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कैसा फेयर, बुक के साथ अनफेयर

व्यंग्य/उलटबांसी
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आलोक पुराणिक

पुस्तक मेला चल रहा है दिल्ली में। पुस्तक मेले पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है—एक थी बुक और एक था फेयर। बुक प्रकाशक से निकलती थी और फेयर में चली जाती थी। फेयर से निकलकर खरीदार के पास चली जाती थी। खरीदार के पास पढ़ने का वक्त ही नहीं होता था। बुक अलमारी में पड़ी पड़ी धूल खाती रहती थी। ऐसी दो पुस्तकों का आपसी संवाद इस प्रकार है।

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और बता बुक नंबर वन तू कब आयी थी।

मैं दो साल पहले आयी थी। तू ज्यादा भाव न खा कि ये बंदा तुझे आज ले आया है बुक फेयर से। पांच साल पहले वाली भी पड़ी है, देखता तक नहीं ये तो लाकर पटक देता था।

अच्छा, तो फिर ये देखता क्या है।

दिनभर तो घुसा रहता है मोबाइल में। घटिया जोक और घटिया वीडियो देखता रहता है।

जोक होना चाहिए।

माल पकड़ या शाल पकड़

प्रकाशक : कुछ कालजयी लिखोजी।

लेखक : मैं तो महान लिखूंगा।

प्रकाशक : कालजयी लेखन यह होता है प्यारे, दही जमाने की उचित विधि। सवाल अकबर के वक्त से लेकर अब तक प्रासंगिक बना हुआ है। आप यह भी लिखें कि कब्ज भगाने की घरेलू विधियां क्या हैं। सिकंदर के वक्त से लेकर अब तक यह सवाल प्रासंगिक बना हुआ है। ऐसा कालजयी लेखन कीजिये बहुत माल बनेगा।

लेखक : आप कैसी बात कर रहे हैं।

प्रकाशक : ऐसा कालजयी लेखन आप नहीं करेंगे, तो सिर्फ शालजयी लेखन कीजिये। वहां सामने शाल बंट रहे हैं, लेखक लाइन लगाकर ले रहे हैं। आप भी ले आइये, हम इन शालों की पुनर्खरीद कर रहे हैं। निराश न हों, आपका मन अगर हमें शाल बेचने का न हो, तो कोई बात नहीं है। घर पर ले जाइये। घरवाले खुश होंगे कि कम से कम शाल तो लाता है लेखक।

दस साल बाद भी

लेखक : प्रकाशक भाई आपकी कारों का साइज तो बढ़ता जाता है। पर मेरे पाठक मुझे कहीं दिखाई ही नहीं देते।

प्रकाशक : भाईजान मैं तो किताबें बेच देता हूं, रकम मिल जाती है। पाठक तलाशना मेरा काम नहीं है। एक ही लाइब्रेरी में एक ही किताब की हजार कापी चला देता हूं। कई किताबें इसलिए बिकती हैं कि लाइब्रेरियन 33 परसेंट कमीशन प्रेमी है। इतना कमीशन देने के लिए हो तो मैं झोलूमल का खंड काव्य (7 खंड) रवींद्र नाथ टैगोर के काव्य से ज्यादा बेच दूं।

लेखक : तो मतलब पाठक पढ़ते ही नहीं हैं क्या।

प्रकाशक : भाईजी असली आफत तो तब हो जाती है, जब लोग पढ़ना शुरू कर देते हैं। पढ़ना शुरू करते ही भावनाएं आहत हो जाती हैं। इसलिए किताब उन्हीं विषयों पर श्रेष्ठ होती है, जिन पर विवाद न हो, जैसे कब्ज को दूर कैसे भगायें।

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