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आम चुनाव की दिशा प्रभावित करेंगे नतीजे!

विधानसभा चुनाव
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केएस तोमर

इस बात में शायद ही कोई संशय हो कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत के लिए पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे पर निर्भर हो गये हैं। इसका ज्वलन्त उदाहरण प्रधानमंत्री द्वारा मध्य प्रदेश के मतदाताओं के नाम जारी अपील है। वहीं भाजपा हाईकमान द्वारा मौजूदा मुख्यमंत्री और अन्य दावेदारों को नजरअंदाज कर किसी को भी आगामी मुख्यमंत्री के रूप में पेश न करने से लगता है कि शिवराज सिंह को पूरी तरह पीछे कर दिया गया है।

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वहीं इन राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों का साल 2024 के लोकसभा चुनाव पर क्या असर पड़ेगा, इसको लेकर अलग-अलग राय है। एक पक्ष का मानना है कि इनमें हार-जीत का लोकसभा चुनाव के नतीजे पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि प्रांतीय और देश के चुनावों में मतदाताओं की सोच अलग-अलग होती है। पिछले बार हिन्दी क्षेत्र के राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव हारने के बावजूद 2019 में भाजपा ने लोकसभा चुनावों में भारी जीत दर्ज की थी और मध्यप्रदेश की 29 में से 28, राजस्थान की 25 में से 24 और छत्तीसगढ़ की 11 में से 9 सीटें जीती थीं। अब यदि ये विधानसभा चुनाव भाजपा जीतती है तो लोकसभा चुनावों पर दोहरा असर होगा जिसके परिणामस्वरूप मोदी का तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना तय होगा। इस समय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता उच्च स्तर पर है और देश में मतदाताओं में भी पकड़ मजबूत है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि भाजपा को हिन्दुत्व एजेंडे का बहुत सहारा मिलेगा। चुनावों से पहले अयोध्या में राम मंदिर का जनवरी में निर्माण पूरा होने का लाभ भी पार्टी को मिलेगा। इसके अलावा भाजपा के पास साधनों की कमी नहीं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी पूरी तरह सक्रिय होगा। भाजपा मतदाताओं को यह समझाने का प्रयास करेगी कि एनडीए सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में अभूतपूर्व काम किया है जिसे आगे भी जारी रखना जरूरी है क्योंकि इसी नेतृत्व के तहत धारा 370 को हटाना और महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण बिल पास करना संभव हो सका।

इसके विपरीत पक्ष के लोग यानी भाजपा के आलोचक मानते हैं कि यदि पार्टी विधानसभा चुनाव हारी तो इसका प्रतिकूल असर लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा। उनका कहना है कि इस समय कई ऐसे कारण हैं जो भाजपा का गणित बिगाड़ सकते हैं। पहला यह कि अब कोई प्रकरण होने की संभावना नहीं है जिससे देश में राष्ट्रवाद की लहर बने। दूसरे, 2019 में कांग्रेस समेत विपक्षी दलों की साख निरंतर गिर रही थी और देश के सामने कोई विकल्प भी नहीं था। वहीं अब मोदी का करिश्मा इतना सशक्त नहीं कि वह भाजपा के 9 वर्ष के शासन के प्रति निराशा को पूरी तरह नकार सके। चौथी बात, महंगाई से परेशान आम आदमी में निराशा है। यह भी कि रोजगार संबंधी वादों को पूरा न करने के कारण युवा वर्ग नाराज है। वहीं दक्षिणी राज्यों में भाजपा के विजय रथ को कांग्रेस ने कर्नाटक में जीत दर्ज कर रोका तो अन्नाद्रमुक ने भाजपा से गठबंधन तोड़ पार्टी को बड़ा झटका दिया है। यदि भाजपा और इसकी सहयोगी पार्टियां दक्षिण से सम्मानजनक सीटें नहीं जीतीं तो पार्टी का 2024 में सत्ता में लौटना मुश्किल होगा ।

देश के लगभग सभी प्रमुख विपक्षी दल इंडिया गठबंधन में शामिल हो गए हैं। यदि इस गठबंधन के घटक सीटों पर समझौता करने में सफल रहे तो भाजपा की राह आसान नहीं होगी।

मध्य प्रदेश की बात करें तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर रणनीति के चलते भाजपा हाईकमान ने नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल आदि सांसदों के नाम पहली सूची में ही शामिल किये थे। पार्टी की सोच है कि केंद्रीय मंत्रियों का अपने क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव है। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि केंद्रीय मंत्री और सांसद विधानसभा चुनावों की जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं होते जो मध्य प्रदेश में घाटे का सौदा बन सकता है। हालांकि भाजपा ने शिवराज चौहान को मैदान में उतारा है।

नयी रणनीति के अनुसार इस बार भाजपा ने विधानसभा चुनावों में जीत के लिए 4 केंद्रीय मंत्रियों सहित 24 सांसदों को मैदान में उतारा है ताकि 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए सही माहौल बनाया जा सके। बात पुराने के स्थान पर नए चेहरे भी उतारने की हो तो यह प्रयोग उत्तराखंड, गोवा में तो सफल रहा लेकिन हिमाचल और कर्नाटक में असफल रहा।

वहीं हिमाचल और कर्नाटक में प्रधानमंत्री द्वारा धुआंधार प्रचार और हिन्दुत्व के सहारे के बावजूद भाजपा को शिकस्त मिली थी। इसके अलावा यदि तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) भी कांग्रेस के विजय रथ को नहीं रोक पाती तो इसका असर 2024 के लोकसभा चुनावों पर पड़ेगा। लेकिन यदि भारतीय जनता पार्टी जीत पाती है तो मोदी का तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ़ हो जाएगा।

लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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