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सुनहरे सपनों के लिए विदेश गमन का मोह

बेरोजगारी का संकट
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सुरेश सेठ

भारत की युवा आबादी पूरी कार्यशील आबादी का आधा हिस्सा है। ‘कार्यशील’ इसलिए क्योंकि देश में एक बड़ी संख्या ऐसी है जो सकल घरेलू उत्पाद में योगदान नहीं देती। देश की आधी आबादी महिलाएं हैं और आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि हम उनकी क्षमताओं का आधे से भी कम उपयोग कर रहे हैं। यदि हम इस शक्ति का प्रभावी ढंग से उपयोग करें, तो संभव है कि भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने में बहुत कम समय ले।

35 साल तक की उम्र की आबादी देश की वह श्रेणी है जिसमें काम करने की पूरी सामर्थ्य होती है। लेकिन इस सामर्थ्य का उचित उपयोग देश में नहीं हो रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में छुपी हुई बेरोजगारी एक ज्ञात समस्या है। जब नौजवान खेतों में काम करते हैं, तो इससे खेतों की कुल आय में कोई वृद्धि नहीं होती। इसका मतलब यह है कि अगर ये लोग खेतों को छोड़कर किसी अन्य व्यवसाय में चले जाएं, तो कृषि के स्तर पर कोई महत्वपूर्ण गिरावट नहीं आएगी। लेकिन सवाल यह है कि वे जाएं कहां?

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देश में कोविड महामारी की मार से प्रभावित महानगरों की कामगार आबादी, जो गांवों में आश्रय खोजने आई थी, अब भी उसी तलाश में है। दावों के बावजूद, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में न तो लघु और कुटीर उद्योगों का विकास हुआ है और न ही फसलों के विनिर्माण की छोटी-छोटी फिनिश्ड पार्टिकल बनाने वाली फैक्ट्रियां कस्बों में स्थापित हो पाई हैं। डिजिटल भारत के युग में निवेशकों की अपेक्षाएं इतनी बदल गई हैं कि विश्वविद्यालयों से पारंपरिक शिक्षा प्राप्त करने वाले युवा खुद को बेकार महसूस करते हैं और उन्हें रोजगार नहीं मिल रहा। जैसे-जैसे रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता भारत में अपनी जड़ें जमा रही हैं, इस आबादी के लिए उचित रोजगार पाने में और भी कठिनाई होगी। अब नौजवानों का सपना विदेशी मुद्रा की चमकती धरती की ओर उड़ान भरना है। खाड़ी देशों के दीनार भी उन्हें लुभाते हैं। आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए वे इन देशों की ओर पलायन का सपना देखते हैं। इस बीच, कई एजेंसियां भारत में उभर आई हैं, जो वैध या अवैध तरीके से विदेश भेजने का दावा करती हैं।

पिछले साल से, कनाडा, जो विदेशों में सबसे बड़ा आश्रय देने वाला देश माना जाता है, ने भारत से पलायन करने वाले युवाओं के लिए अपनी नीतियों में बदलाव किया है। अब कनाडा में भारत से आने वाले छात्रों के लिए वीजा की संख्या 3.6 लाख तक सीमित कर दी गई है, और उनके आव्रजन की लागत भी बढ़कर 22-23 लाख रुपये से 37 लाख रुपये तक पहुंच गई है। इसके साथ ही, डिग्री पूरी करने के बाद छात्रों को अब वहां वर्क परमिट के लिए आवेदन करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। चाहे यह सूचना पुष्ट हो या अपुष्ट, वास्तविकता यही है कि इंग्लैंड, अमेरिका, और कनाडा अभी भी भारतीय युवाओं के पलायन के लिए सबसे आकर्षक स्थल माने जाते हैं। जबकि वैध तरीके से जाने की प्रक्रिया कठिन होती जा रही है, अवैध तरीके से पलायन करने वाले ‘डंकी रूट’ तेजी से बढ़ रहे हैं।

पिछले दिनों दावा किया गया कि दिसंबर, 2023 से अब तक 5,000 से अधिक भारतीय अवैध रूप से कनाडा की सीमा पार करके अमेरिका में प्रवेश कर चुके हैं। अमेरिका की बड़ी सीमा दो प्रमुख स्थानों पर है : एक मैक्सिको के साथ और दूसरी कनाडा के साथ। कनाडा की सीमा लगभग 9,000 किलोमीटर लंबी है, और इतनी लंबी सीमा पर आव्रजन को पूरी तरह से नियंत्रित करना मुश्किल होता है। इसके विपरीत, मैक्सिको की सीमा इसके आधे आकार की है। यही दो सीमाएं हैं जहां अवैध प्रवासन के 'डंकी रूट' प्रचलित हैं। कोशिश यही है कि वहां अवैध तरीके से काम करके धीरे-धीरे वर्कफोर्स में शामिल हो जाएं। अमेरिका में उद्यमियों को ऐसे कार्यबल को बहुत कम दाम पर काम पर रखना लाभदायक होता है, जिससे उनके लिए यह एक आकर्षक विकल्प बन जाता है।

शरण मांगने वाले भारतीय नागरिकों की संख्या में भी वृद्धि देखी जा रही है। 2022 से इंग्लैंड में शरण मांगने वालों की संख्या 136 प्रतिशत बढ़ गई है, और 2023 में 1,319 अन्य नागरिकों ने शरण मांगी, जो सभी कनाडा से ट्रांजिट कर अमेरिका पहुंचे थे। ये सभी अवैध तरीके से विदेशी जमीन पर अपने ठिकाने की तलाश में हैं।

दरअसल, यह कड़वा सच दिखाता है कि भारत की तेज आर्थिक वृद्धि दर के बावजूद, युवाओं को ठिकाना नहीं मिल रहा है। सम्मानजनक रोजगार की कमी ही वह कड़वा सच है जो हमारे युवाओं को रोजगार का विदेशों में ठिकाना खोजने को मजबूर कर रहा है।

विश्व के कई देशों ने अपनी आव्रजन नीतियां सख्त कर दी हैं, लेकिन अवैध घुसपैठ का यह नया धंधा, जो विदेशी सरहदों से दूसरे देशों में जा रहा है, भारत की छवि को धूमिल करता है। साथ ही हमारे आर्थिक संघर्ष पर सवाल उठाता है। आत्मनिर्भरता का दावा तब पूरा होगा जब हम अपनी युवा शक्ति को उसकी क्षमताओं के अनुसार सम्मानजनक रोजगार प्रदान कर सकें।

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