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समाज के विश्वास व पीड़ित की आशा का कानून

नए आपराधिक क़ानूनों का क्रियान्वयन

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डॉ. सुमिता मिश्रा

धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र के नाम से विख्यात हरियाणा ने एक बार फिर देश की न्याय व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन का सूत्रपात किया है। भारतीय न्याय प्रणाली की जड़ें महाभारत और मौर्यकाल जैसी सभ्यताओं में गहराई तक जमी रही। जहां नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और न्याय की सर्वोच्चता सदैव अक्षुण्ण रही। इसी परंपरा को अक्षुण्ण रखते हुए, हरियाणा ने 1 जुलाई 2024 से प्रभावी हुए तीन नए आपराधिक कानूनों— भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, और भारतीय साक्ष्य अधिनियम— के सफल और प्रभावी क्रियान्वयन में अग्रणी भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री व केंद्रीय गृहमंत्री के नेतृत्व में यह परिवर्तन केवल विधियों में संशोधन नहीं, बल्कि न्याय-प्रणाली को औपनिवेशिक सोच से मुक्त कर संस्कृति, संवेदना और समसामयिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने का एक क्रांतिकारी कदम है।

दरअसल, इन नए क़ानूनों में भीड़ हिंसा, उन्नत तकनीकी अपराध तथा महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों पर विशेष ध्यान दिया गया है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में हरियाणा ने इन क़ानूनों को ज़मीनी स्तर पर लागू करने हेतु ठोस तैयारी की। राज्य के सभी जिलों में पुलिस अधिकारियों, लोक अभियोजकों और न्यायिक अधिकारियों को विस्तारपूर्वक प्रशिक्षण प्रदान किया गया। जांच अधिकारियों को आधार प्रमाणीकरण, त्वरित दस्तावेज़ीकरण और वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धतियों से सुसज्जित किया गया।

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भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 346 के अंतर्गत अब गंभीर अपराधों की सुनवाई प्रतिदिन करना अनिवार्य है। इससे न्याय प्रक्रिया में विलंब कम हुआ है। ‘चिह्नित अपराध’ योजना के अंतर्गत 1,683 जघन्य अपराधों की निगरानी उच्चतम स्तर पर हुई जिनमें फरीदाबाद, डबवाली और करनाल जैसे जिलों में दोषसिद्धि 95 प्रतिशत से भी अधिक रही है।

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हरियाणा ने न्याय प्रणाली में तकनीकी नवाचारों को भी पूर्णतः अपनाया है। वाहन चोरी जैसे मामलों में स्वतः प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकरण, आधार सत्यापित बयानों की रिकॉर्डिंग और मेडलीपर प्रणाली के माध्यम से चिकित्सा परीक्षण और शव परीक्षण की रिपोर्टिंग को समयबद्ध किया गया। इसके परिणामस्वरूप 90 प्रतिशत से अधिक मामलों का निपटारा एक सप्ताह के भीतर हुआ। ट्रैकिया प्रणाली के माध्यम से फॉरेंसिक प्रमाणों की जांच और लेखा-जोखा पूरी तरह पारदर्शी और उत्तरदायी बना है। फरवरी 2025 में राज्य सरकार द्वारा लागू हरियाणा गवाह संरक्षण योजना के तहत गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु उन्हें विभिन्न स्तरों में वर्गीकृत किया गया है, और उन्हें खतरे के अनुसार विशेष सुरक्षा प्रदान की गई। महिलाओं-बच्चों के विरुद्ध अपराधों के त्वरित निपटान हेतु गुरुग्राम, फरीदाबाद और पंचकूला में विशेष त्वरित न्यायालय कार्यरत हैं। चिन्हित अपराधों के तहत मामलों की निगरानी से दोषसिद्धि दर में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। अप्रैल 2025 तक 1,764 मामलों का निपटारा किया गया, जिनमें दोषसिद्धि दर 77.15 प्रतिशत रही। वर्ष 2024 में जुलाई से दिसंबर तक यह दर 89 प्रतिशत तक रही।

उल्लेखनीय मामलों में शीघ्र निर्णय हुए हैं। यमुनानगर जिले में एक नाबालिग बालिका के साथ दुष्कर्म व हत्या के मामले में 140 दिनों में मृत्युदंड दिया गया। इसी प्रकार गुरुग्राम और पानीपत के मामलों में मात्र 2 से 3 महीनों में निर्णय हो गया। अब न्याय में देरी की परंपरा समाप्त हो रही है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 356 के अंतर्गत अब ऐसे आरोपियों के विरुद्ध भी सुनवाई संभव है जो न्यायालय से अनुपस्थित हैं। हरियाणा में ऐसे 193 मामलों की पहचान की गई है, और चार मामलों में न्यायालयों ने अनुपस्थित आरोपियों के विरुद्ध निर्णय भी दिए हैं। हरियाणा ने विचाराधीन बंदियों की पेशी के लिए वीडियो कान्फ्रेंसिंग को भी अपनाया है। अब 78 प्रतिशत से अधिक पेशियां इसी माध्यम से की जा रही हैं, जिससे सुरक्षा और व्यय दोनों में लाभ हुआ है। राज्य में 2,117 स्थानों को गवाह गवाही केन्द्र के रूप में अधिसूचित किया गया है, जहां गवाह अपनी गवाही ऑडियो/वीडियो माध्यम से दे सकते हैं। प्रत्येक जिले में महिलाओं और संवेदनशील गवाहों के लिए पृथक कक्ष भी स्थापित किए गए हैं। निस्संदेह, यदि राजनैतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक प्रतिबद्धता और तकनीकी नवाचार का सही समन्वय हो तो न्याय व्यवस्था को जनपक्षीय, त्वरित और पारदर्शी बनाया जा सकता है। न्याय अब केवल क़ानून का विषय नहीं रहा, बल्कि यह अब समाज के विश्वास, पीड़ित की आशा और अपराधी के लिए दंड की गारंटी बन चुका है। हरियाणा अब इस न्यायिक नवजागरण का अग्रदूत बनकर देश को दिशा दे रहा है।

लेखिका हरियाणा सरकार के गृह, जेल, अपराध जांच एवं न्याय प्रशासन विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं।

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