इस्राइल के कब्जे के खिलाफ यासीन ने दिसंबर, 1987 में गाजा में ब्रदरहुड की राजनीतिक शाखा के रूप में हमास की स्थापना की। तब पहला इंतिफादा जिसे आम भाषा में विद्रोह कह सकते हैं, हुआ था। हमास का उद्देश्य फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (पीआईजे) का मुकाबला करना था। वर्ष 1988 में, हमास ने अपना चार्टर प्रकाशित किया, जिसमें इस्राइल के विनाश और फिलिस्तीन में एक इस्लामी गणराज्य की स्थापना का आह्वान किया गया था।

वर्ष 2017 में हमास ने एक अंतरिम फिलिस्तीनी राज्य को स्वीकार कर लिया, लेकिन फिर भी उसने इस्राइल को मान्यता देने से इनकार कर दिया। पीएलओ नेता यासर अराफात और इस्राइली प्रधानमंत्री यित्जाक राबिन द्वारा ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर करने से पांच महीने पहले, हमास ने पहली बार आत्मघाती बम विस्फोट अप्रैल, 1993 में किया था।

हमास ने ओस्लो समझौते की निंदा की, जिसमें अराफात और इत्जाक़ राबिन ने पीएलओ और इस्राइल को मान्यता दी थी। 1997 में अमेरिका ने हमास को आतंकवादी संगठन घोषित किया था। यह आंदोलन 2000 के दशक की शुरुआत में दूसरे इंतिफादा के दौरान हिंसक प्रतिरोध का नेतृत्व करने के लिए चला गया, हालांकि पीआईजे और फतह के तंजीम मिलिशिया भी इस्राइलियों के खिलाफ हिंसा के लिए जिम्मेदार थे। दूसरा ‘इंतिफादा’ पहले से कहीं अधिक हिंसक था। लगभग पांच साल के विद्रोह के दौरान, 4,300 से अधिक मौतें दर्ज़ की गईं। मार्च, 2002 में हमास द्वारा भयानक आत्मघाती बम विस्फोट में 30 लोग मारे गए, इस्राइली सेना ने वेस्ट बैंक और गाजा के कुछ हिस्सों पर फिर से कब्जा करने के लिए ऑपरेशन डिफेंसिव शील्ड शुरू किया। विगत 20 वर्षों से यही सब चल रहा है।

मगर, सवाल यह है कि हमास को इतना हाईटेक करने में दुनिया की किन शक्तियों का हाथ रहा है? और क्या ये तीसरा इंतिफादा था? नवंबर, 2022 में, संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी थी कि इस्राइल-फिलिस्तीनी संघर्ष फिर से उबलते बिंदु पर पहुंच रहा है। इस्राइल में मिलिटरी इंटेलीजेंस के प्रमुख अमित सार ने भविष्यवाणी की थी कि वेस्ट बैंक (ग़ाजा नहीं) में हिंसा 2023 में इस्राइल की दूसरी सबसे बड़ी चुनौती होगी। सार संभवतः चूक गये कि हिंसा का अधिकेंद्र वहां से 93 किलोमीटर दूर गाज़ा होगा। सार को इस हमले की टाइमिंग का भी पता नहीं था। मतलब, इस्राइल की मिलिटरी इंटेलिजेंस सर्विस फेल, देश से लेकर दुनिया भर में दबदबा बनाकर रखने वाली इस्राइली खुफिया एजेंसियां शिन बेत और मोसाद भी फेल। उत्तर-पूर्व तेल अवीव में ही शिन बेत का हेडक्वार्टर है। तेल अवीव में भूमध्य सागर के तट पर अवस्थित याफो में मोसाद का मुख्यालय है। इस्राइल की इन तीनों एजेंसियों ने देश की नाक कटा दी, यह तो स्वीकार कर लेना चाहिए।

लगभग दो दशकों से भारत के शीर्ष चार हथियार आपूर्तिकर्ताओं में से एक इस्राइल रहा है। शनिवार वाले हमले के हवाले से सवाल है कि एक अरब डॉलर की सालाना सैन्य बिक्री पर क्या आंच आने वाली है? रक्षा उत्पादन और इंटेलिजेंस शेयरिंग में उभयपक्षीय सहयोग के पीछे इस्राइल की खुफिया एजेंसियों की क्रेडिट को तेल अवीव जिस तरह भुनाता रहा, उसे हमास के हमले ने एक झटके में ग्राउंड ज़ीरो पर ला दिया। 2017 में प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा के लिए इस्राइल से प्रशिक्षित कुत्ते लाये गये। कश्मीर, उत्तर पूर्व से लेकर तेलांगाना, आंध्र के पुलिस अधिकारी इस्राइल प्रशिक्षण के लिए भेजे गये, वो सब मोसाद-शिन बेत के बढ़ते क़द का परिणाम था। लेकिन यह भ्रम टूट-सा गया।

इस्राइल ने दावा किया है कि गाज़ा अब पूरी तरह उनके नियंत्रण में है। हमास के 1600 लड़ाकों के शव मिले हैं। सबसे चिंता का विषय हमास द्वारा अगवा लोग हैं, जिन्हें वह ह्यूमन शील्ड के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। इतना तो मानकर चलिये कि यह लड़ाई यूक्रेन की तरह महीनों लंबी नहीं खिंचेगी। उत्तर कोरिया-रूस राकेट टैक्नॉलोजी का ट्रांसफर ईरान को करते रहे, क्या हमास ने उसका फायदा उठाया?

ईरान ने हमास को समर्थन देने के मामले में तालिबान नेताओं को भी शामिल कर दिया। कल तक तालिबान अछूत थे, अब तेहरान के हम प्याला-हम निवाला हैं। सही से देखा जाए तो ईरान, मध्यपूर्व में एक बार फिर कालनेमी के रूप में प्रस्तुत हुआ है। तुर्की और सऊदी अरब इसके उलट, शांति स्थापना और द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की पैरोकारी कर रहे हैं। कतर बंधकों को छुड़ाने के वास्ते मध्यस्थता कर रहा है। मगर क्या इस इश्यू पर इस्लामी देश भी बंटे हुए हैं? भारत गुटनिरपेक्षता की नीति को दरकिनार कर इस्राइल के समर्थन में अपना बयान जारी कर चुका है। क्या इसके चुनावी निहितार्थ हैं?

जो बात ज़ेरे बहस होनी चाहिए वो है बेन्जामिन नेतन्याहू की सत्ता। न्यायिक सुधार बिल की वजह से नेतन्याहू जिनका निक नेम है बीबी, का हाल बुरा हो रहा था। अदालत से लेकर अस्पताल तक और यहां तक कि उनकी पार्टी में सहयोगी लोग नहीं चाह रहे थे कि नेतन्याहू सत्ता में रहें। सड़कों पर ‘शेम-शेम, बीबी गो बैक’ के नारे लग रहे थे। शनिवार के हमले के बाद बीबी को जैसे जीवनदान मिल गया है!

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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