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वक्त करे बेहाल, नेकी कर गड्ढे में डाल

व्यंग्य/तिरछी नजर
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यह प्राकृतिक-सा है। बारिश जल लाती है और हम गड्ढे। गड्ढों से जल संरक्षण स्वतः हो जाता है। इनमें जल-संचयन होता है। बारिश के साथ सड़कों पर छोटे, बड़े और विशाल आकृति के गड्ढे उग आते हैं। सड़कों के निर्माण से विकास को आने में सालों लग जाते हैं, जबकि गड्ढे पहली फुहार में ही खिल उठते हैं।

इन दिनों सड़कों पर गड्ढे ही गड्ढे हैं। गड्ढे हैं तो सड़कें हैं। सड़कें हैं तो गड्ढे होना लाजि़मी है। गड्ढे अस्तित्व में पहले आए। गड्ढे नहीं होते तो सड़कें बनाने का ख्याल नहीं आया होता। इसलिए सड़कों के सीने पर गड्ढों का उभर आना स्वाभाविक है। दुनिया में पहचान सर्वोपरि है। गड्ढे हमारी सड़कों की पहचान हैं। ये पहचान ही ठेकेदारों, अधिकारियों और नेताओं को ज़िंदा रखती है। दरअसल, पहचान का खो जाना आदमी का मिट जाना होता है।

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यदि सड़कों पर गड्ढे नहीं होते तो जनकलाल के घर पहुंचना मुश्किल है। गड्ढों के सामने जीपीएस फेल है। जीपीएस आपको भटका सकता है, गड्ढे नहीं। डिलीवरी बॉय इन गड्ढों की मार्फ़त उनके घर आसानी से पहुंच जाता है। वे उसे समझा देते हैं, ‘लेबर चौराहा से उत्तर की ओर मुड़ने पर बहुत पुराना बड़ा-सा गड्ढा मिलता है। उसे पार करने के बाद आधा किलोमीटर की दूरी पर एक और गड्ढा सड़क के लंबवत‍् दिखाई देगा। इसे समझदारी से पार करना पड़ेगा। लोगों ने सुभीता के लिए इस पर ईंटे बिछा रखी हैं। उसी पर से मोटर साइकिल निकल जाती है। गड्ढा पार करते ही दाहिनी ओर मुड़ना है। बस बीस कदम चलोगे तो फिर एक दरिया की माफिक गड्ढा पड़ेगा। वहीं बाजू में मेरा घर है। गड्ढे में मत उतरना, खतरनाक है। गड्ढे के पहले गाड़ी रोककर मोबाइल पर घंटी मार देना। मैं कूदते-फांदते पहुंच जाऊंगा।’

गड्ढे हमारी पहचान होते हैं। सदियों तक माना जाता रहा है कि चंद्रमा पर कोई बुढ़िया चक्की से आटा पीसती दिखाई देती है। जबकि खगोलशास्त्रियों ने खोजा कि वहां कोई बुढ़िया नहीं है, न ही चक्की वगैरह। वहां एक विशालकाय गड्ढा है जो धरती से चक्की चलाती बुढ़िया की तरह दिखाई देता है। चंद्रमा ही क्यों मंगल की सतह पर भी गड्ढों की पहचान की जा रही है। खगोलशास्त्रियों में ग्रहों पर गड्ढे खोजने की होड़ लगी है। वे गड्ढे खोजते हैं और अपना नाम दे देते हैं। ऐसी स्थिति में गड्ढों से सड़कों को पहचाना जाए इसमें क्या बुराई है? गड्ढों के संरक्षण का नेक काम चलते रहना चाहिए। जनकलाल ने तो अपने घर के सामने के गड्ढे का नामकरण अपने नाती के नाम पर रखने का विचार किया है। सो भाई, नेकी कर गड्ढे में डाल।

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