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शुभमन के उभार से भारतीय क्रिकेट में शुभ संकेत

किसी वरिष्ठ खिलाड़ी की गैरमौजूदगी में, भारतीय टीम इंग्लैंड के चुनौतीपूर्ण दौरे पर थी जिसकी कप्तानी नवनियुक्त कप्तान शुभमन गिल कर रहे थे। टीम में कोई ‘ मार्गदर्शक’ खिलाड़ी नहीं था जिससे आशंकाएं भी थीं। हार-जीत अपनी जगह लेकिन लीड्स...
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किसी वरिष्ठ खिलाड़ी की गैरमौजूदगी में, भारतीय टीम इंग्लैंड के चुनौतीपूर्ण दौरे पर थी जिसकी कप्तानी नवनियुक्त कप्तान शुभमन गिल कर रहे थे। टीम में कोई ‘ मार्गदर्शक’ खिलाड़ी नहीं था जिससे आशंकाएं भी थीं। हार-जीत अपनी जगह लेकिन लीड्स मैदान में कुशल बल्लेबाज गिल ने कप्तान की जिम्मेदारी बखूबी निभाई। उसकी मुस्कान व विनम्रता अब क्रिकेट प्रेमियों को भाएगी।

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प्रदीप मैगज़ीन

जब जीत की खुशी से ज्यादा हार का डर बन जाए, तो मानस पर संदेह की परत चढ़ जाती है। सफलता की राह में बाधाएं खड़ी करने वाले इस स्व-निर्मित भय को मिटाने के लिए असाधारण प्रयासों की जरूरत पड़ती है।

जब सफलता और स्टारडम की एक समान चाहत रखने वाली भारतीय टीम का कप्तान शुभमन गिल को नियुक्त किया गया, तो पूरा भारत आशंकित था। एक ऐसे समाज के लिए जिसे शून्यता में रहने से डर लगता है, वह शून्यता जो ‘दैवीय प्रकाश पुंज’ के न रहने से बनती है, ऐसे में बेचैन बने अपने अस्तित्व को कुछ मायने और सार देने के लिए एक ‘देवदूत’ की बेतरह आकांक्षा करता है। भारत के क्रिकेट प्रेमी कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि विराट कोहली और रोहित शर्मा के बिना उनकी दुनिया कैसी दिखेगी।

उनका ‘परम प्रिय’ कोहली दूर चला गया था, जिसने सालों तक एक राजा या मालिक की तरह ‘सल्तनत’ पर बादशाहत की। हमारे समय की सबसे प्रभावशाली क्रिकेट शख्सियत, जिसकी प्रशंसक पूजा करते हैं और टेलीविजन चैनलों का सबसे प्रिय। उसने इंग्लैंड में अपने साथियों के साथ टेस्ट मैच में जूझने की बजाय विंबलडन में टैनिस मैच देखना पसंद किया। क्या पता, टेस्ट रन औसत सूची में नीचे फिसलने का डर और लोगों की अपेक्षाओं का बोझ, रन बनाने और सैकड़ा मारने से मिलने वाली खुशी पर हावी हो गया हो।

रोहित शर्मा, सितारों वाली नखरेबाज़ी से सदा दूर, आम लड़के की छवि वाला, पर जिसने क्रिकेट में बहुत ऊंचा मुकाम हासिल किया। उसे यह अहसास करने में थोड़ा वक्त लगा कि उसका वक्त चुक गया है, आखिरकार, इंग्लैंड दौरे के लिए टीम चयन से एक दिन पहले उसने भी टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कर दी। ऐसे में किसी वरिष्ठ मार्गदर्शक की गैरमौजूदगी में, इंग्लैंड के कठिन और चुनौतीपूर्ण दौरे पर भारतीय टीम दिशाहीन स्थिति में पहुंच सकती था। घर में और विदेशों में, भारतीय टीम को मिली शृंखलाबद्ध हार की पृष्ठभूमि में, यह आशंका निराधार नहीं थी।

भारत ने लीड्स के मैदान में रक्षात्मक मानसिकता के साथ पहले टेस्ट मैच में कदम रखा, जो टीम चयन में परिलक्षित हो रहा था। जो आदमी अब सब फैसले लेने और टीम नियंत्रक प्राधिकारी के तौर पर पीछे बचा, वह था विवादास्पद कोच गौतम गंभीर। उसकी इस निर्विवाद शक्ति के पीछे ज्यादा बड़ा कारक है सत्तारूढ़ पार्टी का पूर्व सांसद होना बजाय इसके कि बतौर क्रिकेटर उसकी सम्मानजनक साख रही है या रणनीति या मानव-प्रबंधन कौशल की अच्छी समझ है, हालांकि कोलकाता नाइट राइडर के टीम-कोच के रूप में आईपीएल में वह काफी सफल रहा।

फुटबॉल के विपरीत, क्रिकेट में टीम का चेहरा इसका कप्तान होता है न कि कोच या मैनेजर। एक ऐसे खेल में, जो पांच दिन चलता है और मैदान में लिए जाने वाले फैसलों को दूर से बैठकर प्रेषित करना मुश्किल है, कप्तानी का काम कोच के आदेशों से नहीं चल सकता। इन जिम्मेदारियों का भार संभालने और विभिन्न क्षमताओं एवं स्वभावों वाले शेष दस साथी खिलाड़ियों को संभालने एवं अगुवाई करने का बोझ पाकिस्तान की सीमा से लगे पंजाब के एक छोटे से गांव के एक युवा के कंधों पर आन पड़ा।

