धर्मेंद्र जोशी
तमाम राजनीतिक दलों के घोषणा-पत्र में जिक्र है, उनको आम आदमी की बहुत फिक्र है। उसके लिए मुफ्त की योजनाओं का पिटारा खोल रहे हैं, पांच साल की लंबी चुप्पी के बाद अब फिर से बोल रहे हैं। महलनुमा मकानों से निकलकर वे सड़क की धूल छान रहे हैं, और आम आदमी को ही चुनाव तक सब कुछ मान रहे हैं। जब मतदान सम्पन्न हो जाएगा आम आदमी फिर से भीड़ में खो जाएगा, मत देने वाला तो हमेशा की तरह रहेगा कमजोर, लेकिन वोट पाने वाला बहुत ताक़तवर हो जाएगा। यही लोकतंत्र की विडम्बना है कि निराशा का कोहरा आज भी घना है।
साड़ी, चूड़ी, बिंदी, चप्पल, कंबल, राशन, भाषण सब कुछ देने की बात करेंगे अगर किसी ने हक मांगा, तो लाठियों से प्रहार करेंगे। दल बदल कर पद पाएंगे, सुबह इधर तो शाम उधर हो जाएंगे। जिसको पानी पीकर कोसा करते, उसके ही अब गुण गाएंगे। वोटर बेचारा भ्रम में रहेगा और वे एक-दूसरे से मिल जाएंगे।
आटा देंगे, डाटा देंगे, हर बजट में घाटा देंगे, खुद के खर्चे आसमान पर और जनता को नसीहत का कांटा देंगे। नफरत की आग को हवा देंगे, बेकसूर अपनी जान गंवा देंगे। भाई से भाई को जुदा करने का प्रयास जारी रहेगा, हर गांव, हर शहर अपनी अलग कहानी कहेगा। समय-समय पर अफवाह फैलाने का हुनर जानते हैं, यही कारण है कि ये खुद को खुदा मानते हैं।
मीठी-मीठी बात करेंगे, पीठ के पीछे वार करेंगे। अभिनय है, नस-नस में समाया, चेहरा देखकर गाना गाया। वंशवाद के मुखर विरोधी, पर यह बात इन पर लागू न होती। इनके नौनिहाल लाइन लगा कर खड़े हैं, मन में अरमान भी बहुत बड़े हैं। नाना-विधि जतन कर टिकट पा जाएंगे और बड़ी पंचायत की नुमाइंदगी कर ओहदा पा जाएंगे। वहीं दूसरी ओर आम आदमी इनके छलावे में आ जाएगा और पांच साल तक राम भरोसे जिंदगी बिताएगा।
टूटी सड़कें और पानी की किल्लत बदस्तूर जारी है, ठेकेदारों से इनकी नजदीकी यारी है। बदहाली के लिए ये पिछली सरकारों को जिम्मेदार मानते हैं, ये जनता के मन की बात जानते हैं। आश्वासनों के च्यवनप्राश को चटाने की कसमें खाएंगे और जैसे ही चुनाव खत्म होंगे सब कुछ भूल जाएंगे। फिर पांच साल तक जमीन पर नजर नहीं आयेंगे।
अच्छी शिक्षा और अच्छे स्वास्थ को लोग आज भी तरस रहे हैं, रेवड़ियों के बादल बिना रुके बरस रहे हैं। महंगाई से आम जनता मुहाल है, सिर्फ विज्ञापनों में ही दिखती खुशहाल हैं। पढ़े-लिखे नौजवान रोजगार की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन युवाओं के सपनों की किसे फिक्र है, इनके वचन पत्र में तो सर्वत्र सभी समस्या के हल का जिक्र है। जब भी समाधान का वक्त आता है, फिर से कोई चुनाव आ जाता है, और इस देश का आम आदमी वादों की लहरों में बह जाता है।