दुनिया की सबसे प्राचीन मानव सभ्यता और सबसे पुराने, सबसे बड़े एवं सबसे जीवंत भारतीय लोकतंत्र का सपना था ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ अर्थात इस धरती पर सब सुखी हों, सब समृद्ध हों। पिछले 9 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। निर्णायक प्रशासनिक कौशल, अपार जन-समर्थन और आधुनिक तकनीक के साथ एक संकल्पवान प्रधानमंत्री ने इसे संभव कर दिखाया है। इससे युवाओं, महिलाओं, किसानों, शोषितों, वंचितों और सबसे गरीब लोगों में आशा जगी है और विश्वास बना है कि केंद्र में उनकी सरकार है जो उनके जीवन उत्थान के लिए अहर्निश काम कर रही है।
अतीत में एक प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया है कि अंतिम लाभार्थी तक सरकार द्वारा उनके लिए आवंटित राशि का लगभग 14-15 प्रतिशत हिस्सा ही उन्हें मिल पाता है। वर्तमान प्रधानमंत्री ने लास्ट माइल डिलीवरी सुनिश्चित की है। लगभग 48 करोड़ लोगों के बैंक एकाउंट खोले गए ताकि लाभार्थियों को उनका हक बिना किसी लीकेज के सीधे उनके बैंक एकाउंट में मिले। हालांकि बेरोजगारी दुनिया भर में एक बड़ा मुद्दा है लेकिन इससे बेहतर तरीके से निपटने के लिए मोदी सरकार ने प्रभावी कदम उठाये हैं। न केवल शहरों बल्कि देश के दूरदराज इलाकों में कौशल केंद्र स्थापित किए गए हैं।
केंद्र सरकार ने श्रमिकों के गरिमापूर्ण जीवन के लिए श्रम योगी मानधन योजना बनाई है। कई अवसरों पर प्रधानमंत्री ने स्वयं श्रमवीरों को सम्मानित किया है। भारत की श्रमशक्ति ने देश के विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया है। देश में बीते 9 वर्षों में इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। अतीत में यूरोप की यात्रा के दौरान मैं कई लोगों की टिप्पणियां सुनता था कि यूरोप जैसा बुनियादी ढांचा और यात्रा में आसानी भारत में कभी नहीं हो सकती लेकिन इतने कम समय में वे गलत साबित हुए हैं।
बीते सालों में विनाशकारी कोविड महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध, बढ़ती जलवायु संबंधी चिंताएं, सप्लाई चेन में अवरोध, दुनिया भर में लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति, दुनिया के कई हिस्सों में ध्रुवीकरण, देशों के बीच घटते विश्वास एवं सहयोग तथा मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे विश्व स्तर पर पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रहे हैं। इस आलोक में जहां एशिया में कई सरकारें विफल सिद्ध हो रही हैं, भारत बीते 9 साल में अपने साहसिक निर्णयों के बल पर तेज गति से आगे बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में प्रतिष्ठित हुआ है।
ये सच है कि भारत में दुनिया की आबादी का छठा हिस्सा रहता है लेकिन भारत की आवाज़ कभी भी उस तरह से नहीं सुनी गई जैसे अब सुनी जा रही है। आज भारत बोलता है तो दुनिया सुनती है। कुल मिलाकर, अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत अपना सही स्थान पा रहा है। इसका श्रेय वर्तमान सरकार एवं उसकी सही नीतियों को जाता है। रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान किसी का पक्ष नहीं लेने की कुशल नीति और दुनिया को तर्कपूर्ण जवाब तथा अन्य वैश्विक मुद्दों पर सार्थक पहल ने भारत को एक मजबूत वैश्विक शक्ति, एक परिपक्व मध्यस्थ और दुनिया के पेसमेकर के रूप में स्थापित किया है। जहां दुनिया की बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं धराशायी हो रही हैं, वहां भारतीय अर्थव्यवस्था ने शानदार प्रदर्शन जारी रखा है। मोदी सरकार ने कोविड महामारी के दौरान गरीब कल्याण अन्न योजना जैसा क्रांतिकारी कदम उठाया यह सुनिश्चित करने के लिए ताकि देश में कोई भूखा न सोने पाए। यह एक लोक-कल्याणकारी सरकार की संवेदनशीलता को दर्शाता है।
