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सीमाएं लांघती ग्लोबल वार्मिंग को रोकने की चुनौती

मुकुल व्यास वैज्ञानिकों का अनुमान है कि तेजी से गर्म होती दुनिया अगले कुछ वर्षों में पहली बार एक प्रमुख तापमान सीमा को लांघ सकती है। मानव गतिविधियों से उत्सर्जन और इस वर्ष के अंत में संभावित अल नीनो प्रभाव...
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मुकुल व्यास

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि तेजी से गर्म होती दुनिया अगले कुछ वर्षों में पहली बार एक प्रमुख तापमान सीमा को लांघ सकती है। मानव गतिविधियों से उत्सर्जन और इस वर्ष के अंत में संभावित अल नीनो प्रभाव के कारण इसकी आशंका बढ़ रही है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस बात की 66 प्रतिशत संभावना है कि हम चार साल के अंदर 1.5 सेल्सियस की ग्लोबल वार्मिंग सीमा को पार कर लेंगे। वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि तापमान की इस सीमा को पार करना अस्थायी हो सकता है लेकिन फिर भी यह चिंता की बात है क्योंकि दहलीज से टकराने का मतलब होगा कि दुनिया 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के दौरान उत्पन्न गर्मी से 1.5 सेल्सियस अधिक गर्म हो जाएगी। ध्यान रहे कि 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में औद्योगीकरण से जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन ने पृथ्वी का तापमान बढ़ाना शुरू कर दिया था। तापमान की सीमा यदि एक साल के लिए भी टूटती है तो भी यह एक विचलित करने वाली बात है क्योंकि इससे संकेत मिलता है कि वार्मिंग धीमी होने के बजाय तेज हो रही है।

यह 1.5 सेल्सियस का आंकड़ा वैश्विक जलवायु परिवर्तन वार्तालाप का प्रतीक बन गया है। विभिन्न देश 2015 के पेरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 सेल्सियस तक सीमित करने के लिए प्रयासों को आगे बढ़ाने पर सहमत हुए थे। यदि एक या दो दशक तक हर साल तापमान 1.5 सेल्सियस से ऊपर गया तो हम वार्मिंग के अधिक प्रभाव देखेंगे। ये प्रभाव लंबी गर्मी, प्रचंड लू, अधिक तीव्र तूफान और जंगल की आग के रूप में सामने आएंगे। लेकिन अगले कुछ वर्षों में तापमान वृद्धि की सीमा पार होने का मतलब यह नहीं होगा कि पेरिस समझौते द्वारा तय सीमा टूट जाएगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी भी समय है जब हम उत्सर्जन में तेजी से कटौती करके ग्लोबल वार्मिंग को रोक सकते हैं। विश्व मौसम विज्ञान संगठन 2020 से किसी एक वर्ष में 1.5 सेल्सियस सीमा को पार करने की आशंकाओं का अनुमान दे रहा है। तब उसने भविष्यवाणी की थी कि आने वाले पांच वर्षों में 1.5 सेल्सियस की सीमा तोड़ने की आशंका 20 प्रतिशत से कम है। लेकिन पिछले साल तक यह संभावना 50 प्रतिशत हो गई और अब यह बढ़कर 66 प्रतिशत हो गई है। इसका अर्थ यह है कि तापमान वृद्धि की सीमा लांघे जाने की आशंका बहुत बढ़ गई है।

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एक और चिंता की बात यह कि दुनिया के समुद्र तेजी से गर्म हो रहे हैं। समुद्र की सतह के तापमान को उपग्रह से मापने का सिलसिला 1980 के दशक में शुरू हुआ था। तब से हर रिकॉर्ड को तोड़ते हुए समुद्र की सतह का तापमान अब तक के सबसे उच्च स्तर पर पहुंच गया है। इस साल अप्रैल के पहले दिनों में तापमान का वैश्विक औसत 21.1 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। यह 21 डिग्री सेल्सियस का पिछला रिकॉर्ड मार्च 2016 में स्थापित किया गया था। अमेरिका के मेने विश्वविद्यालय के जलवायु डेटा के अनुसार, दोनों तापमान 1982 और 2011 के बीच वैश्विक औसत से एक डिग्री अधिक हैं। नया रिकॉर्ड जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न गर्मी का परिणाम है। अमेरिका के समुद्र वैज्ञानिक माइकल मैकफैडेन ने कहा कि अब ला निनिया प्रभाव खत्म हो चुका है और उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर गर्म होने लगा है। ध्यान रहे कि ला निनिया पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में ठंडी सतह के तापमान का एक प्राकृतिक सागर चक्र है जो तीन वर्षों से चल रहा था। यह चक्र मार्च में समाप्त हो गया। चाहे समुद्र की सतह हो, जमीन की सतह हो या वायुमंडल हो, हर तरफ मुख्य प्रवृत्ति वार्मिंग की है। जैसे ही वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसें जमा होती हैं,ये तीनों गर्म होने लगते हैं। लेकिन ये रुझान ला निनिया और अल नीनो चक्रों के आधार पर थोड़ा ऊपर-नीचे होते हैं। गौरतलब है कि अल नीनो के प्रभाव वाले वर्षों के दौरान प्रशांत की सतह गर्म हो जाती है। साल 2022 में ग्रीनहाउस गैस की सघनता अब तक सबसे अधिक थी लेकिन वैश्विक सतह तापमान के हिसाब से वह सबसे गर्म वर्ष नहीं था। ऐसा ला निनिया की वजह से हुआ। साल 2016 रिकॉर्ड पर सबसे गर्म वर्ष था और वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैस के अधिक बोझ और अल नीनो के कारण ऐसा हुआ। इस मिश्रण ने वैश्विक सतह के तापमान को रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा दिया।

इस साल की पहली तिमाही प्रशांत अल नीनो और ला निनिया से मुक्त रही है। लेकिन पूर्वानुमान मॉडल ने इस साल के अंत में अल नीनो चक्र शुरू होने की 60 प्रतिशत आशंका जताई है। इसका मतलब यह है कि हम एक और रिकॉर्डतोड़ गर्मी के वर्ष का सामना कर सकते हैं। आम तौर पर इन समुद्री चक्रों के शुरू होने और सतह के तापमान के गर्म होने के बीच एक अंतराल होता है। यह संभावना है कि एक बड़ा अल नीनो प्रभाव होने पर हम 2024 में गर्मी का एक नया रिकॉर्ड देख सकते हैं। फिर भी शुरुआती रुझान से अल नीनो की भविष्यवाणी करना मुश्किल है क्योंकि महासागरीय प्रणाली अस्थिर है और वह आसानी से एक पैटर्न से दूसरे में जा सकती है। जलवायु वैज्ञानिक अभी भी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि समुद्र के गर्म होने से ला निनिया और अल नीनो के विशिष्ट चक्रों में बदलाव कैसे आएगा। लेकिन आम सहमति यह है कि दोनों दिशाओं में चरम प्रभाव अधिक बार होंगे। बड़े अल नीनो और उनके साथ प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह के उच्च तापमान का सिलसिला 21वीं सदी के अंत तक दोगुना हो सकता है। इसका अर्थ यह है कि ये प्रभाव लगभग हर 20 साल के बजाय, हर 10 साल में हो सकते हैं।

लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

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