सुनील दीपक
17वीं से बीसवीं शताब्दी में यूरोप के कुछ देशों ने एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका महाद्वीपों के विभिन्न देशों पर कब्ज़ा कर लिया। इन देशों की कला व सांस्कृतिक धरोहरों को उठाकर वे उन्हें अपने देशों में ले गये जहां इनके लिए संग्रहालय बनाये, जिनमें विभिन्न देशों से लायी वस्तुओं को अपने देशवासियों को दिखाया। इसके पीछे एक कारण यह दिखाना था कि देखो ये देश कितने पिछड़े और संस्कृतिविहीन थे। समय के साथ, नये स्वतंत्र हुए विकासशील देशों ने धीरे-धीरे अपने संग्रहालय बनाने शुरू किये हैं। डिजिटल तकनीक के विकास ने संग्रहालयों को इंटरएक्टिव बना दिया जिससे दर्शकों को हर प्रदर्शित वस्तु के बारे में जानकारी पाने का एक नया माध्यम मिला। मुझे अपना राष्ट्रीय संग्रहालय बहुत अच्छा लगता है। मैंने यूरोप में कई संग्रहालय देखे हैं, मुझे यहां की प्रदर्शनी विदेशों के किसी भी संग्रहालय से कम नहीं लगती। दिल्ली में जब भी मौका मिलता है मैं राष्ट्रीय संग्रहालय में अवश्य एक चक्कर लगा लेता हूं। मेरे विचार में राष्ट्रीय संग्रहालय में इतिहास, संगीत, धर्म, संस्कृति आदि के गाइडिड टूर होने चाहिये ताकि लोगों को हमारे इतिहास के बारे में किताबी समझ के दायरे से बाहर का ज्ञान मिले।
दिल्ली के पास गुरुग्राम में, दिल्ली मेट्रो के अंजनगढ़ स्टेशन के पास आनन्दग्राम में एक सुन्दर संग्रहालय है, संस्कृति संग्रहालय। यह छोटा-सा है लेकिन यहां भारत के विभिन्न राज्यों से आयी जनजातियों द्वारा बनाई गयी मिट्टी की कला वस्तुओं का संग्रह मुझे बहुत अच्छा लगा। केरल में कोची का जनजाति संग्रहालय एक निजी संग्रहालय है जो केरल प्रदेश के वास्तुशिल्प, कला, सभ्यता व संस्कृति से परिचित कराता है। नगालैंड की राजधानी कोहिमा से थोड़ी दूर किसामा सांस्कृतिक धरोहर गांव है जहां नगा जनजातियों के घरों, पोशाकों तथा कलाओं को दिखाया गया है। गुवाहाटी के छह मील क्षेत्र के पास पंजाबाड़ी में असमिया संगीतकार व कलाप्रेमी भूपेन हज़ारिका द्वारा स्थापित कला क्षेत्र संग्रहालय में असम की साहित्य, नृत्य, कला, नाटक तथा जनजातियों से जुड़ी परम्पराओं को प्रदर्शित किया गया है। मध्य प्रदेश की विभिन्न जनजातियों के आम जीवन की वस्तुएं, उनके घर, वस्त्र, रीतिरिवाज़, विभिन्न कलाओं आदि से जुड़ी इन संग्रहालयों में इतनी वस्तुएं हैं कि उनको देखने और समझने के लिए कई महीने चाहिये।
साभार : दीपक सुनील डॉट कॉम