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मूस मय सब जग जानी, दर-दर की कहानी

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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अशोक गौतम

मैं प्रदर्शनप्रिय जीव हूं। प्रदर्शन मेरे डीएनए में है। मैं हर अवसर चूक सकता हूं, पर प्रदर्शन का कोई भी अवसर नहीं चूकता। इसी प्रदर्शनप्रियता के चलते कल मेरी सरकारी दाल के पैकेट में मरा मूस निकला तो हर बार की तरह प्रदर्शन के अवसर का फायदा उठाने वाले जीव को प्रदर्शन का फिर मौका मिला।

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लोकतंत्र में प्रदर्शन का कोई लाभ हो या न, पर एक लाभ जरूर होता है, और वह ये कि आप घरवालों की नजरों में आएं या न, पर मीडिया वालों की नजरों में एकदम आ जाते हैं। आजकल बात-बात पर प्रदर्शन करने वालों को मीडिया कैमरा उठाता है।

सरकारी दाल के पैकेट में मरा मूस मिलते ही मेरी बांछें खिल गईं। खिलीं भी ऐसी कि जिन्हें जितना मन करता खिला लेता। और मैंने सोशल मीडिया पर ज्यों ही सरकारी दाल के पैकेट में मरे मूस का लाइव वीडियो डाला तो तहलका मच गया। हर पल सोशल मीडिया पर पैनी नजर रखने वालों ने इसे आंखों आंख लिया। लगा, एक बार फिर मैंने व्यवस्था की पोल खोल दी। वैसे पहले से ही खुली चीजों की पोल खोलना कोई बहादुरी का काम नहीं होता। इधर सोशल मीडिया पर दाल के पैकेट में मिले मरे मूस का मेरा वायरल वीडियो शेयर हुआ उधर दनादन लाइक, कमेंट्स के बीच अज्ञात का फोन आ गया।

‘बंधु! ये मैं क्या देख रहा हूं?’

‘सरकारी दाल के पैकेट में मरे मूस का वीडियो,’ मैंने अव्वल दर्जे का जागरूक नागरिक होते कहा।

‘यार! सोशल मीडिया का मिसयूज क्यों करते हो?’

‘क्या मतलब आपका?’ मुझे गुस्सा आ गया। अब इनसे कोई पूछे कि आज सोशल मीडिया का यूज करता ही कौन है जो मैं करूं?

‘अब दाल के पैकेट में मूस ही निकलेगा न! हाथी तो नहीं निकलेगा? सरकारी दाल के पैकेट से हाथी निकलता तो खबर होती। जिंदा मूस का सरकारी आटे के बोरे वाला वीडियो डालो तो मजा आए। रही बात अब मूसों की तो मूस आज कहां नहीं? आटा-दाल मूस हैं। दफ्तर-दफ्तर मूस हैं। अफसर-अफसर मूस हैं। घर-घर मूस हैं। दर-दर मूस हैं। फाइलों पर उछलते मूस हैं। कुर्सियों पर मचलते मूस हैं। सड़क पर मूस हैं। संसद में मूस हैं। विकास के खेतों में मूस हैं। सूखी रेतों में मूस हैं।

ये समाज आदमियों का नहीं, मूसों का समाज है डियर! यहां हर आदमी कहीं न कहीं मूस है। कोई संस्कार कुतर रहा है तो कोई आचार कुतर रहा है। कोई सदाचार कुतर रहा है तो कोई राजा का दरबार कुतर रहा है। कोई विचार कुतर रहा है तो कोई व्यवहार कुतर रहा है। कोई अखबार कुतर रहा है तो कोई देश की पतवार कुतर रहा है। इसलिए सरकारी दाल के पैकेट में मरे मूस का वीडियो वायरल करने वाले हे कलमघिसू! ‘मूस मय सब जग जानी, करहुं प्रनाम जोरी जुग पानी,’ लगा बंदे ने ज्यों मूसों पर पोस्ट पीएचडी कर रखी हो।

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