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वैश्विक उथल-पुथल में भारत के लिए संभावनाएं

अमेरिकी टैरिफ की चुनौती
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ट्रंप के नये टैरिफ की मार का असर विश्व के सभी देशों पर है, भारत भी अछूता नहीं। लेकिन इस चुनौती से मुकाबले में भारत की स्थिति अन्य देशों से बेहतर नजर आती है। अमेरिका के साथ नए व्यापार समझौते, विभिन्न देशों संग एफटीए और मजबूत घरेलू आर्थिक घटक असरदार आर्थिक रणनीति साबित हो सकते हैं।

डॉ. जयंतीलाल भंडारी

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हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए रेसिप्रोकल टैरिफ की चिंताओं के कारण 7 अप्रैल का दिन दुनियाभर के शेयर बाजारों के साथ-साथ भारत के लिए भी ब्लैक मंडे के रूप में दिखाई दिया। सेसेंक्स में एक ही दिन में निवेशकों के 19.4 लाख करोड़ रुपए स्वाह हो गए। न केवल दुनिया के शेयर बाजार ढहते दिख रहे हैं, वरन चीन, कनाड़ा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ सहित कई देशों द्वारा अमेरिका पर लगाए गए जवाबी टैरिफ के कारण वैश्विक ट्रेड वॉर शुरू हो गयी है। इस बीच संभावना उभरी है कि निकट भविष्य में भारत अपनी अमेरिका के अनुकूल व्यापार नीति से ट्रंप की टैरिफ आपदा के बीच निर्यात और वैश्विक व्यापार के नए समीकरणों से नए मौके हासिल कर सकता है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था तथा शेयर बाजार भी लाभान्वित हो सकते हैं।

गौरतलब है कि ट्रंप द्वारा भारत पर 26 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है वहीं चीन पर 54 प्रतिशत, वियतनाम पर 46 फीसदी, बांग्लादेश पर 37 प्रतिशत तथा थाइलैंड पर 36 फीसदी सुनिश्चित किया है। वित्तवर्ष 2023-24 में भारत के कुल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी करीब 18 फ़ीसदी रही, जो लगभग 77.5 अरब डॉलर थी, निर्यात की ऐसी ऊंचाई अमेरिका को भारत का बड़ा व्यापारिक साझेदार बनाती है। ट्रंप के टैरिफ से भारत के कई प्रमुख निर्यात क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। इनमें आईटी, टेक्सटाइल और परिधान, ऑटो पार्ट्स, रत्न-आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक्स व कृषि उत्पाद शामिल हैं। भारत के दवा और सेमीकंडक्टर उद्योग पर भी टैरिफ की तलवार लटकी है। एसबीआई की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्तवर्ष 2025-26 में भारतीय उत्पादों का अमेरिका को निर्यात करीब 85 हजार करोड़ रुपए तक घट सकता है और टैरिफ से भारत के जीडीपी के करीब 0.2 फीसदी घटने की आशंका रहेगी।

इस सबके बावजूद ट्रंप के टैरिफ की मार के बीच भारत के लिए मौके भी छिपे हैं। जहां अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ दूसरे कई प्रतिस्पर्धी देशों से कम होने से अमेरिका सहित दुनिया में देश के निर्यात बढ़ने की संभावना है। भारत अमेरिका के साथ नए व्यापार समझौते तथा अन्य देशों संग द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के लिए रणनीतिक कदम बढ़ा रहा है, उससे भारत के लिए अमेरिका समेत कई देशों में निर्यात-कारोबार बढ़ाने के मौके भी बढ़ सकते हैं।

एशिया के उभरते बाजारों में भारत पर टैरिफ फिलीपींस को छोड़कर सबसे कम है। ऐसे में तुलनात्मक कम टैरिफ से भारत को वैश्विक व्यापार और मैन्युफैक्चरिंग में अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिल सकता है। इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में अमेरिकी बाजार में भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा मजबूत होगी। प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यातक देशों की तुलना में भारत पर कम टैरिफ लगा है। खासकर चीन व वियतनाम के मुकाबले भारत बेहतर स्थिति में है। टेक्सटाइल निर्यात बाजार में भी बेहतर अवसर मिल सकते हैं। अन्य देशों के सामान अमेरिका में ज्यादा महंगे होने से वहां भी भारतीय उत्पादों की मांग बढ़ेगी।

भारत ट्रंप की टैरिफ मार से बचने और वैश्विक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए नए वैश्विक व्यापार समीकरणों संग आगे बढ़ रहा है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के साथ कोलम्बो में व्यापार और रक्षा सहित सात महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इसके पूर्व बिम्सटेक सम्मेलन के दौरान इस संगठन के देशों के साथ व्यापार बढ़ाने पर भी चर्चा की। बीते मार्च माह के अंत में नई दिल्ली में भारत और अमेरिका के वरिष्ठ व्यापार प्रतिनिधियों ने दोनों देशों के बीच 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंचाने के प्रस्तावित व्यापार समझौते की रूपरेखा और शर्तों को लेकर वार्ता की। देश कई छोटे-बड़े देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) और द्विपक्षीय व्यापार समझौतों की रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है। इनसे निर्यात अवसर बढ़ेंगे।

इसमें दो राय नहीं कि ट्रंप के टैरिफ से निर्मित व्यापार युद्ध के कारण वैश्विक कंपनियां भारत के मजबूत घरेलू बाजार और मध्यम वर्ग के कारण चमकीले बाजार में नए निवेश को तत्पर होंगी। वहीं टैरिफ जंग में भारत के लिए घरेलू मांग, घरेलू आर्थिक घटक, नए व्यापार समझौते, रिकार्ड खाद्यान्न उत्पादन व खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों का निर्यात कारगर हथियार हो सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक टैरिफ चुनौतियों के बीच भी चालू वित्त वर्ष 2025-26 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहेगी जो अर्थव्यवस्था के मजबूत व स्थिर विस्तार का संकेत है। साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती इकॉनोमीज़ में से एक बनी रहेगी।

यद्यपि भारत की संसद में ट्रंप की नई टैरिफ नीति के मद्देनजर घरेलू उद्योगों के संरक्षण की बात कही गयी है, लेकिन अब उद्योग जगत को टैरिफ संरक्षण की बजाय प्रतिस्पर्धा और अनुसंधान व विकास पर ध्यान देना होगा। वर्ष 1991 में उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा की ओर बढ़ाने की जो नीति लागू हुई, उससे देश को उदारीकरण के लाभ मिले हैं। अगर टैरिफ की आड़ में रहेंगे तो प्रतिस्पर्धी नहीं बन पाएंगे। नए अवसरों का पूरा लाभ उठाने के लिए कारोबार करने में आसानी बढ़ानी होगी। लॉजिस्टिक्स व बुनियादी ढांचे में निवेश करना होगा और नीतिगत स्थिरता कायम रखनी होगी।

लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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