बारिश के पहले तूफान का आना, बसंत के पहले पतझड़ का होना आदि प्राकृतिक घटनाएं हैं, लेकिन बजट पूर्व न्यूज चैनलों की सनसनी हैडलाइन वर्तमान समय का कृत्रिम आविष्कार है। आम आदमी बजट पारित होने से पहले ही चैनलों के पूर्वानुमानों और बहसों से ही भयभीत हो जाता है। यूं तो देश का एक ही वित्तमंत्री होता है, लेकिन यहां जितने भी चैनल हैं उतने एंकर वित्तमंत्री की भूमिका निभाते नजर आते हैं। नए वित्त बजट के स्वागत की सरकार से बेहतर तैयारी न्यूज एंकरों ने कर रखी है। ये ब्यूटी प्रॉडक्ट के महंगे होने की संभावना मात्र के चलते सौंदर्य प्रॉडक्ट महंगे होने से बदसूरती के बढ़ते प्रभावों का अध्ययन संपूर्ण विश्लेषण के साथ कर देते है। यह सब तो बजट के पहले का ट्रेलर होता है असली पिक्चर तो बजट के बाद शुरू होती है।
यहां हर बरस बजट में कुछ बातें स्थायी होती हैं। कोई भी सत्ता हो, सत्ता वाले नेता अपने बजट को क्रांतिकारी बताने के लिए बजट पारित होने से पहले ही अपने बयान तैयार करके रखते हैं। बजट चाहे उबासी वाली रचनाओं की पुस्तक ही क्यों न हो लेकिन उनके जिम्मे उसे बेस्ट सेलर घोषित करवाना होता है। राजकोषीय घाटे की समझ न रखने वाले नेता भी बजट ओपिनियन में हिस्सा लेते पाये जाते हैं। इसके विपरीत विपक्ष, चाहे कितना ही अच्छा बजट हो उसका विरोध ही करता है। यदि बजट भाषण में कोई शायरी न हो तो विपक्ष के नेता वाह-वाह कैसे कर सकते हैं!
वहीं आम आदमी अखबार में बस क्या सस्ता, क्या महंगा कॉलम में वस्तुओं के नाम पढ़ता है। देश इस दौर में स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा होता है, चाय की नुक्कड़ से लेकर पान की गुमटियों तक आर्थिक नीति विशेषज्ञ अपनी महानता को सिद्ध करते नजर आते है। जितनी आस्ट्रेलिया की जनसंख्या नहीं है उससे अधिक अर्थशास्त्री हमारे यहां बजट पारित होने के बाद जन्म ले लेते हैं। असल में यही बजट की उपलब्धि होती है। बजट देश में अचानक से बुद्धिजीवियों की बाढ़ ला देता है, यह वे बुद्धिजीवी होते हैं, जिनके आगे अर्थशास्त्र भी अपने हथियार डाल देता है। नजारा हसीन तब होता है जब बेरोजगार युवा आयकर की सीमा पर अपने विचार रखते पाए जाते हैं। न्यूज रिपोर्टर जवाब भी उन्हीं से लेते हैं, जिनका खबरों से कोई संबंध नहीं होता।
देश में एक बार फिर नए टैक्स और नई छूट के अनुमानों का बाजार गर्म है। कोई नया कर लगा दिया तो क्या होगा? जैसे सवाल भी परेशान कर रहे हैं। लोगों को यह समझना होगा कि टैक्स के नाम पर लगाने को अब कुछ न बचा है। सरकार के पास सिर्फ सेल्फी पर कर लगाने का उपाय ही शेष है। सोचो, यदि ऐसा हुआ तो लोग वाह करेंगे या लोगों की आह निकल जायेगी!