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राष्ट्रपति की गिरफ्तारी से गहराता कोरियाई संकट

डर इसका भी है, कि कहीं दक्षिण कोरिया ‘फेल्ड स्टेट’ घोषित न हो जाये। न्यायपालिका का राजनीतिकरण यदि इस पूरे मामले में होता है, तो कोरियाई प्रायद्वीप के लिए शुभ संकेत नहीं है। एक और चुनौती सामने है, जिसमें 1987...
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डर इसका भी है, कि कहीं दक्षिण कोरिया ‘फेल्ड स्टेट’ घोषित न हो जाये। न्यायपालिका का राजनीतिकरण यदि इस पूरे मामले में होता है, तो कोरियाई प्रायद्वीप के लिए शुभ संकेत नहीं है। एक और चुनौती सामने है, जिसमें 1987 में अपनाए गए मौजूदा संविधान में संशोधन करना शामिल है।

पुष्परंजन

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राष्ट्रपति यून सुक येओल, हिरासत में लिए जाने वाले पहले कोरियाई नेता बन गए हैं। इस समय वो निलंबित हैं, और पुलिस हिरासत में हैं। गुरुवार को भी उनसे पूछताछ हुई। राष्ट्रपति यून सुक येओल का कसूर यह है कि उन्होंने दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ घोषित कर दिया था। उसके 43 दिन बाद, बुधवार को जांचकर्ताओं ने उन्हें पूछताछ के लिए हन्नाम-डोंग स्थित उनके आधिकारिक आवास से हिरासत में ले लिया था। यून को ग्योंगगी प्रांत के उइवांग स्थित सियोल हिरासत केंद्र ले जाया गया। इस कांड से सड़क पर संग्राम जैसी स्थिति है। यून सुक येओल के एक समर्थक ने अपने शरीर में आग लगा ली।

इस बार, जांचकर्ता गिरफ्तारी आदेश को लागू करने में मदद करने के लिए अतिरिक्त अधिकारियों को साथ लाए थे। डर इसका था कि सुरक्षा में लगे कर्मी, जांच अधिकारियों की टीम के आगे बंदूक न तान दें। हिरासत वारंट को निष्पादित करने का एक सकारात्मक पहलू यह था, कि पुलिस, उच्च-रैंकिंग अधिकारियों के लिए भ्रष्टाचार जांच कार्यालय (सीआईओ) और राष्ट्रपति सुरक्षा सेवा (पीएसएस) के बीच कोई खूनी टकराव नहीं हुआ। राष्ट्रपति के समर्थकों और विरोधियों द्वारा अपनी स्थिति संभालने के बाद सुबह-सुबह लगभग 1,000 जांचकर्ता एकत्र हुए। हालांकि, राष्ट्रपति निवास में प्रवेश अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण तरीके से किया गया। पहले जो प्रयास किये गए थे, उसके विपरीत, लगभग 500 पीएसएस अधिकारियों ने गिरफ्तारी का विरोध नहीं किया।

राष्ट्रपति निवास छोड़ने से पहले, यून ने कहा, ‘देश में कानून पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है। मैं खूनी झड़पों को रोकने के लिए सीआईओ के पास जा रहा हूं।’ लेकिन, राष्ट्रपति यून सुक येओल ने गुरुवार को भ्रष्टाचार जांच कार्यालय (सीआईओ) के सवालों का जवाब देने से इंकार कर दिया। सवाल घूम-फिर कर, वही थे कि उन्होंने मार्शल लॉ की घोषणा कैसे की। यून को ग्वाचियोन, ग्योंगगी प्रांत मुख्यालय में लाए जाने से पहले, सीआईओ ने 200 पन्नों के आरोप पत्र तैयार किये थे। उन पर दो मुख्य आपराधिक आरोप हैं- पहला सत्ता का दुरुपयोग, और दूसरा अराजकता जैसी स्थिति, जो मार्शल लॉ डिक्री को लागू करने से उत्पन्न हुई है। यून पर यह भी आरोप है, कि उन्होंने संसद में तैनात मार्शल को उपस्थित सभासदों को हटाने के लिए कहा था, ताकि वे डिक्री को निरस्त करने के लिए मतदान न कर सकें।

राष्ट्रपति यून सुक येओल के वकीलों ने कहा कि वह एजेंसी द्वारा की जा रही किसी भी जांच में सहयोग नहीं करेंगे, क्योंकि उनका मानना है कि एजेंसी के पास ऐसी जांच करने का कानूनी अधिकार नहीं है।

राष्ट्रपति की बचाव टीम के एक सदस्य सेक डोंग-ह्यून के अनुसार, ‘पिछले दिन सीआईओ जांचकर्ताओं द्वारा की गई 10 घंटे की पूछताछ के बाद, यून के पास कहने के लिए कुछ नहीं था, और वह पूछताछ के किसी और अनुरोध का जवाब नहीं देंगे। सीआईओ की अवैध जांच में सहयोग करने का कोई कारण या आवश्यकता नहीं है।’ संवैधानिक न्यायालय ने 3 दिसंबर, 2024 को मार्शल लॉ लागू करने, और फिर उन्हें हटाने की वैधता पर विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया है। यून पहले जवाब दे चुके हैं, कि यह आदेश शासन का एक वैध कार्य था, जिसका उद्देश्य ‘राज्य विरोधी’ विपक्ष का मुकाबला करना था।

