Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

जब डब्ल्यूएचओ से अमेरिका का बाहर होना टला

साल 1982 में मैं संयुक्त सचिव, स्वास्थ्य मंत्रालय के रूप में जेनेवा में डब्ल्यूएचए की मीटिंग में शामिल था व एजेंडा पर आयोग बी का अध्यक्ष था। तब अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के नेता डॉ. जॉन ब्रायंट ने फिलस्तीनियों के स्वास्थ्य के...
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
featured-img featured-img
American threat: The writer (right) with WHO Director-General Halfdan Mahler (extreme left) at the World Health Assembly meeting in Geneva in May 1982. File photo
Advertisement

साल 1982 में मैं संयुक्त सचिव, स्वास्थ्य मंत्रालय के रूप में जेनेवा में डब्ल्यूएचए की मीटिंग में शामिल था व एजेंडा पर आयोग बी का अध्यक्ष था। तब अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के नेता डॉ. जॉन ब्रायंट ने फिलस्तीनियों के स्वास्थ्य के मसौदे पर ऐतराज जता अमेरिकी मदद रोकने की चेतावनी दी। मैंने विवादित बिंदु हटाकर नये सिरे से मसौदा बनाया। बैठक में प्रस्ताव पर सर्वसम्मति बनी तब डब्ल्यूएचओ महानिदेशक डॉ. हाफडान महलर ने मुझे गले लगा लिया व रुंधे गले से कहा ‘मेरे दोस्त, डब्ल्यूएचओ को बचाने के लिए धन्यवाद।’

