शमीम शर्मा
गणित में एक और एक मिलकर दो हो जाते हैं। संगठन में एक और एक मिलकर ग्यारह बनाते हैं। बात प्यार की हो तो एक और एक मिलकर एकम-एक हो जाते हैं। अध्यात्म में एक और एक मिल जायें तो शून्य में परिणत हो जाते हैं। कूटनीति कहती है कि एक को एक से मिलने ही न दिया जाये क्योंकि यही मिलन सारे विघ्न की जड़ है। एक के विरुद्ध एक को खड़ा कर दो तो इसे राजनीति कहा जाता है। वसन्त के साथ-साथ चुनाव की बहारें पूरे जोरों पर हैं। इधर हर पेड़-पौधे पर फूल खिल रहे हैं और उधर राजनीति की बगिया उम्मीदवारों से लहलहा रही है। आज के दिन यह नजारा शहर, गांव गुहांड से लेकर टीवी और अखबार की छाती पर पसरा पड़ा है।
संसद की दहलीज तक पहंुचने के लिए एक-एक नेता ने एड़ी- चोटी का जोर लगा दिया है। किसी किसी का तो दम उखड़ने वाला है। एक काॅलेज में टाॅयलेट सीट के सामने वाली दीवार पर लिखा हुआ था- इतना जोर अगर तू पढ़ाई में लगाता तो आज किसी अच्छी सीट पर बैठा होता। यह बात नेताओं पर भी लागू होती है कि यदि वे नेक नीयत से पांच साल निकाल लेते तो उन्हें चुनावी सीट पर इतना जोर न
लगाना पड़ता।
चुनावों में विजयश्री की प्राप्ति के लिये कोई माता की धोक मार रहा है तो कोई अनुष्ठान करवा रहा है, कोई पंडितों से पूछ-पूछ कर कपड़े पहन रहा है तो कोई अपनी अंगूठियों के नग-हीरे बदलवाने में जुटा है। किस दिन किस दिशा में प्रचार प्रारम्भ किया जाए- भी ज्योतिषियों से पूछा जा रहा है। गड़े मुर्दे निकाल कर उनसे माफी मांगी जा रही है। पिछले सालों के संबंधों के बही-खातों का गुणा भाग फिर से किया जा रहा है और भूलचूक लेनी देनी कहकर नये अध्याय लिखने की चेष्टा की जा रही है। दूर के रिश्तों की फेहरिस्त हाथ में लेकर नेतागण आपको अपनत्व की चादर ओढ़ाने और नाराज़गी की धूल झाड़ने में प्रयासरत हैं।
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एक बर की बात है अक सुरजा वोट मांगण खात्तर नत्थू की झोंपड़ी पै पहोेंच ग्या अर उसकी हथेली पै पांच सौ के दो नोट धरते होये बोल्या- भाई वोट पक्का है न? नत्थू बोल्या- ना भाई मैं नीं ल्यूंगा एक भी रूपिया, तैं न्यूं कर अक मन्नैं एक गधा ल्या दे। सुरजा गधा टोहण गया तो 7000 तैं कम मैं गधा नहीं था। वो वापस आकै नत्थू तै बोल्या- भाई गधा तो सात हजार मैं भी कोनीं मिल रह्या। या बात सुणकै नत्थू बोल्या- तो मेरे यार! तन्नैं वोटर गधे तै भी सस्ता जान लिया के?