भारत में घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन की अपार संभावनाएं मौजूद होने के बावजूद देश के तीर्थस्थलों का विकास आजादी के 70 सालों में भी न हो पाया था। तीर्थस्थलों के बुनियादी ढांचे जर्जर थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभी तीर्थस्थलों और आस्था के केंद्रों के जीर्णोद्धार एवं वहां विकास का बीड़ा उठाया। पिछले कुछ वर्षों में काशी, उज्जैन, सोमनाथ, अंबाजी, ऋषिकेश, केदारनाथ, बदरीनाथ जैसे बड़े तीर्थस्थलों का जो स्वरूप बदला है, उसने श्रद्धालुओं के मन में आशा, विश्वास एवं आकांक्षाओं की नई बुनियाद रखी है।
हालांकि सभी राजनीतिक नेताओं और पार्टियों की धार्मिक अनुष्ठानों और प्रथाओं में आस्था है, लेकिन वे इसके बारे में कभी खुले नहीं थे। ये प्रधानमंत्री मोदी ही हैं जिन्होंने इसे स्वीकार करने में कभी हिचक नहीं दिखाई और अपने कर्तव्यों का अक्षरश: पालन करने के साथ-साथ इसके गौरव को भी फिर से स्थापित किया। उन्होंने विश्व के अन्य नेताओं को भारतवर्ष की इन अमूल्य विरासतों से परिचित कराया। किसी भी समाज की प्रगति लोगों के विश्वास और आत्म-सम्मान पर निर्भर करती है। अपनी जड़ों और अपनी संस्कृति का सम्मान करने से समाज में आत्म-सम्मान पैदा होता है।
कला और संस्कृति को नरेन्द्र मोदी सरकार ने बहुत महत्व और प्रोत्साहन दिया है। कई नए संग्रहालय खोले गए हैं और कला के सभी रूपों को जगह मिली है। इससे पता चलता है कि हमारे पास क्या संभावनाएं हैं और कैसे हम ‘स्लीपिंग जायंट्स’ के रूप में उसांसें ले रहे थे जिसे अपनी वास्तविक क्षमता का एहसास ही नहीं था।
भारत ने शिक्षा क्षेत्र में भी क्रांतिकारी कदम उठाये हैं। पुरानी औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली की तुलना में नई शिक्षा नीति एक ऐसी क्रांति है जो पुरातनता के साथ-साथ आधुनिक सभ्यता की बुद्धिमत्ता पर आधारित है। भारतीय प्रतिभा का पूरी दुनिया में सम्मान होता है। अब उन्हें अपनी रचनात्मकता को व्यक्त करने के लिए एक खुला मैदान मिला है। शिक्षा में सुधार की पहल ने देश में शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि की है और इसे सर्व-सुलभ बनाया है।
जिस पूर्वोत्तर को लंबे समय तक नजरअंदाज किया गया, वह अपनी कई संभावनाओं के प्रति जाग्रत हो उठा है। जम्मू-कश्मीर में विकास के एक नए युग का उदय और महिलाओं को दिया गया न्याय ‘न्यू इंडिया’ की अवधारणा को रेखांकित करता है। यह दर्शाता है कि अपने ही लोगों के साथ की गई गलती को कैसे सुधारा जा सकता है।
बहुत से लोग इस बात से वाकिफ नहीं हैं कि केंद्र सरकार ने अफगानिस्तान को एक नया संसद भवन उपहार में दिया है। नाइजीरिया में राष्ट्रपति भवन भी कुछ साल पहले भारत ने बनाया था। और अब, प्रधानमंत्री मोदी ने हमारे संविधान और परंपरा का सम्मान करते हुए भारतीय संस्कृति एवं विरासत के आधार पर एक सुंदर संसद भवन हमारे देश को समर्पित किया है। इतने कम समय में निर्मित एक अद्भुत संरचना- हर देशवासी को इस पर गर्व होना चाहिए।
हालांकि कई जगह त्रुटियां हैं, कई गलतियां भी की गई, जिन्हें टाला जा सकता था, और अभी हमें बेरोजगारी, बढ़ती कीमतों तथा अन्य सामाजिक मुद्दों पर एक लंबा सफर तय करना है। वर्तमान सरकार जिस गति से चुनौतियों का समाधान कर रही है, वह वास्तव में प्रशंसनीय है और यह देश के उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद जगाती है।
लेखक आध्यात्मिक गुरु हैं।