एन.एन. वोहरा

Advertisement

कुछ दिन पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत चुनावी अभियान के दौरान किए गए वादों पर अमल करने के लिए कई आदेश जारी करके की। इनमें से एक घोषणा यह थी कि अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की आर्थिक सहायता रोक देगा और संगठन त्याग देगा।
इस खबर ने चार दशक से भी पहले की एक घटना की याद को ताजा कर दिया, जब मैं स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर कार्यरत था और मई, 1982 में स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा में विश्व स्वास्थ्य सभा (डब्ल्यूएचए) की वार्षिक बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा था। सम्मेलन के विस्तृत एजेंडा को विभाजित किया गया और इस पर ए और बी नामक दो आयोग बनाकर चर्चा की गई। 1982 में 163 सदस्यों वाले डब्ल्यूएचए ने सर्वसम्मति से मुझे आयोग बी की कार्यवाही की अध्यक्षता करने के लिए चयनित किया। जेनेवा में हमारे राजदूत एपी वेंकटेश्वरन ने इस पर नई दिल्ली को सूचित किया कि भारत के लिए यह एक उल्लेखनीय ‘कूटनीतिक जीत’ है।
मेरी अध्यक्षता के तीसरे दिन, एफ्रो-एशियाई देशों के एक समूह द्वारा प्रस्तुत एजेंडा के पहले आइटम में एक प्रस्ताव था, जिसका उद्देश्य इस्राइल के कब्जे वाले क्षेत्रों में रहने वाले फलस्तीनियों की खराब स्वास्थ्य स्थितियों की ओर ध्यान आकर्षित करना था। सभा में अभी-अभी पहुंचे डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. हाफडान महलर मेरे बगल में बैठे थे, जब मैंने फलस्तीनी प्रतिनिधिमंडल के नेता को वह प्रस्ताव पेश करने के लिए आमंत्रित किया, जिसमें अन्य बातों के अलावा, इस विषय पर एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का उल्लेख था, साथ ही इसमें इस्राइल के स्वास्थ्य मंत्रालय, फलस्तीन मुक्ति संगठन और फलस्तीनी शरणार्थियों को राहत प्रदान करने वाली विशेष संयुक्त राष्ट्र एजेंसी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों का भी जिक्र था, इसमें संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के संबंधित प्रस्तावों का भी संदर्भ दिया गया था।
इससे पहले कि मैं इस मुद्दे पर बोलने के लिए अगले प्रतिनिधि को बुला पाता, डॉ. जॉन ब्रायंट, जो कि अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के जाने-माने नेता थे, अपने स्थान पर खड़े हो गए और गुस्से में ‘नेम कार्ड’ लहराते हुए तत्काल हस्तक्षेप करने की अनुमति मांगी। तल्ख शब्दों में डॉ. ब्रायंट ने शिकायत की कि यदि मसौदे के कुछ हिस्सों को तुरंत नहीं हटाया गया, तो ‘इस्राइल के सदस्यता अधिकारों एवं सेवाओं को समाप्त करने में सबसे हानिकारक परिणाम होगा।’ उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इस विषय-वस्तु पर और आगे चर्चा की गई, तो उन्हें निर्देश दिया गया है कि ‘बता दिया जाए कि अमेरिका, अभी और यहीं से, अपनी आर्थिक मदद निलंबित कर देगा और डब्ल्यूएचओ से हट जाएगा’ (उस समय, डब्ल्यूएचओ के कुल बजट का लगभग 25 प्रतिशत धन अमेरिका देता था!)। डॉ. ब्रायंट के बयान के बाद, असेंबली हॉल में अभूतपूर्व हंगामा हुआ- परस्पर विरोधी पक्ष और उनके सभी समर्थक खड़े होकर चिल्ला रहे थे।
मैं लगातार गैवल (हथौड़ा) पीटता रहा और व्यवस्था बनाए रखने की अपील करता रहा, लेकिन शोरगुल में इसका कोई असर न था। फिर भी मैं यह घोषणा करने में सफल रहा कि कार्यवाही अगले एक घंटे के लिए स्थगित कर दी गई है। डॉ. महलर के साथ एक संक्षिप्त परामर्श के बाद, जो शब्दों से परे हताश स्थिति में थे, मैं हॉल में गया और अगले लगभग दो घंटों तक इस दुर्भाग्यपूर्ण विवाद के प्रमुख हितधारकों के साथ वार्ताएं कीं। यह महसूस करते हुए कि विवाद को आसानी से सुलझाया नहीं जा सकता, मैंने घोषणा की कि आयोग की बैठक अब अगली सुबह होगी।
मैंने आयोग बी के सचिव से प्रस्ताव के मसौदे से संदर्भित सभी रिपोर्टें और प्रस्तावों की प्रतियां प्राप्त कीं। मैंने उनसे यूएसए, इस्राइल, फलस्तीन और एफ्रो-एशियाई समूह के प्रतिनिधिमंडलों के नेताओं से संपर्क करने और उस शाम 6 बजे से मेरे लिए उनसे मिलने का समय लेने का अनुरोध किया, इन बैठकों के बीच एक घंटे का अंतराल रखा गया। अपने होटल के कमरे में वापस आकर, मैंने अगले लगभग छह घंटे सभी प्रासंगिक दस्तावेजों का अध्ययन करने, नोट्स लेने और तमाम संभावित विवादित बिंदुओं का हल सोचकर प्रस्ताव के मसौदे को संशोधित करने में बिताए, विशेष रूप से उस हिस्से को फिर से तैयार करने में, जिसका डॉ. ब्रायंट के अनुसार, इस्राइल के राष्ट्रीय हितों पर नकारात्मक प्रभाव था।
शाम 6 बजे से, मैंने संबंधित प्रतिनिधिमंडलों के नेताओं के साथ लगातार चर्चाएं की। प्रत्येक बैठक में, मैंने विशेष रूप से अपने द्वारा तैयार किए गए संशोधित प्रस्ताव के प्रारूप पर चर्चा की और फलस्तीनी और एफ्रो-एशियाई प्रतिनिधिमंडलों का पूर्ण समर्थन प्राप्त करने में सफल रहा, जिनसे मैं दोनों बार मिला था। जब मैं इस्राइली समूह से मिला तो रात के 9 बज चुके थे और काफी लंबी चर्चा के बाद मैं उनकी सहमति प्राप्त करने में सफल रहा। जब मैं उस होटल में पहुंचा, जहां पर अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल रुका हुआ था, तब तक रात के 11 बज चुके थे। चूंकि अन्य सभी पक्ष पहले ही राज़ी हो चुके थे इसलिए मुझे उम्मीद थी कि यह अंतिम बैठक जल्द पूरी हो जाएगी। इसकी बजाय, मुझे संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित हुए दर्जनों इस्राइल-संबंधी प्रस्तावों से गुजरना पड़ा, अलबत्ता इनमें से एक भी मौजूदा विवाद में प्रासंगिक नहीं था। मैंने अपना धैर्य बनाए रखा और अंत में, नए मसौदे के लिए डॉ. ब्रायंट का समर्थन प्राप्त करने में सफल रहा।
अपने होटल में पहुंचते-पहुंचते रात के 1 बज गए थे। उससे पहले नए मसौदे की एक साफ-सुथरी हस्तलिखित प्रति– जिस पर मैं सभी पक्षों को सहमति पाने में सफल रहा था- डब्ल्यूएचओ की एक जिम्मेदार कार्यकारी अधिकारी सुश्री सिमोन को सौंप दी। उन्होंने अगली सुबह सत्र शुरू करने से पहले आवश्यक संख्या में प्रतियां बनाने और सभा में वितरित करने की जिम्मेवारी लेना माना (हालांकि अगला दिन तो पहले ही शुरू हो चुका था!)
जब डॉ. महलर और मैं मंच पर पहुंचे तो सभा हॉल में एक असहज शांति थी। सभा को क्रमवार चलाते हुए, मैंने पिछली दोपहर से लेकर अब तक के घटनाक्रमों के बारे में संक्षेप में जानकारी दी और बताया कि किस प्रकार मैं अपने द्वारा तैयार संशोधित मसौदा प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए तमाम संबंधित सदस्य देशों के नेताओं को राजी करने में सफल रहा। मैंने पूछा कि क्या इस प्रस्ताव को अपनाए जाने पर किसी को कोई आपत्ति है। जब कोई एतराज नहीं आया, तब मैंने गैवल मारा और घोषणा की कि प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाता है। सभी ने राहत की सांस ली।
इससे पहले कि मैं अगले विषय पर जा पाता, डॉ. महलर अपनी सीट से उठे, मेरे हाथ पकड़े और मुझे गले लगा लिया। रुंधे गले में उन्होंने कहा ‘मेरे दोस्त, डब्ल्यूएचओ को बचाने के लिए धन्यवाद।’
लेखक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे हैं।
Advertisement
×