शमीम शर्मा
नेताओं की आंख में हम हैं केवल वोट, और वोट की हैसियत कंबल, कुर्ता, नोट।
प्यारे वोटर भाई-बहनो! याद रखना, पांच साल कम नहीं होते। रोना तो एक दिन का दुखदायी होता है और गलत नेता का चुनाव कर लिया तो नसीब में पांच साल का रुदन पल्लू से बंध जायेगा। किसी की भी चिकनी-चुपड़ी बातों का भरोसा मत करना। सभी नेता बहती नदी समान होते हैं। जो नदी आज है वह कल नहीं होती। नदी में जो जल आज है वह तो आगे बह जाता है। नेता भी जिस रूप में आज हैं, कल नहीं मिलेंगे। आज तो कटोरा हाथ में लिये दर-दर वोट मांगते घूम रहे हैं और मक्खन-मलाई में लिपटी चिकनी बातों से हमें फुसला रहे हैं। भीतर ही भीतर हमसे नाकों चने चबवाने का संकल्प ले रहे हैं। कोई गरीबी हटाने और नौकरी दिलाने की कसमें खा रहा है तो कोई सत्तर तरह की गारंटी दे रहा है। पूरी तरह विकसित देश ही गरीबी नहीं हटा सके और न ही सबको जॉब दिलवा सके, तो यहां किसके पास जादू की छड़ी है। रही बात गारंटी की तो अच्छी-अच्छी गारंटियां धरी की धरी रह जाती हैं।
चुनावों में जीत हासिल करने के लिये कोई ऐसा हथकंडा नहीं है जिसे अपनाने से नेताओं को परहेज हो। अब नेतागण टेढ़ी अंगुली से घी निकालने की नहीं सोचते बल्कि पीपा पिघला कर सारे घी को कब्जाना चाहते हैं। सत्ता के लिये समझौते-संधियां करके एक होने का ढांेग रचते हैं पर भीतर से संतरे की फांक की तरह अलग-अलग हैं। भाईचारे का मुखौटा ओढ़ने वाले नेतागण कल शेषनाग की तरह फुंकारते नज़र आएंगे। विजय के बाद कुर्सी के लिये दहाड़ेंगे, बिकेंगे, बदलेंगे, मनपसन्द महकमे के लिये तिया-पांचा करेंगे।
प्यारे वोटर भाइयो-बहनो! मुंह की खाने की बजाय पहले ही उन नेताओं के दांत खट्टे कर देना जो मीठी गोलियों के थैले लिये चल रहे हैं।
000
एक बर की बात है अक नत्थू घणी ए उम्र का होग्या पर उसका ब्याह होण मैं नहीं आ रह्या था। गांम आल्यां के तान्ने सुण-सुण कै वो मरण की सोच्चण लाग्या। अपणे कंवारेपन के दुख मैं वो एक दिन तड़कै सिर पै मोड़ बांधकै चाल पड्या। राह मैं सुरजा फेंट ग्या। उसनैं बूज्झी- हां रै आज तड़कै मोड़ बांधकै रेल की लाइनां पै कित भाज्या जावै है? या सुण कै नत्थू बोल्या- भाई रेल तलै कट कै मरण जाऊं सूं। मन्नैं कट्या देखकै सारे न्यूं तो कहवैंगे अक कोय बटेऊ मरया पड्या है। सुरजा बोल्या- देखिये भाई, कदे कटते टैम यो मोड़ तेरे हाथ मैं आज्यै अर लोग कहवैं- यो तो कोय भाती कट ग्या दीखै।