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क्या अब खामेनेई हैं इस्राइल के निशाने पर

पुष्परंजन इस्राइली रक्षा बल (आईडीएफ) और मोसाद का मनोबल इस समय ऊंचा है। 58 दिनों के भीतर मध्य पूर्व में दो ‘शक्तिशाली’ नेताओं, हमास नेता इस्माइल हानिया और हिज़बुल्ला प्रमुख हसन नसरल्लाह को खत्म करने के बाद, सवाल यह है...
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पुष्परंजन

इस्राइली रक्षा बल (आईडीएफ) और मोसाद का मनोबल इस समय ऊंचा है। 58 दिनों के भीतर मध्य पूर्व में दो ‘शक्तिशाली’ नेताओं, हमास नेता इस्माइल हानिया और हिज़बुल्ला प्रमुख हसन नसरल्लाह को खत्म करने के बाद, सवाल यह है कि इस्राइल का अगला लक्ष्य कौन होगा? इस्राइल ने संकेत दिया है कि वह नफ्ताली बेनेट के ‘ऑक्टोपस सिद्धांत’ का पालन कर रहा है, जो हिज़बुल्ला या हमास जैसी छाया शक्तियों से लड़ने की बजाय, ईरान के साथ अब सीधा भिड़ना चाहता है। अर्थात, ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई अब निशाने पर हैं।

नसरल्लाह की हत्या के बाद, ईरानी अधिकारियों ने ख़ामेनेई को देश के अंदर एक अज्ञात सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित कर दिया था, जहां सुरक्षा के कड़े उपाय किए गए हैं। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए इस्राइल ने कहा कि हम आतंकवादी समूहों को समर्थन देने वालों को पाताल से खोजकर निकाल लेंगे। 30 जुलाई, 2024 को याद कीजिये, जब इस्राइल ने लेबनान की राजधानी बेरूत पर हमला किया, जिसमें हिज़बुल्ला के शीर्ष कमांडरों में से एक, फुआद शुक्र की मौत हो गई। कुछ घंटों बाद, एक विस्फोट में हमास के शीर्ष राजनीतिक नेता इस्माइल हनिया की तेहरान में मौत हो गई, जहां वे ईरान के नए राष्ट्रपति के उद्घाटन समारोह में भाग ले रहे थे।

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इस्राइल ने पिछले हफ्ते दहियाह में एक आवासीय इमारत के नीचे समूह के भूमिगत मुख्यालय पर ‘लक्षित हमले’ में हिज़बुल्ला प्रमुख सैय्यद हसन नसरल्लाह को मार डाला था। नसरल्लाह, जिन्होंने तीन दशकों से अधिक समय तक हिज़बुल्ला का नेतृत्व किया था, खामेनेई के ख़ास और ईरान की क्षेत्रीय प्रॉक्सी रणनीति में एक प्रमुख चेहरा थे। हमास नेता इस्माइल हानिया के बाद हसन नसरल्लाह इन दो ताक़तवर चेहरों के बूते ईरान की लीडरशिप इस्राइल को सबक़ सिखाने का दम भरती थी।

ईरान, जिसने नसरल्लाह की मौत के बाद बदला लेने की कसम खाई थी, ने मंगलवार रात को इस्राइल पर लगभग 200 बैलेस्टिक मिसाइलें दागीं। रॉयटर्स के अनुसार, ‘ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स ने दावा किया कि मिसाइल हमला हाल ही में लेबनान और गाजा में नेताओं की इस्राइली हत्याओं और ईरान समर्थित सशस्त्र समूह हिज़बुल्ला के खिलाफ आक्रामकता का जवाब था।’ लेकिन, इसे फुस्स हमला माना जाये, जिसमें इस्राइल के जान-माल की हानि लगभग नहीं के बराबर हुई।

85 वर्षीय ख़ामेनेई 1989 से हिज़बुल्ला का समर्थन कर रहे हैं। बेरूत में इस्राइल के हमले के बाद उन्होंने कहा, ‘क्षेत्र में सभी प्रतिरोधक ताक़तें हिज़बुल्ला के साथ खड़ी हैं।’ ख़ामेनेई के बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए, नेतन्याहू ने कहा, ‘आपके दोस्त ऐसे ही नारे लगाते थे, अब देखिए वे कहां हैं।’ इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने चेतावनी दी कि ईरान को इस्राइल पर मिसाइल हमले के लिए परिणाम भुगतने होंगे। उन्होंने सिनवार, डेफ़ और नसरल्लाह का हवाला देते हुए दावा किया कि जो प्रतिद्वंद्वी इस्राइल के सेल्फ डिफेन्स को कम आंक रहे हैं, वो परिणाम भुगतने को तैयार रहें।

