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मुद्दे की जुगाली, भुट्टे का मजा

राकेश सोहम‍् बारिश की शुरुआत के साथ भुट्टे की पीकें फूटने लगती हैं। वे घूंघट ओढ़े नई-नवेली दुल्हन की भांति लुभाने लगते हैं। बारिश के शबाब पर चढ़ते ही, भुट्टे बाज़ार की राह पकड़ लेते हैं। वे रास्तों के किनारे...

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राकेश सोहम‍्

बारिश की शुरुआत के साथ भुट्टे की पीकें फूटने लगती हैं। वे घूंघट ओढ़े नई-नवेली दुल्हन की भांति लुभाने लगते हैं। बारिश के शबाब पर चढ़ते ही, भुट्टे बाज़ार की राह पकड़ लेते हैं। वे रास्तों के किनारे ठेलों पर मद्धिम आंच में सिकते हुए खुशबुएं बिखेरने लगते हैं। वहीं मुद्दे तो सतत हैं। बिन मौसम, बिन बरसात, अनावृत्त सिर उठाते हैं और चहुंओर कॉलर उठाए घूमते हैं। इन्हें पैदा नहीं करना पड़ता। जब जैसी आवश्यकता पड़ती है, बना लिए जाते हैं। यद्यपि भुट्टों का मुद्दों से क्या लेना-देना? भुट्टे, भुट्टे हैं और मुद्दे, मुद्दे। भुट्टे साक्षात‍् हैं, जबकि मुद्दे कल्पनातीत। अब यह बात और है कि कोई भुट्टा-प्रेमी यह मुद्दा बना ले कि भुट्टे मुद्दों की भांति बारहों मास क्यों नहीं मिलते!

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चुनावी मौसम के मद्देनज़र इन दिनों मुद्दे बहुतायत में बनाए जा रहे हैं। इस बार भुट्टे के लिए बारिश खुद मुद्दा बनी हुई है। कहीं लोग बेजा बारिश से परेशान हैं और कहीं बारिश न होने से हलकान। अमूमन भुट्टे को भूनकर, नमक-मिर्च लगाकर उदरस्थ किया जाता है। जबकि मुद्दे उदरस्थ नहीं किये जाते। मुद्दों की केवल जुगाली की जा सकती है। गंभीर मुद्दे की ज्यादा जुगाली की जाती है। ज्यादा जुगाली मुद्दों को निखारती है। ऐसे मुद्दे सदैव ज़िंदा रहते हैं।

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गली-मोहल्ले, चाय-पान की दुकान, चाट के ठेले और कार्यालयों में अनेक मुद्दे भटक रहे हैं। मणिपुर की हिंसा पर केवल सियासत क्यों हो रही है? महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के मामलों पर इतनी उदासीनता क्यों है? रक्षा-बंधन के पूर्व बहना लाड़ली क्यों हो गई है? आदिवासी को पहले नहलाना और फिर उसके पैर धोकर पीने का क्या मतलब? टमाटर इतना लाल क्यों हो रहा है? महंगाई से भड़कते दामों का शमन कब होगा?

सड़क किनारे गरमा-गरम भुट्टे लेते हुए एक ग्राहक ने मुद्दा उठाया, ‘अब महिला सशक्तीकरण पर चौतरफा प्रयास जरूरी है।’ दूसरे ने भुट्टे से दाने निकालते हुए कहा, ‘हां, महिलाओं के प्रति ज्यादती और अत्याचार तभी कम होंगे।’ तीसरा भुट्टे के दानों को मुद्दे की तरह खींचना चाहता था लेकिन गंभीर हो गया, ‘जनाब ! कहने को महिलाएं पहलवान हैं, देश का मान हैं, लेकिन महिलाओं के प्रति हमारी गिरी मानसिकता कब बदलेगी?’ उसकी आंखों में आंसू तैर आए। भुट्टे विक्रेता ने पूछा, ‘मिर्च तो ज्यादा नहीं हो गई, साहब?’ तीसरे ने असमंजस में सिर हिलाया। सभी के भुट्टे समाप्त हो गए थे, लेकिन मुद्दे अभी जिंदा थे। वे उड़कर अगले ग्राहक के भुट्टे के साथ हो लिए।

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