Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

राजनीतिक विरासत को समृद्ध करती प्रियंका की जीत

ज्योति मल्होत्राद ग्रेट गेम पिछले सप्ताह महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी में छाई गहरी खामोशी आपको बताती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा देश भर में सत्ता क्यों कायम रखे हुए हैं।...
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement
ज्योति मल्होत्रा

द ग्रेट गेम

पिछले सप्ताह महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी में छाई गहरी खामोशी आपको बताती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा देश भर में सत्ता क्यों कायम रखे हुए हैं। एक शब्द में कहें तो ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस उन्हें इसके लिए सक्षम बनाती है। बीते शुक्रवार को राजधानी में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में द ट्रिब्यून के फोटोग्राफर मुकेश अग्रवाल द्वारा खींची गई तस्वीरें जाने-अनजाने में इस पुरानी पार्टी के मौजूदा हालात को बखूबी दर्शाती हैं। एक तस्वीर में बुजुर्ग अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अपने खास अंदाज में मफलर लपेटे हुए, अपने कनिष्ठ सहयोगी राहुल गांधी को - जिन्होंने चिरपरिचित सफेद टी-शर्ट पहनी हुई है -कागज का एक टुकड़ा दिखाते प्रतीत हो रहे हैं, जबकि होना इससे उलट चाहिए था।

Advertisement

पिछले छह-सात दिनों से खूब खबरें चली कि महाराष्ट्र के महायुति गठबंधन के भीतर इस मुद्दे पर खींचतान और दबाव बना हुआ है कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, देवेंद्र फडणवीस या एकनाथ शिंदे। इसके विपरीत, कांग्रेस फिर से करवट लेकर सोने चली गई लगती है। एमवीए गठबंधन से उद्धव ठाकरे द्वारा किनारा करने की चर्चा राज्य में हो रही है, लेकिन गठबंधन के घटकों के बीच दरार और मनमुटाव का शोर वास्तव में चुनाव परिणाम आने से पहले ही मचना शुरू हो गया था - जब वे इस मुद्दे पर बहस करने लगे थे कि महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कौन होगा?

निश्चित रूप से, यह एक अनूठी स्थिति है। कांग्रेस और राहुल गांधी नियमित रूप से भाजपा पर मोदी की छवि बतौर देवतुल्य व्यक्ति पेश करने का आरोप लगाते हैं – खुद प्रधानमंत्री ने लोकसभा चुनाव से पहले वाराणसी में एक चैनल को दिए साक्षात्कार में इस तथ्य को स्वीकार किया था, जब उन्होंने कहा : ‘मुझे यकीन है कि भगवान ने (मुझे) भेजा है, क्योंकि इतनी ऊर्जा मेरे जैविक शरीर में तो नहीं हो सकती थी’। लेकिन तथ्य यह है कि भले ही कांग्रेस एक के बाद एक चुनाव हारती जा रही है - झारखंड नियम की बजाय अपवाद है - फिर भी उसने अपने अंदर झांकने से आंखें मूंद रखी हैं।

आश्चर्यजनक तथ्य यह बना हुआ है कि हार के पीछे राहुल गांधी पर सीधे-सीधे अंगुली उठाने से कांग्रेस पार्टी बचती है और यह बात मोदी और भाजपा को राज्य-दर-राज्य खुद को मजबूत करने का मौका प्रदान करती है। जब पिछली गर्मियों में भाजपा संसद में अपना खुद का पूर्ण बहुमत नहीं ले पाई थी, तो उसने बारीकी से जांच की कि गलती कहां रही, जिसमें यह भी शामिल था कि आरएसएस ने मदद क्यों नहीं की। इसके बाद हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए चुनावों में भूल से सबक लेना सुनिश्चित किया गया - इसलिए हरियाणा में प्रत्येक विधानसभा सीट पर माइक्रो मैनेजमेंट की गयी और अति आत्मविश्वासी बनी कांग्रेस के पैरों तले से जमीन खींच ली और महाराष्ट्र में ‘लाड़ली-बहना’ जैसी योजनाओं की बदौलत जीत हासिल की, जो महिलाओं के बैंक खाते में सीधे पैसे डालने की गारंटी देती है।

इसके विपरीत, कांग्रेस ईवीएम को दोष देने में लगी रही और अपनी विफलता के पीछे ‘बड़े पैमाने पर धांधली’ को जिम्मेदार ठहराया। तमाम अच्छे नेताओं की तरह विफलता को स्वीकार करने के बजाय राहुल वायनाड से अपनी करिश्माई बहन की जीत मनाने में अगुवाई करते नज़र आए – दृश्य मनोहारी था,खासकर जब वह युवा महिला पारंपरिक केरल कसावु साड़ी में संसद में शपथ लेने पहुंची और त्रुटिहीन हिंदी में सांसद के रूप में सौगंध उठाई।

