पूरन सरमा
मुसद्दीलाल भ्रष्टाचार में लिप्त था और विभाग उसके खिलाफ जांच कराने पर आमादा था। इसलिए तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया गया। मुसद्दीलाल पर रिश्वत का आरोप था, लेकिन वह मुकर रहा था। कहता, वह रोटी के अलावा और कुछ नहीं खाता। विभाग में लगातार उसके खिलाफ शिकायतें आने पर उसे निलंबित कर दिया गया। समिति सदस्य आते, गप्पें मारते, नाश्ता करते, शाम को घर लौट जाते। तीन माह बाद समिति ने उसके घर, बुलावे का नोटिस भेजा। उसके घर ताला लगा था। चपरासी जाता, वापस लौट आता। एक दिन वह मिल गया। उसने चपरासी को आराम से बिठाया और पचास का नोट देकर कहा, पन्द्रह दिन तक मत आना। चपरासी बोला, यह तो पांच दिन चलेंगे। मुसद्दी ने सौ रुपये देकर कहा, अब ठीक है। चपरासी लौट गया। एक महीने बाद जांच समिति को चपरासी पर संशय हुआ। चपरासी से पूछा, तो उसने मना कर दिया। पड़ोसियों ने कहा, वह दो महीनों से लापता है।
जांच समिति की बैठक में तय हुआ कि समिति का एक सदस्य मुसद्दीलाल के घर जाकर स्थिति का पता करेगा। सदस्य घर गया, तो उसका दरवाजा खुला था, अंदर बैठा मुसद्दी गुलाब जामुन खा रहा था। समिति के सदस्य को देखकर मुसद्दी की बांछें खिल गईं। मैं आपका ही इंतजार कर रहा था। सदस्य बोला, मेरा इंतजार? उसने गुलाब जामुन की प्लेट सदस्य के आगे रखी। सदस्य बिदककर बोला-भ्रष्ट बनाना चाहते हो।
हमारे चपरासी को यही खिलाया होगा। वह बोला, वह तो काला धन लेकर गया। सदस्य बोला, सच-सच बताओ तुमने उसे क्या दिया? घबराइए नहीं, यह कहते हुए उसने सौ-सौ के नोट उसके सामने रखे, लेकिन सदस्य बोला- हम भ्रष्ट बन गए, तो क्या होगा? वह बोला, साहब किसी से कहूंगा नहीं। मैं भी ईमानदार था, तो बच्चे छोटी-छोटी चीजों के मोहताज थे। ईमानदारी में क्या है? कलम ही तो चलानी है आपको। दूसरे सदस्यों को भी संतुष्ट कर दूंगा। सदस्य रिश्वत लेकर चल दिया। ऐसा अन्य सदस्यों के साथ भी हुआ और छह महीने बाद मुसद्दी निर्दोष साबित हो गया। जांच समिति के कार्यालय पर ताला लग गया।