Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

अब तो बादलों में भी मौजूद हैं माइक्रोप्लास्टिक

मुकुल व्यास दुनिया में प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों से होने वाला प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। पश्चिमी प्रशांत महासागर स्थित 11 किलोमीटर गहरी मारियाना ट्रेंच से लेकर माउंट एवरेस्ट की चोटी तक, पृथ्वी पर लगभग सभी जगह माइक्रोप्लास्टिक...
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

मुकुल व्यास

दुनिया में प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों से होने वाला प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। पश्चिमी प्रशांत महासागर स्थित 11 किलोमीटर गहरी मारियाना ट्रेंच से लेकर माउंट एवरेस्ट की चोटी तक, पृथ्वी पर लगभग सभी जगह माइक्रोप्लास्टिक पाए गए हैं। अब एक नए अध्ययन से पता चला है कि प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े हमारे बादलों में भी मौजूद हैं और वे हमारे द्वारा खाए और पिए जाने वाली लगभग हर चीज को दूषित कर सकते हैं। जापान में शोधकर्ताओं ने माउंट फूजी और माउंट ओयामा पर चढ़ाई की और उनकी चोटियों पर छाई धुंध के पानी में माइक्रzोप्लास्टिक पाया।

Advertisement

इस अध्ययन के प्रमुख लेखक हिरोशी ओकोची ने कहा, अगर प्लास्टिक वायु प्रदूषण के मुद्दे से सक्रिय रूप से नहीं निपटा गया, तो जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक जोखिम एक वास्तविकता बन सकते हैं। इससे भविष्य में अपरिवर्तनीय और गंभीर पर्यावरणीय क्षति हो सकती है। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बादलों से पानी इकट्ठा करने के लिए माउंट फ़ूजी और माउंट ओयामा पर चढ़ाई की। फिर उन्होंने नमूनों के भौतिक और रासायनिक गुणों को निर्धारित करने के लिए उन पर उन्नत इमेजिंग तकनीक लागू की। शोधकर्ताओं ने हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक में अलग-अलग प्रकार के नौ पॉलिमर और एक प्रकार के रबड़ की पहचान की, जिनका आकार 7.1 से 94.6 माइक्रोमीटर तक है। बादल के प्रत्येक लीटर पानी में प्लास्टिक के 6.7 से 13.9 टुकड़े पाए गए।

इसके अलावा ‘हाइड्रोफिलिक’ या जल-प्रेमी पॉलिमर भी प्रचुर मात्रा में थे। शोधकर्ताओं के अनुसार, इससे पता चलता है कि ये कण तेजी से बादल बनने की प्रक्रिया में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार जलवायु प्रणालियों में उनका योगदान महत्वपूर्ण होता हैं। ओकोची ने कहा, जब माइक्रोप्लास्टिक ऊपरी वायुमंडल में पहुंचते हैं और सूरज की रोशनी से पराबैंगनी विकिरण के संपर्क में आते हैं,तब उनमें क्षय होने लगता है। इससे ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि होती है।

नए प्रमाणों ने माइक्रोप्लास्टिक को व्यापक पर्यावरणीय नुकसान के अलावा, हृदय और फेफड़ों के स्वास्थ्य तथा कैंसर से जोड़ा है। माइक्रोप्लास्टिक हाल के वर्षों में सुर्खियों में आए हैं,क्योंकि उनके अनुचित निपटान के परिणामस्वरूप कई टन कचरा समुद्र में पहुंच गया है। हर साल प्लास्टिक कचरे की बहुत बड़ी मात्रा का पुनर्चक्रण नहीं होता। इसका मतलब यह है कि वह समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में मिल रहा है। कणों के अलग-अलग आकार के कारण वर्तमान जल प्रणालियां माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को प्रभावी ढंग से फिल्टर करने में असमर्थ हैं। प्लास्टिक हजारों वर्षों तक नष्ट नहीं होता और अनुमान है कि महासागरों में पहले से ही प्लास्टिक की लाखों वस्तुएं मौजूद हैं। भविष्य में यह संख्या और भी बढ़ेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि प्लास्टिक के पुनर्चक्रण के लिए कठोर कदम नहीं उठाए गए तो दुनिया के महासागरों में प्लास्टिक कचरे की मात्रा 2050 तक मछलियों से अधिक हो जाएगी।

