Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

मनुष्य के अस्तित्व के लिए चुनौती बनते हालात

जैव विविधता संकट
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

यदि 2030 तक वनों की कटाई पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले समय में यह खर्च कई गुणा बढ़ जायेगा और कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी से पर्यावरणीय समस्याएं और विकराल रूप धारण कर लेंगी।

ज्ञानेन्द्र रावत

Advertisement

आज के समय में पर्यावरण, जैव विविधता और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की जो स्थिति बनी है, वह मानव के असीमित लोभ और संसाधनों की अंधी चाहत का परिणाम है। मौसम में आए अत्यधिक बदलाव, पारिस्थितिकी तंत्र में गिरावट और आर्थिक-सामाजिक ढांचे में संकट इन सबका प्रत्यक्ष परिणाम हैं। यह बदलाव अचानक नहीं हुआ है, बल्कि वर्षों से पर्यावरणविद, हमें चेतावनी दे रहे थे कि यदि हमने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। हम अब उस स्थिति में पहुंच चुके हैं जहां से वापसी करना बहुत मुश्किल है।

दुनिया के स्तर पर जैव विविधता की बात करें तो अमेरिका की ए एण्ड एम यूनिवर्सिटी स्कूल आफ पब्लिक हैल्थ के एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि पेड़-पौधों की मौजूदगी लोगों को मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है। मानसिक रोगियों पर किये गये अध्ययन में कहा गया है कि हरियाली के बीच रहने वाले लोगों में अवसाद की आशंका बहुत कम पायी गयी है।

वहीं, जैव विविधता वाली ज़मीन पर कब्ज़े की घटनाओं में तीव्र वृद्धि हो रही है, खासकर 2008 के बाद से। ये घटनाएं विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में हो रही हैं, जिनका असर वैश्विक स्तर पर भूमि असमानता, खाद्य असुरक्षा, किसान विद्रोह और ग्रामीण पलायन में वृद्धि कर रहा है। इस प्रवृत्ति ने छोटे और मंझले खाद्य उत्पादकों को संकट में डाल दिया है। मानसिक स्वास्थ्य की विशेषज्ञ प्रोफेसर एंड्रिया मेचली के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की तेज़ गिरावट से सिर्फ प्राकृतिक पर्यावरण नहीं, बल्कि उसमें रहने वाले लोगों का मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है।

बीते दो दशकों में समूची दुनिया में 78 मिलियन हेक्टेयर पहाड़ी जंगल नष्ट हो गये हैं। जबकि पहाड़ दुनिया के 85 फीसदी से ज्यादा पक्षियों, स्तनधारियों और उभयचरों के आश्रय स्थल हैं। गौरतलब यह है कि हर साल जितना जंगल खत्म हो रहा है, वह एक लाख तीन हजार वर्ग किलोमीटर में फैले देश जर्मनी, नार्डिक देश आइसलैंड, डेनमार्क, स्वीडन और फिनलैंड जैसे देशों के क्षेत्रफल के बराबर है। लेकिन दुख और चिंता की बात यह है कि इसके अनुपात में नये जंगल लगाने की गति बेहद धीमी है।

जहां तक धरती का फेफड़ा कहे जाने वाले दक्षिण अमेरिका के अमेजन बेसिन के बहुत बड़े भूभाग पर फैले अमेजन के वर्षा वनों का सवाल है, वे विनाश के कगार पर हैं। बढ़ते तापमान, भयावह सूखा, वनों की अंधाधुंध कटाई और जंगलों में आग की बढ़ती घटनाओं के चलते अमेजन के जंगल खतरे के दायरे में हैं।

दरअसल, दुनिया में जंगलों का सबसे ज्यादा विनाश ब्राजील में हुआ है और यह सिलसिला आज भी जारी है। उसके बाद डेमोक्रेटिक रिपब्लिक आफ कांगो और बोलीविया का नम्बर आता है। यदि मैरीलैंड यूनिवर्सिटी और वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के ग्लोबल वाच की हालिया रिपोर्ट की मानें तो दुनियाभर में साल 2023 में 37 लाख हेक्टेयर जंगल नष्ट हो गये।

भारत में बीते 30 वर्षों में जंगलों की कटाई में भारी बढ़ोतरी हुई है। भले ही इसके प्राकृतिक कारण हों या मानवीय। इसमें देश के पांच राज्यों यथा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश शीर्ष पर हैं जहां देश में आग से सबसे ज्यादा जंगल तबाह हुए हैं। यह सिलसिला आज भी जारी है।

यदि ग्लासगो में हुए कॉप-26 सम्मेलन की बात करें तो इसमें दुनिया के 144 देशों ने 2030 तक इन जंगलों को बचाने का संकल्प लिया था। गौरतलब है कि यदि दुनिया में वनों की कटाई पर रोक लगायी जाती है तो एक अनुमान के आधार पर उस हालत में 900 अरब डालर की रकम खर्च होगी। जबकि अभी दुनिया में जंगलों को बचाने पर सालाना तीन अरब डालर की राशि खर्च की जा रही है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की कंजरवेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट की वैज्ञानिक के अनुसार जंगलों को बचाने के लिए दुनियाभर की सरकारों को सालाना 130 अरब डालर खर्च करने होंगे। यदि 2030 तक वनों की कटाई पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले समय में यह खर्च कई गुणा बढ़ जायेगा और कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी से पर्यावरणीय समस्याएं और विकराल रूप धारण कर लेंगी। चिंता की बात यह है कि वैज्ञानिकों की इस बारे में एकमुश्त राय है कि ऊर्जा, उत्पाद और दूसरी सामग्रियों के लिए दुनियाभर की कंपनियों की नजर जैव विविधता पर है। अनुमान है कि जैव विविधता के दोहन के लिए दुनियाभर के देश 2030 तक 400 अरब डालर का निवेश करेंगे जो मौजूदा समय से 20 गुणा ज्यादा होगा।

दरअसल, जैव विविधता को संरक्षित करने में वन की उपयोगिता जगजाहिर है लेकिन विडम्बना है कि हम उन्हीं के साथ खिलवाड़ कर अपने जीवन के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। बीते तीन दशक इसके सबूत हैं कि उनमें हमने तकरीबन एक अरब वन मानवीय स्वार्थ के चलते खत्म कर दिये हैं। हम यह क्यों नहीं समझते कि यदि अब भी हम नहीं चेते तो हमारा यह मौन हमें कहां ले जायेगा और क्या मानव सभ्यता बची रह पायेगी?

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

Advertisement
×