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उलझन की जंजीर बनते प्रेम के कच्चे धागे

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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डॉ. हेमंत कुमार पारीक

अलीगढ़ तालों के लिए प्रसिद्ध है। और अब तो सास और दामाद के प्रेम-प्रसंग के कारण और प्रसिद्ध हो रहा है। सात-सात लीवर वाले ताले भी नाकाम हो रहे हैं। बेटी उंघती, बारात का इंतजार करती रही और अम्मा दामाद जी के साथ उड़नछू हो गयी। पुराने टाइम की स्टोरी में भी ऐसा न था। बेटियां गहने-गांठें ले रात के अंधेरे में अपने प्रेमी के साथ चम्पत हो जाया करती थीं। फिर घरवाले रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और गली-गली ढूंढ़ते फिरते या ज्यादा से ज्यादा अखबार में छपवा देते कि बेटी धन्नो, घर लौट आओ। तुमसे कोई कुछ न कहेगा। मगर इस वक्त जो हो रहा है वह कमाल है।

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काश! इस वक्त रहीम चाचा होते और देखते कि प्रेम के जिस धागे के बारे में उन्होंने लिखा वह कच्चा धागा कितना मजबूत है कि खींचे से न तुड़ रहा। प्रेम के कच्चे धागे तेल पी मजबूत जंजीरों में बदल रहे हैं। कोई धागा चटकने को तैयार न है। फलस्वरूप भविष्य में ताजमहलों की संख्या बढ़ सकती है। प्रेम फैलता जा रहा है। जो सुनता है वही प्रेम में पड़ जाता है। फिर न देखता कि लड़की कितने साल की है अथवा महिला उम्रदराज और फिर दुर्गति होती है प्रेम की कूड़ेदान में।

आजकल चारों तरफ ऐसे कूड़ेदान दिखाई देने लगे हैं। अब कोई क्या करे? प्रेम को गीले कचरे वाले सरकारी ड्रम में डालें या सूखे कचरे वाले में। विदेशों में तो एक्स्ट्रा एक ड्रम और होता है। फिलहाल यह तीसरा विदेशी ड्रम कहीं-कहीं देखने को मिल जाता है। अब हमारे यहां भी इसके प्रस्ताव आने लगे हैं। प्रेम त्रिकोण से सरकार भी परेशान है। प्रेम के इस झमेले से बाहर निकलना चाहती है। एक सॉल्यूशन तो यह है कि इस अनोखे प्रेम की जड़ों में मट्ठा डाल दिया जाए। दूसरा सॉल्यूशन भी है कि शहर का नाम ही बदल दिया जाए, ताकि तालों की नाक बची रहे। और ऐसा अनोखा प्रकरण आने वाली पीढ़ियों के कानों में न पड़े।

खैर, हाल फिलहाल प्रेम की यह बीमारी कोरोना के वायरस की तरह दुनियाभर में फैलने लगी है। और वे लोग जो हमें अभी तक विश्वगुरु नहीं मानते थे वे सब अब सिर झुकाए खड़े हैं लाइन में। और तो और दादाभाई ट्रम्प ने भी प्रेम के रंगीन धागे फेंकना शुरू कर दिए हैं। कोई पहचान ही नहीं पा रहा कि उसका धागा कौन-सा है। है भी या नहीं। बड़ी बात यह है कि धागे भी नित रंग बदल रहे हैं। टैरिफ से भीगे धागे कहीं चिपक रहे हैं तो कहीं चटक रहे हैं। बंदा खड़ा सोच रहा है- अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपाएं कैसे, तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आएं कैसे।

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