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व्यावहारिक अनुभव के साथ सैद्धांतिक ज्ञान भी

लीगल एड क्लीनिक
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लीगल एड क्लीनिक के जरिये छात्र समाज में जरूरतमंदों की मदद करने के लिए प्रेरित होते हैं। उन्हें वकीलों, न्यायाधीशों और अन्य कानूनी पेशेवरों से बातचीत का मौका मिलता है। इस अनुभव से छात्रों को अपने भविष्य के करियर के लिए व्यावहारिक दिशा मिलती है।

डॉ. सुधीर कुमार

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कानून का अध्ययन केवल सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त करने तक सीमित नहीं है। यह एक व्यावहारिक पेशा है, जो समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, लीगल एड क्लीनिक कानून के छात्रों के लिए एक अनूठा मंच प्रदान करते हैं, जहां वे सैद्धांतिक ज्ञान को व्यवहार में लाने के साथ-साथ समाज सेवा भी कर सकते हैं।

भारतीय बार काउंसिल (बीसीआई) कानून विश्वविद्यालयों में कानूनी सहायता क्लीनिकों की स्थापना और संचालन को अनिवार्य मानती है। इन क्लीनिकों का उद्देश्य छात्रों को सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक अनुभव प्रदान करना है। उन्हें गरीबों तथा वंचितों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए प्रेरित करना है। बीसीआई इन क्लीनिकों की नियमित निगरानी करती है, ताकि छात्रों को उचित मार्गदर्शन और प्रशिक्षण मिल सके। कानूनी सहायता क्लीनिक न होने पर शिक्षा संस्थानों पर जुर्माना, शो कॉज नोटिस, अनुशासनात्मक कार्रवाई या मान्यता रद्द करने जैसी कड़ी कार्रवाइयां की जा सकती हैं।

लीगल एड क्लीनिक ऐसे केंद्र होते हैं, जहां कानून के छात्र जरूरतमंद लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करते हैं, जिससे छात्रों को वास्तविक जीवन के कानूनी मुद्दों से निपटने का अनुभव मिलता है। वे कानूनी प्रणाली को गहरे से समझते हैं। ये क्लीनिक परिवारिक, भूमि, श्रम विवाद जैसे विभिन्न मामलों में मदद करते हैं। भारत में कई विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में लीगल एड क्लीनिक स्थापित किए गए हैं। सरकार भी विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से इनका समर्थन करती है।

लीगल एड क्लीनिक छात्रों को अपने कानूनी ज्ञान को सैद्धांतिक से परे वास्तविक जीवन की स्थितियों में लागू करने का अनूठा अवसर प्रदान करते हैं। यहां वे विभिन्न कानूनी मामलों से निपटते हैं, लोगों को कानूनी सलाह देते हैं, और कानूनी सिद्धांतों को व्यावहारिक अनुभव के साथ समझते हैं।

इसमें भागीदारी से छात्र समाज सेवा के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और जरूरतमंदों की मदद करने के लिए प्रेरित होते हैं। यहां उन्हें वकीलों, न्यायाधीशों और अन्य कानूनी पेशेवरों से बातचीत का मौका मिलता है, जिससे उनका नेटवर्क मजबूत होता है। इस अनुभव से छात्रों को अपने भविष्य के करियर के लिए व्यावहारिक तैयारियां मिलती हैं। एक कॉर्पोरेट कानून का छात्र छोटे व्यवसायों को कानूनी सलाह देकर कॉर्पोरेट कानून के पहलुओं को समझ सकता है।

कानूनी सहायता क्लीनिक में छात्रों को शामिल करना आवश्यक है, जिससे उन्हें वास्तविक मुकदमे और व्यावहारिक अनुभव प्राप्त हो सके। अनुभवी अधिवक्ताओं का मार्गदर्शन, कानूनी प्रक्रियाओं और नैतिक मानदंडों की समझ जरूरी है। क्लीनिक संचालकों को सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए। इसके अलावा, क्लीनिक को आधुनिक संसाधनों जैसे कंप्यूटर, इंटरनेट और कानूनी पुस्तकालय से सुसज्जित किया जाना चाहिए।

इसमें शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्हें छात्रों के साथ सहयोगी संबंध स्थापित करना चाहिए, ताकि वे अपनी समस्याओं को खुलकर साझा कर सकें। शिक्षक को प्रायोगिक शिक्षण पद्धतियों, जैसे मॉक कोर्ट और क्लीनिकल लीगल एजुकेशन के माध्यम से छात्रों को व्यावहारिक अनुभव देना चाहिए। वे छात्रों को यह समझाएं कि लीगल एड क्लीनिक समाज सेवा का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। शिक्षक को अपने ज्ञान को अपडेट रखना चाहिए, छात्रों में आत्मविश्वास पैदा करना चाहिए और उन्हें नेतृत्व के गुण विकसित करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

विश्वविद्यालयों को पर्याप्त बजट और प्रशिक्षित कर्मचारियों की उपलब्धता सुनिश्चित करना, स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करना और विभिन्न प्रकार के कानूनी मुद्दों के लिए कार्यक्रम विकसित करना चाहिए। इसके अलावा, विद्यार्थियों की भागीदारी बढ़ाना, जागरूकता अभियान चलाना, नियमित मूल्यांकन करना और अध्यापकों की सक्रिय भूमिका सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है। तकनीक का उपयोग और कानूनी सेवा प्राधिकरणों के साथ सहयोग करके भी इन क्लीनिकों को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।

लीगल एड क्लीनिक की प्रभावी निगरानी के लिए नियमित बैठकें, विद्यार्थियों से प्रगति रिपोर्ट लेना, अध्यापकों द्वारा सुपरविज़न, कार्यक्रम का मूल्यांकन, लोगों से फीडबैक लेना, पारदर्शिता बनाए रखना, विद्यार्थियों को कानूनी सलाह देना आदि महत्वपूर्ण उपाय हैं। इन उपायों से क्लीनिक के उद्देश्यों की प्राप्ति, विद्यार्थियों का विकास और लोगों की संतुष्टि सुनिश्चित की जा सकती है।

लेखक कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के विधि विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं।

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