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धंधा ही असली, बाकी सब नकली

व्यंग्य/उलटबांसी
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आलोक पुराणिक

अमेरिकन राष्ट्रपति इस वादे पर चुने गये थे कि वह तमाम युद्धों को बंद करवा देंगे। पर हालात बदल गये हैं और अब ट्रंप ने कहा है कि वह यूक्रेन को और हथियार देंगे, यानी रूस यूक्रेन का युद्ध बंद न हो रहा है। उधर ईरान और अमेरिका दोनों एक-दूसरे को धमका रहे हैं कि खबरदार देख लूंगा। युद्ध कहीं के बंद न हो रहे। ट्रंप की कोई न सुन रहा है। पर ट्रंप अपने मतलब की बात सुन रहे हैं।

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युद्ध अधिक हो जाये तो हथियारों की सेल भी ज्यादा होगी, ट्रंप के लिए यह बात ज्यादा फायदेमंद है। रुके हुए युद्धों में हथियार कंपनियों के मुनाफे भी रुक जाते हैं। युद्ध होता है तो हथियार कंपनियां मुनाफा खाती हैं, नेता कमीशन खाते हैं। जनता क्या खाती है, इससे बहुत ज्यादा मतलब किसी देश के नेता को न होता।

पाकिस्तान में देख लें। सब कुछ महंगा हो रहा है और पाकिस्तानी सेना कह रही है कि बजट में सबसे बड़ा हिस्सा हमारा होना चाहिए। पाकिस्तानी सेना युद्ध एक न जीतती, पर पाकिस्तान के नेता सेना के आगे बजट सारा हार जाते हैं। पाकिस्तान में जनरल युद्ध हारता है, तो फील्ड मार्शल हो जाता है। डर है कि पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर कहीं पीएम मोदी से निवेदन न कर दें कि एक हमला और कर दीजिये, फिर मैं फील्ड मार्शल से राष्ट्रपति बन जाऊंगा। पाकिस्तान की मजबूरी है इसलिए दो-दो देशों चीन और अमेरिका को बाप बनाना पड़ रहा है। पाकिस्तान की हालत उस गर्लफ्रेंड जैसी है, जिसे अपने दोनों ही ब्वॉयफ्रेंड्स से वसूली करनी है। ब्वॉयफ्रेंड भी जानते हैं कि गर्लफ्रेंड वसूलीबाज है, धंधेबाज है। पर वो ऱिश्ता चलाये रखते हैं।

पर पाकिस्तान कंगाल देश है, उसे हथियार उधार पर चाहिए होते हैं, सो ट्रंप की दिलचस्पी पाकिस्तान को हथियार बेचने में नहीं है। उधार के ग्राहक को ज्यादा भाव नहीं मिलते।

ट्रंप के पुराने कारोबारी दोस्त एलन मस्क ने अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली है। मस्क को समझ में आ गया कि तमाम धंधों के साथ राजनीति का धंधा भी कर लेना चाहिए, चार पैसे फालतू कमा लिये जाते हैं। चार पैसे एक्स्ट्रा कमाने के चक्कर में कई बार इज्जत भी चली जाती है।

अमेरिका पर अब कोई देश पूरा भरोसा नहीं करता। धंधेवाले के लिए पहली प्राथमिकता धंधा होती है। जो हथियार खऱीद ले, वही दोस्त है। जो नकद देकर खऱीदे वह परम दोस्त। भारत फ्रांस से खरीदता है राफेल, अमेरिका से नहीं खरीदता। दोस्ती कैसे चले। जिस दोस्ती में चार पैसे न कमा पायें, वो दोस्ती कैसी। गहरी बात है, पर ट्रंप समझते हैं।

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