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मोहल्ले में ठंडी बयार थी एक फ्रिज से अब रिश्ते फ्रीज

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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अब घरों में 500 लीटर का फ्रिज है, पानी बोतल में, बर्फ ट्रे में, पर ठंडक? वो दिलों से डिलीट फॉर एवरी-वन हो चुकी है। रिश्ते डीप फ्रीजर में चले गये हैं। बात करने लगो तो ओले पड़ने लगते हैं। जरा-सी गर्मी होने पर ए.सी. चला देने वाली पीढ़ी अब एक-दूसरे के गुस्से को ठंडा करने में फेल है। कभी गर्मियों में छत पर टेबल फैन और मटके का पानी, अब सप्लिट एसी और बॉटल्ड वॉटर लेकिन न वो नींद आती है, न तृप्ति। बर्फ जमी है फ्रिजर में पर इंसान की बोली में नहीं। वहां अंगारे हैं। बात-बात पर गाली और गोली। रिश्ते जब बर्फ बन जायें तो उन्हें गर्माहट नहीं सलाह और स्नेह चाहिए। जमे हुए रिश्ते आवाज नहीं करते लेकिन भीतर ही भीतर दरकते रहते हैं। पहले मोहल्ले में एक फ्रिज होता था और पूरा पड़ोस गाहे-बगाहे उसका इस्तेमाल करता था। ठंडा पानी और बर्फ तो पड़ोसी हक से मांगते थे। अब हर घर में फ्रिज है पर भावनायें, अपनापन और पड़ोसी से बोलचाल फ्रीज हो चुकी हैं। पहले कहा करते कि दिल बड़ा होना चाहिए, अब सबकी धारणा है कि फ्रिज बड़ा होना जरूरी है क्योंकि आलू-प्याज भी लोग वेजिटेबल ट्रे में रखने लगे हैं और रिश्तों को ब्लैक लिस्ट में।

गर्मियों में रिश्तेदारों के आने पर शिकंजी-शर्बत बनते थे, अब तो पूछा जाता है कोल्ड ड्रिंक लोगे या मिनरल वॉटर? अब भावनाएं नहीं, ब्रांड सर्व किये जाते हैं। सबसे दिलचस्प बात कि पहले लोग कहावतों में कहा करते- बात ठंडे दिमाग से करना। अब कहते हैं कि पहले एसी चालू करो, फिर बात करेंगे। संवाद अब टेंप्रेचर के हिसाब से मूड में आता है। फ्रिज में सत्तर भांत की चीजें, पाइन-एप्पल से लेकर पुदीने की चटनी तक भरी पड़ी हैं पर बच्चों को खाना बनाकर खिलाने में नानी याद आ जाती है। मुझे तो लगता है कि फ्रिज जितना भरा है, उतना ही दिल खाली हो गया है। घर ठंडा है पर संबंधों में बुखार है। बर्फ से कोल्ड कॉफी बन रही है पर जीवन में न कोई मिठास है न झाग। रिश्तों में अलाव जलाने कोशिश करें भी तो कैसे, लोग तो बर्फ की सिल्ली सीने में जमाये बैठे हैं।

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एक बर की बात है अक सड़क पै एक लुगाई चक्कर खाकै पड़गी। माणस कट्ठे होगे। एक ताऊ रुक्के देण लाग्या- दूध सोडा ल्याओ रै, कोयसा दूध सोडा ल्याओ। एक छोरा भाजकै बीस रुपये का ठंडा दूध-सोडा ल्याया। ताऊ उसतै दूध-सोडा लेकै सारा आप ए गटागट पीग्या अर गहरी सांस भरकै बोल्या- भाई! मेरै पै नीं इसे-इसे हादसे देखे जावैं।

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