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जल संकट का दौर, पानी बचाने का शोर

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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धर्मेंद्र जोशी

जब से गर्मी की आमद शुरू हुई है, लोगों के गले सूखने से पहले जल स्रोत हांफने लगे हैं। जितना नदियों में पानी नहीं बहा उससे ज्यादा अब पानी बचाने के तरीकों को लेकर ज्ञान की गंगा बहाई जा रही है। सैकड़ों गेलन पानी की बर्बादी करने वाले पानी बचाओ अभियान के अगवा बन बैठे हैं। नदियों और कुदरती नालों की जमीन पर अतिक्रमण कर मोटी रकम बनाने वाले बरसों से कचरा उफनते कुएं-बावड़ी की सुध लेने को छटपटा रहे हैं, ताकि स्वार्थ सिद्धि की कोई नई इबारत लिख सके।

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अतीत में गर्मी में राहगीरों को पानी पिलाने को पुण्य का कार्य समझा जाता था। लोग अपने पूर्वजों की याद में प्याऊ लगाकर लोगों के गले को तर करने में सुकून महसूस करते थे। आज पानी बेचने के लिए बड़ी-बड़ी वाटर कम्पनियां अस्तित्व में आ चुकी हैं, जो छोटी और बड़ी बोतल में पानी की सप्लाई कर रही है, जो पैसा लेकर बीमारियां परोसने का काम कर रही हैं।

जल संकट के दौर में नगर निगम के वे अधिकारी जो अभी तक गहरी नींद में थे, जल संकट के गहराते ही जाग चुके हैं। टैंकर के भारी-भरकम टेंडर का सुनते ही उनकी आंखों की चमक और चेहरे का पानी बढ़ गया है, जिन्होंने नलों की पाइप लाइन की कभी सुध नहीं ली, जिसके कारण आम जनता मटमैला पानी पीने को मजबूर होती रही। वे आम जन को खाली कनस्तर लिए लम्बी कतार में खड़े देख मन ही मन हर्षित हो रहे हैं। उनको इस बात का इल्म है कि जल मिशन के कमीशन से वे फलेंगे फुलेंगे। भले ही बाल्टी उठा उठाकर लोगों का दम फूल जाए।

उधर, मोहल्ले में आज सुबह-सुबह पानी बचाने को लेकर दो पड़ोसियों में कहासुनी हो गई। अपनी कार को प्रतिदिन नहला कर पूरे मोहल्ले की सड़क को कीचड़ युक्त करने वाले सज्जन ने जब जल संकट का हवाला देते हुए पड़ोसी को नसीहत देने का प्रयास किया, तो वे अपने नाम के अनुरूप भड़क गए।

वैसे भी आजकल सोशल मीडिया के इस दौर में ज्ञान देने वालों की संख्या में यकायक इजाफा हुआ है। वातानुकूलित कमरे में बैठकर पानी बचाने की योजना वे बना रहे हैं, जिनके बगीचों के लान शहर के सैकड़ों लोगों के हिस्से का पानी पी जाते हों। वहीं दूसरी ओर महिलाएं और छोटी-छोटी बच्चियां झुलसती गर्मी में दो-दो, तीन-तीन किलोमीटर से पानी लाकर प्यास बुझाने को अभिशप्त है, नारों के शोर से जल संकट से निपटने की क़वायद जारी है।

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