ग्रामीण पंजाब का एक लड़का, जिसके कृषक पिता ने खेती के साथ-साथ बेटे को पेशेवर क्रिकेटर बनाने में मेहनत की। शुभमन एक रूढ़िवादी आक्रामक, आवेगी व बिना सोचे-समझे काम करने वाले चरित्र जैसा नहीं है। भारतीय क्रिकेट जगत में उत्तर भारतीय बनाम शेष भारतीय विभाजन को लेकर खूब कहानियां रही हैं, कि एक पक्ष में ‘बुद्धिमत्ता’ का अभाव है तो दूसरा पक्ष ‘अक्लमंदी’ से परिपूर्ण है। धारणा की इस लड़ाई में, यह बहुत कम मायने रखता है कि अत्यंत शालीन, अपने हुनर में लगभग लयात्मक गेंद फेंकने वाले गेंदबाजों में एक रहे बिशन सिंह बेदी अमृतसर से एक सिख थे। चंडीगढ़ के लड़के युवराज सिंह की ताकत बाएं हाथ की शानदार और धमाकेदार बल्लेबाजी की धार से थी। शालीनता भरे व्यक्तित्व के खिलाड़ियों के इस क्रम में शुभमन गिल का स्थान तीसरा है, बेहतरीन हुनरमंद, जो टी -20 क्रिकेट के इस काल में भी ‘बदसूरत स्ट्रोक’ खेलने से परहेज करता है।

मुक्त प्रवाह वाले उसके ड्राइव शॉट्स कीआर्क, शॉर्ट-आर्म पुल और गेंदबाज का मनोबल डिगाने के लिए क्रीज़ का इस्तेमाल करते हुए पिच की दूरी को छोटा या लंबा करने की समझ, एक सबक है कि कैसे बल्लेबाजी के जटिल कौशल में महारत हासिल की जाए। हम में से बहुतों को लगता था उसमें एक खामी है-बॉलिंग लाइन से हटकर खेलने की हड़बड़ी-जोकि इंग्लैंड के मौसम में तेज अथवा फिरकी पिचों पर घातक साबित हो सकती है। स्पष्ट रूप से उसे अपनी इस कमी का भान हो गया था, उसने बहुत अभ्यास कर इस पर काबू पा लिया और एक बार भी पुरानी गलती नहीं दोहराई। रिकॉर्डतोड़ रनों का अंबार पाकर गिल ने खुद को उस सर्वोच्च शिल्पकार के रूप में दर्शा दिया है, जिसकी उत्कृष्टतम स्तर की पेशकारी के पीछे की गई कड़ी मेहनत छिपी रही है।

जिम्मेदारी का भारी बोझ उसके कंधों पर आकर हल्का प्रतीत हो रहा है। लीड्स टेस्ट मैच लगभग उसका रहा, जब अपने खेल से भारत को हावी रखा, हालांकि समाप्ति हार में हुई। यह झटका मजबूत से मजबूत खिलाड़ी को डांवाडोल कर सकता था और कप्तान को तो अपनी अगली योजनाओं के रणनीतिक कार्यान्वयन में और भी अधिक असुरक्षित बना देता। लेकिन, दूसरे टेस्ट मैच में मिली जीत ने दर्शा दिया कि टीम सही रास्ते पर थी और इसने अपने आलोचकों से ज्यादा अच्छी तरह इस बात का मोल समझ लिया कि ‘वीरता में विवेक का बड़ा हाथ होता है’। हम नहीं जानते कि खांटी कोच गौतम गंभीर के साथ शुभमन की पटड़ी कितनी बैठ रही है और क्या करना है और क्या नहीं करना है, इसको लेकर दोनों ने अपनी-अपनी लाइन तय कर ली है या नहीं। आगे की डगर लंबी एवं कठोर है और यात्रा अभी शुरू हुई है।

आगे शृंखला क्या आकार लेगी, इसके बारे निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन इतना तय है शुभमन मृदुभाषी किंतु दृढ़ है, अनिश्चितता बेशक हो, किंतु आत्मविश्वास से लबरेज, अपनी टीम के साथियों पर नियंत्रण भी रखता है लेकिन साथ ही उनको उचित दायरा और सम्मान भी प्रदान करता है। स्थाई मुस्कुराहट वाले शुभमन का यह गुण अब जाकर उजागर हुआ है।

कप्तानी की कला केवल खिलाड़ियों पर चिल्लाना और डांटना नहीं है। यह बिना राय बदले, शांतचित्त और विनम्रता से दक्ष बने रहना है। टेलीविजन चैनलों को टीआरपी रेटिंग बटोरने के लिए अब कोहली की फुटेज बार-बार दोहराने की जरूरत नहीं पड़ने वाली। गिल की मनोहर मुस्कान हजारों उत्पाद लॉन्च कर सकती है। भारत को एक नया ‘आदर्श नायक’ मिल गया है।

लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं।

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