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रोजगारपरक शिक्षा से रुकेगा युवाओं का पलायन

विदेश जाने की होड़
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दुनिया में सबसे ज्यादा युवाओं के देश में यदि बेरोजगारी बढ़ रही है और गैर कानूनी तरीके से विदेश जाने की होड़ लगी है तो यह हमारे तंत्र की भी विफलता है।

सुरेश सेठ

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भारत को युवाओं का देश कहा जाता है, क्योंकि यहां की आधी आबादी 18 से 35 वर्ष की युवा पीढ़ी वाली है, जो कर्मशील है। लेकिन विडंबना यह है कि इस पीढ़ी को रोजगार की सही गारंटी देने की बजाय, उन्हें केवल बेरोजगारी से जूझने की गारंटी दी जाती है। देश में शॉर्टकट संस्कृति और अनुकंपाओं का बोलबाला है। एक ओर विकास दर के बढ़ने के आंकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं और कहा जाता है कि हम सबसे तेज आर्थिक विकास कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर लोगों के पास पर्याप्त रोजगार नहीं है। उनकी उम्मीदें टूट रही हैं।

शिक्षा की डिग्रियां अब कृत्रिम मेधा और डिजिटल दुनिया से असंबद्ध होती जा रही हैं। आज का युवा खुद को देश की मुख्यधारा से अलग महसूस करता है। हम एक समानतावादी समाज बनाने का संकल्प लेकर चले थे, लेकिन असमानताएं बढ़ती चली गईं। देश की 90 प्रतिशत संपत्ति मुट्ठीभर लोगों के हाथों में सिमट गई है। यह स्थिति पहले भी सच थी और आज भी वही सच है। शायद जब हम आजादी के शतकीय महोत्सव पर खुद को एक विकसित राष्ट्र कहेंगे, तब भी यही सच रहेगा। एक ऐसा राष्ट्र, जहां 80 करोड़ से अधिक लोग रियायती अनाज पर निर्भर हैं। ऐसे में सपनों और उम्मीदों से भरा नौजवान अपने देश में अपने भविष्य को खो चुका महसूस करता है। उसे विदेश जाने के सपने ललचाने लगते हैं और वह किसी भी तरीके से, वैध या अवैध, विदेश जाने को तैयार हो जाता है। अमेरिका उनका सबसे आकर्षक गंतव्य बन जाता है। वहां की आय भारतीय मुद्रा में लाखों रुपये बन जाती है, जिससे वह कम से कम वेतन पाकर भी समृद्ध जीवन जीने की उम्मीद करता है। ऐसे में, गांवों में खाली पड़े घर और बुजुर्गों के लिए बनी हवेलियां बस अकेलेपन और असमर्थता का प्रतीक बन जाती हैं।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अवैध प्रवासी भारतीयों और अन्य देशों के नागरिकों को अमेरिका से निकालने का अभियान शुरू किया, जिसके तहत बिना वैध कागजात वाले भारतीय नागरिकों को अस्तित्व के संकट का सामना करना पड़ा। ट्रम्प का नारा ‘अमेरिका अमेरिकियों के लिए’ अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीयों के लिए मुश्किलें बढ़ा रहा है।

इमिग्रेशन एजेंटों द्वारा दिखाए गए झूठे सपने अब टूट रहे हैं, क्योंकि इन एजेंटों ने फर्जी अकादमियों और विश्वविद्यालयों के माध्यम से युवाओं को विदेश भेजने का झांसा दिया था। यह पीढ़ी अपने सपनों से निर्वासित होकर एक भटकाव की स्थिति में है। इन युवाओं के भविष्य का निर्धारण केवल भारत में होना चाहिए, जहां उन्हें सही दिशा और अवसर मिले। पंजाब में अवैध इमिग्रेशन एजेंटों की संख्या भयावह है। यहां पंजीकृत एजेंटों की संख्या महज 212 है, जबकि अधिकांश एजेंट अवैध रूप से काम कर रहे हैं। इसके बावजूद, ट्रैवल एजेंट नए तरीके से युवाओं को विदेश भेजने का झांसा देते हैं, जो उन्हें अवैध रास्तों से, जैसे जंगलों में भटकने, पैदल चलने और लाखों रुपये खर्च करने के बावजूद सही मंजिल तक नहीं पहुंचने देते।

अब अमेरिकी सरकार ने अवैध प्रवासियों के खिलाफ अभियान शुरू किया है, जिसके तहत जो लोग बिना कागजात के अमेरिका में प्रवेश करेंगे, उन्हें निकाल बाहर किया जाएगा। यह समस्या केवल युवाओं के लिए नहीं, बल्कि उनके परिवारों के लिए भी गंभीर है, जो अपने बच्चों को विदेश भेजने के लिए मजबूर होते हैं।

क्या भारत को अपनी युवा पीढ़ी के लिए रियायतें मांगने की आवश्यकता हो गई है? यह एक गंभीर सवाल है। मोदी और ट्रम्प की मैत्री को देखते उम्मीद की जा सकती है कि इन युवाओं को थोड़ी राहत मिल सकेगी। हालांकि, अमेरिका का अपना स्वार्थ भी है। वह भारत के तकनीकी एक्सपर्ट्स, जैसे आईटी पेशेवरों को एच-1बी वीजा के तहत स्वीकार करता है, क्योंकि वह जानता है कि ये लोग उसे डिजिटल, रोबोटिक और कृत्रिम मेधा के क्षेत्र में मदद कर सकते हैं। लेकिन, वह उन मजदूरों या श्रमिकों को नहीं चाहता जो उसके देश के शारीरिक कामकाजी वर्ग के वेतन में सेंध लगाते हैं। यही कारण है कि अमेरिका अवैध प्रवासी भारतीयों के खिलाफ सख्त अभियान चला रहा है। इसे गलत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि हर देश का अधिकार है कि वह केवल वैध नागरिकों को अपने देश में रखे। अवैध नागरिक किसी भी देश के कानून और अनुशासन के लिए खतरा बन सकते हैं। विदेशों में रोजगार पाने की चाहत की बजाय, क्या यह समय नहीं है कि हम मेहनती युवाओं के लिए अपने देश में अवसर प्रदान करें?

हमारी आर्थिक नीति को आयात आधारित से निर्यात आधारित बनाना बहुत जरूरी है। इसके लिए लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना आवश्यक है। ऐसे उद्योगों में काम करने के अवसर इन्हीं नौजवानों को मिल सकते हैं। लेकिन इसके लिए केवल निवेश की जरूरत नहीं है, बल्कि शिक्षा प्रणाली में भी व्यापक बदलाव की आवश्यकता है।

लेखक साहित्यकार हैं।

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