दिलचस्प यह है, ईरान के सर्वोच्च नेता अब रेवोल्यूनेशनरी गार्ड के रहमोकरम पर है। कभी अयातुल्ला अली खामेनेई की मर्जी के बग़ैर ईरान का पत्ता नहीं हिलता था। अब उन्हें डर है कि कोई ‘विभीषण’, मोसाद को उनके ठिकाने की सूचना न लीक कर दे। सिनवार, डेफ़, हानिया और नसरल्लाह की हत्याएं सत्ता के गलियारे में सक्रिय ‘विभीषणों’ की सूचनाओं की वजह से हुई थी।

अयातुल्ला अली खामेनेई पर जानलेवा हमला पहले हो चुका है। 27 जून 1981 को मुजाहिदीन-ए-खल्क द्वारा की गई हत्या के प्रयास में वो बाल-बाल बच चुके हैं, जब टेप रिकॉर्डर में छिपा हुआ एक बम, उनके बगल में फट गया। अयातुल्ला अली खामेनेई के इलाज में कई महीने लग गए, तब से उनका दाहिना हाथ काम नहीं कर पाता।

ईरानी मीडिया ने शनिवार को बताया कि लेबनान की राजधानी के बाहर इस्राइली हमलों में ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के डिप्टी कमांडर अब्बास निलफोरुशन की भी मौत हो गई। सर्वोच्च नेता की सुरक्षा के वास्ते जो उपकरण लगाए गए हैं, उनकी सबसे पहले जांच की गई। क्या रूस और चीन की ख़ुफ़िया एजेंसियां अयातुल्ला अली खामेनेई की सुरक्षा को कोऑर्डिनेट कर रही हैं? इस सवाल पर बिलकुल चुप्पी है। अब जब सर्वोच्च नेता के ही जान के लाले पड़े हुए हों, तो ईरान इस्राइल से बदला क्या लेगा?

ईरान ने हिज़बुल्ला और हुथी लड़ाकों का इस्तेमाल जिस तरह से किया है, उससे कई सवाल खड़े होते हैं। भूमध्यसागर के पूर्वी तट पर स्थित एक संकीर्ण पट्टी पर अवस्थित लेबनान, दुनिया के छोटे मुल्कों में से एक है। इस समय आप राजधानी बेरूत चाहकर भी नहीं जा सकते। कभी लेबनान, ‘मध्य-पूर्व का स्विट्ज़रलैंड’ माना जाता था। अब लेबनान एक ‘फेल्ड स्टेट’ है। यह भी दिलचस्प है कि युद्ध इस्राइल और लेबनान के बीच नहीं हो रही, बल्कि हिज़बुल्ला एक राष्ट्रीय फ़ोर्स के रूप में एक्ट कर रहा है। यह सब ईरान की शह पर हुआ। लेबनानी सशस्त्र बलों (एलएएफ) में 72,000 सक्रिय कर्मी हैं, जिनमें वायु सेना में 1,100 और नौसेना में 1,000 शामिल हैं। ‘एलएएफ’ को हिज़बुल्ला की तुलना में कम शक्तिशाली और प्रभावशाली माना जाता है। हिज़बुल्ला के पास 20,000 सक्रिय लड़ाके और 20,000 रिज़र्व हैं। उसे ईरान से रॉकेट और ड्रोन सहित उन्नत हथियार मिलते हैं। आप कह सकते हैं, हिज़बुल्ला राजनीतिक रूप से भले सत्ता में नहीं है, लेकिन पूरा देश उसके नियंत्रण में है।

यमन में हूथी विद्रोही भी ईरान की देन हैं। लेकिन सवाल यह है, कि मध्य-पूर्व की यह लड़ाई कहां जाकर रुकेगी? जिन अतिवादी संगठनों के नेता मारे गए, वहां उनके उत्तराधिकारी बैठाये जा चुके हैं। चार दिन बाद हमास के हमले की बरसी है। गाज़ा में जो बचे हुए बंधक हैं, उनका क्या होगा? हालिया हमले में इस्राइली डिफेन्स फ़ोर्स और उनकी आंतरिक सुरक्षा सेवा ‘शिन बेत’ की ताक़तें बढ़ी हैं। नेतन्याहू की कुर्सी भी 7 अक्तूबर, 2023 के बाद से बचती रही है। लेकिन यह सब किसकी तबाही की क़ीमत पर? क्या नवम्बर में अमेरिकी चुनाव के बाद मिडल ईस्ट में शांति आएगी? जो अमेरिकी वोटबैंक है, उसे क्या मिडल ईस्ट में अशांति सत्तापक्ष के लिए सहानुभूति पैदा करती है? ये तमाम सवाल हैं। दोनों पक्ष की आम जनता मूकदर्शक होकर अपनी बर्बादी देख रही है, हमारे देश में बुलियन मार्केट में निवेश करने वाले खुश हैं, कि सोना-चांदी महंगा हो रहा है। महबूबा मुफ्ती को लग रहा है कि हसन नसरल्लाह की हत्या के विरुद्ध एक दिन का चुनाव प्रचार बंद कर देने से, पीडीपी सत्ता में आ जाएगी। सबके अपने-अपने एजेंडे हैं!

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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