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आंतरिक ध्वनि चिकित्सा है गुनगुनाना

अंतर्मन
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जब बच्चा छोटा होता है तो मां बच्चे को लोरी गाकर सुनाती है। लोरी गाते-गाते वह कई बार गुनगुनाती भी है। यह गुनगुनाना न केवल मां-बच्चे को मानसिक शांति प्रदान करता है, अपितु उनके आपसी बंधन को भी मजबूत करता है।

क्या आपने काम करते समय कोई गीत या ध्वनि गुनगुनाई है। अवश्य गुनगुनाई होगी। आपको यह पता होना चाहिए कि गुनगुनाना मात्र छोटी-सी बात नहीं है, अपितु इस गुनगुनाहट में बहुत सारे जीवन के सकारात्मक सार छिपे हुए हैं। यह गुनगुनाहट ‘आंतरिक ध्वनि चिकित्सा’ है जो व्यक्ति के जीवन के टूटे-फूटे तारों की मरम्मत करती है और उनके अंदर एक नई ऊर्जा एवं ध्वनि का संचार करती है। नादब्रह्म, ध्यान में गुंजार ऊर्जा का असीम स्रोत है। इस संदर्भ में ओशो कहते हैं कि, ‘हां, यह ऊर्जा का एक बड़ा स्रोत है। हम अपने जीवन के स्रोतों को नहीं जानते और यह नहीं जानते कि उन स्रोतों से कैसे जुड़ें?’ शोध बताते हैं कि ‘भंवरे की तरह गुनगुनाना यानी कि हमिंग करने से न केवल तनाव कम होता है, अपितु इससे मूड भी सकारात्मक होता है। शरीर के अंदर से विषैले तत्व बाहर निकलते हैं और पेट संबंधी समस्याएं भी दूर होती हैं। स्वीडिश वैज्ञानिकों ने भी अपने एक शोध मंे यह पाया कि ‘गुनगुनाने से मस्तिष्क में ऑक्सीजन की मात्रा में सुधार होता है।’

जब हमारा तन किसी ध्वनि को मन से गुनगुनाता है तो तन-मन का कंपन एक तालमेल में आ जाता है और उनका संघर्ष खत्म हो जाता है। इस संघर्ष के खत्म होने से ऊर्जा का ह्रास होने से बच जाता है। मन को शांति का अहसास होता है। गुनगुनाना हमारे मस्तिष्क की वेगस तंत्रिका को उत्तेजित करता है, जो पैरासिम्पेथेटिक सिस्टम से जुड़ी हुई होती है। इससे तनाव कम होता है और मानसिक स्पष्टता बढ़ जाती है। इससे सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे लाभकारी न्यूरो हार्मोंस का रिसाव बढ़ता है। ये दोनों ही हॉर्मोन खुशी उत्पन्न करने वाले माने जाते हैं। इनकी उत्पत्ति से व्यक्ति को खुशी एवं सुख का अनुभव होता है। गुनगुनाना संगीत का ही एक भाग है। भारतीय संगीत और इसके रागों में रोगों को दूर करने की अद्भुत शक्ति होती है।

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प्राचीन काल में राजा-महाराजा जब युद्ध से लौट कर आते थे तो वे तन-मन से शिथिल और क्लान्त रहते थे। ऐसे में वे संगीतकारों को राजदरबार में बुलाकर उनसे राग सुना करते थे। कई बार तो वे गायक के साथ-साथ गुनगुनाते भी थे। इस गुनगुनाहट से उनकी थकान, चिंता सब गायब हो जाती थी तो और वे फिर से तरोताजा हो जाते थे। अपने अंदर ऊर्जा एवं स्फूर्ति का संचार कर वे राजकाज संभालते थे और गुनगुनाते हुए प्रजा के दुख दूर करते थे। अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक तानसेन को संगीत में उच्च कोटि की सिद्धि प्राप्त थी। यह भी किंवदंती सुनने को मिलती है कि जब वे राग दीपक गाते थे तो उसकी गर्मी से दीपक स्वयं जल उठते थे। इसी तरह मेघ मल्हार गाने से झमाझम बारिश होने लगती थी। इससे ही यह स्पष्ट हो जाता है कि संगीत और गुनगुनाहट में असीम शक्ति है। इस शक्ति से मनुष्य तो क्या पृथ्वी और प्रकृति तक झूमने लगते हैं।

मनोचिकित्सक मानते हैं कि रागों में व्यक्ति के तन-मन के रोगों को दूर की जादुई शक्ति छिपी है। संगीत और गुनगुनाहट को चिकित्सा प्रणाली में शामिल कर रोगियों को ठीक किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि तोड़ी, भूपाली, अहीर भैरव राग सर्दी-जुकाम, सिरदर्द और उच्च रक्तचाप से राहत देते हैं। शिवरंजनी राग सुनने से याददाश्त तेज होती है और स्मृति लोप की समस्या दूर होती है। राग भैरवी सर्दी, कफ और दांत दर्द से राहत देता है। चंद्रकौंस राग हृदय रोग और मधुमेह के लिए उपचारदायक है। राग दरबारी तनाव दूर करता है। राग बिहाग और बहार गहरी मधुर नींद के लिए लाभदायक है। जब बच्चा छोटा होता है तो मां बच्चे को लोरी गाकर सुनाती है। लोरी गाते-गाते वह कई बार गुनगुनाती भी है। यह गुनगुनाना न केवल मां-बच्चे को मानसिक शांति प्रदान करता है, अपितु उनके आपसी बंधन को भी मजबूत करता है।

गायकों का मानना था कि गुनगुनाहट न केवल उनके संगीत को प्रबल करती है, अपितु उनके मानसिक तनाव को भी दूर करती है। सुप्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर ने एक साक्षात्कार में कहा था कि, ‘मैं सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक मन ही मन कोई न कोई रचना गुनगुनाती रहती हूं। कभी किसी धुन को ठीक कर रही होती हूं, तो कभी किसी भाव को भीतर महसूस कर रही होती हूं। यह गुनगुनाना ही है जो मेरी आत्मा को स्थिर रखता है।’

गुनगुनाने से एकाग्रता और रचनात्मकता का विकास होता है। इसलिए कई बार वैज्ञानिक, डॉक्टर, विद्यार्थी पढ़ते हुए गुनगुनाते हैं। गुनगुनाने से व्यक्ति स्वयं के साथ जुड़ जाता है क्योंकि उस समय उसका पूरा ध्यान गुनगुनाने की ध्वनि पर होता है। योग में भ्रामरी प्राणायम का विशेष महत्व है क्योंकि इसमें ध्वनि और हम्मिंग यानी कि गुनगुनाने का विशेष महत्व है। यह ध्वनि और कंपन शरीर व मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालते हैं। ध्वनि कंपन से पीनियल ग्रंथि और हाइपोथैलेमस को शांति मिलती है। गुनगुनाने से व्यक्ति के स्वर तंत्रों को भी मजबूती मिलती है। इस प्रकार गुनगुनाना और राग सुनना अत्यंत लाभदायक औषधियां हैं।

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