लेकिन अब वास्तविक दृश्य देखिये। सदन में अब तीन गांधी हैं- राज्यसभा में मां सोनिया तो लोकसभा में उनके बच्चे राहुल और प्रियंका, राहुल उत्तर प्रदेश के दिल रायबरेली से सांसद, तो प्रियंका दक्षिण भारत के खूबसूरत पहाड़ी जिले वायनाड से। लेकिन यहां कोई मुगालता न रहे, इस जीत से पारिवारिक जागीर रूपी कांग्रेस पर गांधियों की पकड़ अब और भी मजबूत हो गई है।

वंशवाद विरोधी आवाज़ें उठना भारतीय राजनीति में अब लंबे समय से बंद हो चुकी हैं– आज न केवल कांग्रेस बल्कि हर राजनीतिक दल,नेता-नेत्रियों के बेटे-बेटियों से भरा पड़ा है, जो कथित तौर पर अच्छाई की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके पीछे वे कौन से तर्क देंगे, उनसे अब हम सब अच्छी तरह वाकिफ हैं। भारत के लोग इतने अक्लमंद हैं कि अगर आप उनके लिए पर्याप्त मेहनत नहीं करते तो वे आपको अपना नेता स्वीकार नहीं करेंगे, भले ही आपकी बपौती कितनी भी बनती हो।

वंशवाद का आरोप अब कांग्रेस की समस्या नहीं रही। यह तथ्य है कि गांधी परिवार ने एक ‘मुखौटे’ पर जोर देना जारी रखा हुआ है, मुखौटा पहने उस आदमी की डोर पीछे से इस परिवार के हाथ में है। बतौर सांसद अपनी पदोन्नति के साथ, प्रियंका कठपुतली चलाने वालों की श्रेणी में शामिल हो गई हैं। उनकी मां, एक असाधारण महिला, जिन्होंने साल 1991 की गर्मियों में अपने पति की दुखद और जघन्य हत्या के बाद बनी परिस्थिति में कांग्रेस के कुनबे को एकजुट बनाए रखा और मनमोहन सिंह के उल्लेखनीय नेतृत्व में कांग्रेस 10 साल सत्ता में रही। वे अब सार्वजनिक जीवन से दूर हो गई हैं, उनकी बेटी ने आगे आकर मोर्चा संभाला है।

यह अप्रासंगिक है कि कमान किसके हाथ में दी गई है, सोनिया के बेटे काे या बेटी को। सदन में बतौर नए गांधी, प्रियंका की अतुलनीय चुंबकीय उपस्थिति पर्याप्त चेतावनी है कि गांधियों को हलके में लेना आसान न होगा। यही कारण है कि प्रियंका का इतना महत्व है। वे पार्टी में जोश भरने और राजनीति में हलचल मचाने का माद्दा रखती हैं। तय है जब वे संसद में बोलेंगी तो माहौल में बिजली अवश्य दौड़ जाएगी। हालांकि, इस बात की गुंजाइश कम है कि कांग्रेस की डोलती नैया को वे पार लगा पाएंगी, क्योंकि पतवार भाई के हाथ में है। इसका मतलब यह है कि राहुल के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने महाराष्ट्र और हरियाणा, दोनों जगह, गठबंधन को मिली वोटों का हिस्सा घटाया है। या फिर भाई-बहन की जोड़ी इंडिया गठबंधन में पड़ी दरार को लेकर सहज है - जैसा कि तृणमूल कांग्रेस ने अनुरोध किया है कि संसद को इस शीतकालीन सत्र में काम करने दिया जाए - बजाय इसके कि अडानी मुद्दे पर राहुल अड़े रहें।

सब ठीक होता यदि कांग्रेस कुछ राज्यों में जीत जाती - आखिरकार, हर कोई विजेता को पसंद करता है। लेकिन जब पार्टी लगातार हार रही हो, तो सवाल यह पैदा होता है कि गांधी परिवार इतना खास क्यों है कि उसे चुनौती नहीं दी जा सकती - जैसा कि जी-23 ने एक बार सोचकर प्रयास किया, लेकिन बात बनी नहीं – इसका जवाब अभी भी ठीक से नहीं मिल पाया।

निश्चित रूप से, इस घटनाक्रम से मोदी से ज्यादा कोई और खुश नहीं होगा। वे जानते हैं कि जब वे पार्टी के अंदर लोकतंत्र की कमी के लिए कांग्रेस पर तंज कसते हैं, तो लाखों भारतीयों के दिलों को छूते हैं। वे जानते हैं, और देश भी जानता है, कि ‘इंडिया इज़ इंदिरा’ के दिन बहुत पहले लद चुके हैं। और यदि गांधी परिवार जिम्मेदारी लेने से इनकार करता है, तो यह पुरानी और बड़ी पार्टी धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी।

एक समय,पुराने अच्छे दिनों में, प्रियंका को कांग्रेस पार्टी का ‘ब्रह्मास्त्र’ कहा जाता था। सवाल यह है कि क्या ऐसा हथियार आज की राजनीति में कुछ कर दिखाएगा।

लेखिका ‘द ट्रिब्यून’ की प्रधान संपादक हैं।

Advertisement
×