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आत्मनिर्भरता में आर्थिक चुनौतियों का समाधान

अमेरिकी मनमानी
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निर्विवाद रूप से ट्रंप के सत्ता में आने के बाद उपजे हालात से मुकाबले के लिये एकमात्र समाधान केवल आत्मनिर्भरता, लघु और कुटीर उद्योगों के विकास और सहकारिता आंदोलन को गति देने में है।

सुरेश सेठ

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दुनियाभर में पर्यावरण प्रदूषण और असाधारण मौसम परिवर्तन ने गंभीर संकट पैदा कर दिया है। जब समृद्ध देशों से इस संकट का समाधान खोजने की अपील की गई, तो वे इससे पल्ला झाड़ते हुए नजर आए, और इनमें सबसे प्रमुख अमेरिका था। इसके अलावा, राष्ट्रपति ट्रंप ने ‘अमेरिका अमेरिकियों के लिए’ का नारा देते हुए, अवैध रूप से वहां रह रहे आप्रवासियों को उनके देशों में वापस भेजने की नीति अपनाई है। ये कदम अमेरिका की नीतियों का हिस्सा हैं, भले ही अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के तहत मैत्रीपूर्ण संबंधों का दिखावा किया जा रहा हो।

अमेरिका ने यह घोषणा की है कि वह अब अपने मूल्यवान आर्थिक संसाधनों को तीसरी दुनिया के देशों में क्यों लौटाए। वर्ष 1961 से अमेरिका एक आर्थिक सहायता कार्यक्रम चला रहा था, जिसके तहत पिछड़े देशों में मानवीय और आर्थिक संसाधनों का विकास किया जाता था, और लोकतंत्र की स्थापना की दिशा में काम किया जाता था। इस कार्यक्रम के तहत अमेरिका सालाना करीब 496 करोड़ डॉलर खर्च करता था। भारत में लोकतंत्र को प्रोत्साहित करने और वोटरों को मतदान के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से अमेरिका प्रतिवर्ष एकमुश्त रकम खर्च करता था। हालांकि, डोनाल्ड ट्रम्प ने सत्ता संभालते ही इस सहायता को बंद कर दिया, यह मानते हुए कि हर देश को अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था को खुद मजबूत करना चाहिए।

इतना ही नहीं, जब मोदी मैत्री वार्ता के लिए अमेरिका गए, तो वार्ता शुरू होने से पहले अमेरिका ने अपनी टैरिफ नीति घोषित कर दी, जिसका मूलमंत्र था ‘जैसे को तैसा’। हाल ही में डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत के बारे में यह बयान दिया कि भारत के पास पर्याप्त धन है और वह टैक्स उगाहने में माहिर है, इसलिए अमेरिका भी अपने आयात में ऊंचे टैक्स लगाकर इसका प्रतिवाद करेगा। अमेरिका का आरोप है कि भारत ने उसके सामान पर उच्च टैक्स लगा रखा था, जबकि अमेरिका भारतीय आयात पर कम टैक्स लगाता था। फलतः ट्रम्प ने भारत पर भी टैरिफ बढ़ा दिए।

अर्थशास्त्री कहते हैं कि अगर अमेरिकी नीतियों से महंगाई बढ़ती है तो इससे भारत में मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाना मुश्किल हो जाएगा। इसके अलावा, यदि भारतीय निर्यात पर 20 प्रतिशत का टैरिफ लागू कर दिया जाता है, तो भारत की जीडीपी में गिरावट हो सकती है। यह स्थिति खासतौर पर चिंताजनक है, क्योंकि भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य रखता है। इसके लिए आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी जीडीपी में 8 प्रतिशत की विकास दर बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। पिछले वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही में भारत की विकास दर 7 प्रतिशत से घटकर पौने 6 प्रतिशत पर आ गई थी। हालांकि, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) का अनुमान है कि भारत 7 प्रतिशत विकास दर हासिल करने में सक्षम रहेगा। लेकिन अब अमेरिकी हित संरक्षण की नीति सामने आ गई है, जिसमें ट्रम्प भारत के साथ ‘जैसे को तैसा’ नीति लागू करने की बात कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, भारत के विभिन्न उद्योगों को नुकसान हो सकता है। यदि यह टैरिफ शुल्क लागू हो जाता है, तो भारतीय निर्यात क्षेत्र को बड़ा धक्का लगेगा। निर्यातकों को टैरिफ चुकाने के बाद उनकी लागत पूरी नहीं हो पाएगी, जिससे वे निर्यात बढ़ाने के प्रति कम उत्साहित हो सकते हैं।

इस वर्ष के नए आंकड़े दर्शाते हैं कि हमारा निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में कम हो गया है, जबकि आयात की मांग में कोई कमी नहीं आई। अब स्थिति यह बन गई है कि यदि अमेरिका से आने वाली वस्तुएं महंगी हो जाती हैं और हमारी मांग लगातार बनी रहती है, तो रुपये का मूल्य डॉलर के मुकाबले गिरता जाएगा। जिसका मतलब है कि आयातित वस्तुएं महंगी हो जाएंगी। यदि अमेरिका अपनी दरें बढ़ाकर इसे भारतीय टैरिफ के बराबर कर देता है, तो इससे भारत में आयातित वस्तुएं महंगी हो जाएंगी, जिससे मुद्रास्फीति को और बढ़ावा मिलेगा। सरकार को इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा। हालांकि, वैश्विक आर्थिक अस्थिरता और ट्रंप सरकार की मनमानी से शेयर बाजार को भारी नुकसान हुआ है। यह विदेशी निवेश की दृष्टि से एक निराशाजनक स्थिति है।

इस समय चुनौती यह है कि जो वस्तुएं हम अमेरिका से मंगवाते हैं, उनमें जीवनरक्षक दवाइयां, निर्माण कार्य में उपयोग होने वाले उपकरण और विद्युत उपकरण आदि शामिल हैं, जो भारतीय निवेशकों के लिए भी कई मायनों में महत्वपूर्ण हैं। यदि ये तमाम वस्तुएं महंगी हो जाती हैं, तो भारतीय निवेश पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, और निर्यात वस्तुओं का उत्पादन घटने की संभावना बढ़ जाएगी। इससे साफ है कि भारत के विकास दर को बनाए रखने का लक्ष्य मुश्किल हो जाएगा।

निर्विवाद रूप से अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप के सत्ता में आने के बाद उपजे हालात में चुनौती के मुकाबले के लिये इसका एकमात्र समाधान केवल आत्मनिर्भरता, लघु और कुटीर उद्योगों के विकास और सहकारिता आंदोलन को गति देने में है। इससे देश की विपुल श्रम शक्ति का उपयोग हो पाएगा। इससे जहां हमारी आर्थिक स्थिति को संबल मिलेगा, वहीं युवाओं का विदेश पलायन भी रुकेगा। इन्हीं उपायों से भारत अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकता है, और उसे अमेरिका से व्यापारिक शर्तों में रियायतें मांगने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

लेखक साहित्यकार हैं।

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