3 दिसंबर, 2024 को राष्ट्रपति यून सुक येओल के आदेशों का पालन करने वाले वरिष्ठ सरकारी, और सैन्य अधिकारी अब भी गिरफ्तार हैं। उनके विरुद्ध विद्रोह करने और सत्ता के दुरुपयोग के आरोप लगाए गए हैं। मुख्य विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ कोरिया के नेता ली जे-म्यांग ने स्थिति को खेदजनक बताया, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि ‘अब संवैधानिक व्यवस्था को बहाल करने और आजीविका के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने का समय आ गया है।’ इस बीच, सत्तारूढ़ पीपुल पावर पार्टी के नेता, क्वेऑन सेओंग-डोंग ने देश में हुए नुकसान पर चिंता ज़ाहिर की, और अफ़सोस व्यक्त किया।

पिछले महीने की शुरुआत में अल्पकालिक मार्शल लॉ संकट के बाद से दक्षिण कोरियाई राजनीति उथल-पुथल में है। राष्ट्रपति यून सुक येओल ने अचानक यह कदम उठाया और विपक्ष द्वारा नियंत्रित राष्ट्रीय असेंबली द्वारा मजबूर किए गए, फिर अचानक इसे वापस ले लिया। यह तार्किक प्रश्न है, कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? इसके लिए उनके सलाहकारों ने जो सुझाव दिए थे, वो सलाह ग़लत भी हो सकती है। या यह क़दम यदि सही रहा हो तो उसे साबित करने की चुनौती यून सुक येओल के समक्ष है। अंतिम उत्तर संवैधानिक न्यायालय को देना है, जिसे महाभियोग के बारे में भी जांच करके अपना निष्कर्ष देना है।

क्या हम कहें, कि दक्षिण कोरिया संसदीय राजनीति की विफलता की ओर अग्रसर है? दो मुख्य राजनीतिक दल, सत्तारूढ़ ‘पीपुल्स पावर पार्टी’ और विपक्षी ‘डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ कोरिया’, एक-दूसरे से पूरी तरह से अलग हो गए हैं, जिससे राजनीतिक संवाद और समझौते के लिए कोई जगह नहीं बची है। संसद की राजनीति सड़क पर है। दो राजनीतिक खेमों के बीच बढ़ते ध्रुवीकरण को देखते हुए संवाद की गुंजाइश कम दिखती है। लगभग स्वचालित रूप से राजनीतिक समस्याओं को न्यायपालिका को सौंप दिया गया। राजनीति का न्यायिकीकरण कोरियाई राजनीतिक व्यवस्था में संरचनात्मक कमियों को उजागर करता है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, ‘राष्ट्रपति यून सुक येओल की हिरासत ने राष्ट्रपति सुरक्षा प्रोटोकॉल की निरंतरता के बारे में सवाल खड़े कर दिए हैं, क्योंकि वे कोरिया के संवैधानिक इतिहास में निरुद्ध होने वाले पहले राष्ट्रपति बन गए हैं।’ राष्ट्रपति सुरक्षा सेवा (पीएसएस) ने पुष्टि की है कि यून के लिए उनके सुरक्षा उपाय तब तक प्रभावी रहेंगे, जब तक वे राष्ट्रपति पद पर बने रहेंगे, भले ही उनके अधिकार वर्तमान में निलंबित हैं। यदि उन्हें औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया जाता है, तो ये विशेषाधिकार समाप्त हो जाएंगे। लेकिन, प्रथम महिला किम कीन ही की सुरक्षा हमेशा की तरह जारी रहेगी। प्रेसिडेंट हाउस के पूर्व अधिकारी पार्क ग्वान-चेन ने कहा, ‘राष्ट्रपति सुरक्षा अधिनियम में यह प्रावधान है कि जब तक व्यक्ति राष्ट्रपति का दर्जा बनाए रखता है, तब तक उसकी सुरक्षा सेवाएं जारी रहनी चाहिए।’ डर इसका भी है, कि कहीं दक्षिण कोरिया ‘फेल्ड स्टेट’ घोषित न हो जाये। न्यायपालिका का राजनीतिकरण यदि इस पूरे मामले में होता है, तो कोरियाई प्रायद्वीप के लिए शुभ संकेत नहीं है। एक और चुनौती सामने है, जिसमें 1987 में अपनाए गए मौजूदा संविधान में संशोधन करना शामिल है, ताकि सर्वशक्तिमान राष्ट्रपति की शक्ति के खिलाफ संस्थागत जांच और संतुलन को परिष्कृत किया जा सके। लेकिन, इस देश में राजनीति के अति-न्यायिकीकरण को रोकना भी ज़रूरी है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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