एक अन्य शोध से पता चला कि दुनिया का 80 प्रतिशत से अधिक नल का पानी प्लास्टिक से दूषित है। अमेरिका के मिनेसोटा विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने पाया कि अमेरिका में पानी में प्लास्टिक प्रदूषण की दर 93 प्रतिशत है जो दुनिया में सबसे अधिक है। कुल मिलाकर दुनिया भर के दर्जनों देशों के 83 प्रतिशत पानी के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है। बोतलबंद पानी एक सुरक्षित विकल्प नहीं हो सकता है, क्योंकि विज्ञानियों को उसमें भी दूषित नमूने मिले हैं।

एक अन्य अध्ययन से पता चला कि मनुष्य के शरीर में भी प्रतिदिन विषाक्त माइक्रोप्लास्टिक कण पहुंच रहे हैं। इन कणों की मात्रा इतनी अधिक है कि सप्ताह भर में एक पूरे क्रेडिट कार्ड जितना माइक्रोप्लास्टिक सांस के जरिये हमारे शरीर में प्रवेश कर रहा है। ‘फिजिक्स ऑफ फ्लुइड्स’ पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्षों में चेतावनी दी गई है कि प्लास्टिक उत्पादों के क्षरण से उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म कण हमारी श्वसन प्रणाली सहित संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं। वैज्ञानिकों ने श्वसन प्रणाली के ऊपरी वायुमार्ग में माइक्रोप्लास्टिक कणों के परिवहन और जमाव का विश्लेषण करने के लिए एक कंप्यूटर मॉडल विकसित किया था। इस दल में सिडनी के प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी शामिल थे।

माइक्रोप्लास्टिक कण दरअसल प्लास्टिक के सूक्ष्म कण होते हैं जो आमतौर पर 5 मिलीमीटर से कम लंबाई के होते हैं। ज्यादातर ये कण लंबी अवधि में बड़े प्लास्टिक उत्पादों के विखंडन से उत्पन्न होते हैं। अत्यंत सूक्ष्म कणों को माइक्रोबीड्स भी कहा जाता है जिन्हें सौंदर्य उत्पादों और टुथपेस्ट आदि में प्रयुक्त किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से विज्ञानी लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि इन कणों से स्वास्थ्य पर कई तरह के प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं। इन कणों के बिस्फेनॉल और फेलेट्स जैसे रासायनिक घटक हार्मोनों को बाधित करने के लिए जाने जाते हैं। ये रसायन कैंसर, बांझपन और समय-पूर्व यौवन से जुड़े हुए हैं। हाल के अध्ययनों से यह भी पता चला है कि मानव वायुमार्ग की गहराई में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक श्वसन प्रणाली के लिए गंभीर खतरे पैदा कर सकते हैं।

दुनिया में माइक्रोप्लास्टिक का उत्पादन बढ़ रहा है। हवा में माइक्रोप्लास्टिक का घनत्व काफी बढ़ रहा है। शोधकर्ताओं ने धीमे और तेज सांस लेने की स्थिति में 1.6 से 5.56 माइक्रोन के विभिन्न माइक्रोप्लास्टिक कणों के प्रवाह का पता लगाया। नए अध्ययन में पाया गया कि विषाक्त प्रदूषकों वाले ये प्लास्टिक कण नाक की गुहा या गले के पीछे इकट्ठा होते हैं। उनके जमा होने की दर सांस लेने की स्थिति और कणों के आकार पर निर्भर करती है। डॉ. इस्लाम ने कहा, वायुमार्ग की जटिल और अत्यधिक विषम संरचनात्मक आकृति तथा नाक की गुहा और गले के मध्य भाग में जटिल प्रवाह व्यवहार के कारण माइक्रोप्लास्टिक कण अपने प्रवाह पथ से विचलित हो जाते हैं और इन क्षेत्रों में जमा हो जाते हैं।

उन्होंने कहा, प्रवाह की गति, कण की जड़ता और विषम संरचना समग्र जमाव को प्रभावित करती है और नाक की गुहाओं और गले के मध्य भाग में जमाव को बढ़ाती है। वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि बढ़े हुए प्रवाह से कम जमाव हुआ और लगभग 5.56 माइक्रोन के बड़े माइक्रोप्लास्टिक कण छोटे कणो की तुलना में वायुमार्गों में अधिक बार जमा हुए। ये निष्कर्ष माइक्रोप्लास्टिक कणों से संपर्क और सांस के जरिए उनके शरीर में पहुंचने के खतरों को उजागर करते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण के उच्च स्तर या औद्योगिक गतिविधि वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के बीच इस तरह के खतरे बहुत ज्यादा हैं। हम जिस हवा में सांस लेते हैं,उसमें माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति और उसके संभावित स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में अधिक जागरूकता आवश्यक है।

लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

Advertisement
×