मेघालय में जड़ पकड़ती विकास की उम्मीदें
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का दौरा मेघालय के लिए कई पहलुओं से महत्वपूर्ण है। बेशक यह राज्य सजीव पुलों जैसी प्राकृतिक-सांस्कृतिक देन से समृद्ध है। वहीं विकास के कई मानकों पर भी अच्छा प्रदर्शन किया है, मसलन स्वास्थ्य के क्षेत्र में। अब मुख्यमंत्री कोनराड संगमा सरकार को ऐसी कारगुजारी शिक्षा क्षेत्र में भी दोहरानी चाहिए।
मेघालय सरकार ने इस महीने की शुरुआत में वहां पहुंची वीआईपी हस्तियों को अपने बेहतरीन पहलू दर्शानेे में कोई कसर नहीं रखी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपनी पहली चार दिवसीय राज्य यात्रा पर आईं। इस छोटे राज्य के लिए प्रधानमंत्री के किसी वरिष्ठ सहयोगी का दौरा हर लिहाज से अहम था। वित्त मंत्री के दौरे का इंतजाम एनडीए के सहयोगी और सूबे के मिलनसार मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के नेतृत्व में किया। सोहरा (पुराना नाम चेरापूंजी) दौरे में उन्होंने मशहूर जीवंत जड़ों का पुल देख उसे एक ‘प्रतिमान’ बताया। कभी इस जगह के नाम दुनिया में सर्वाधिक बारिश का रिकॉर्ड था, लेकिन हाल ही में राजा रघुवंशी की सनसनीखेज हत्या के कारण ज़्यादा चर्चित रही।
इस कांड की अतिरंजित मीडिया कवरेज से जो लोग प्रभावित हैं, उन्हें मालूम हो कि मेघालय के जड़-निर्मित पुल मानव इंजीनियरिंग का एक चमत्कार हैं, जिनका वजूद ऐसी घटनाओं से कहीं लंबे समय रहेगा। ये आधुनिक समय में प्राचीन परंपराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं; यूनेस्को की सांस्कृतिक लैंडस्केप सूची में मेघालय के 72 ऐसे पुलों का उल्लेख है। स्थानीय ग्रामीण रबर के पेड़ों की मिट्टी से ऊपर निकल आई जड़ों का संयोजन कर ये पुल बुनते हैं और इसी से सीढ़ियां, चबूतरे व मीनारें बनाते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त मंत्री ने इन्हें देख कहा : जड़ों से बने पुल ‘पारिस्थितिक लचीलेपन में वैश्विक मानक’ पेश करते हैं।
यह यात्रा आरामदेह नहीं थी - वित्त मंत्री ने महज चार दिनों में बहुत कुछ किया। शिलांग में सुंदर वार्ड्स झील के किनारे एक युवा उद्यमी से संवाद के अलावा राज्य के पहले बड़े मॉल का उद्घाटन, देश में पैदा होने वाले सबसे मीठे अनानासों की किस्म की पहली निर्यात खेप दुबई के लिए रवाना की, सोहरा के रामकृष्ण मिशन (क्षेत्र में आधुनिक शिक्षा का अग्रदूत) का दौरा, व्यापारी समुदाय, किसानों और महिला स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों से वार्ताएं और इस संगीत और खेल-प्रेमी राज्य में सम्मेलन केंद्र, संगीत स्थल और फुटबॉल स्टेडियम की आधारशिला रखी।
सीतारमण प्रभावित दिखीं और उन्होंने सोशल मीडिया पर तस्वीरें -वीडियो पोस्ट किए। इससे राज्य सरकार को खुश होना चाहिए, जिसने चतुराई और रणनीतिक रूप से, धन या अन्य मामलों का मुद्दा उनके सामने न उठाने का फैसला किया था। इससेे उनसे मिलने वाले अन्य लोगों को इन मुद्दों पर बात करने और सवाल पूछने का अवसर मिला।
वित्त मंत्री ने मेघालय के स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए उल्लेखनीय सुधार को रेखांकित किया, जो किसी वक्त शोचनीय स्थिति में था। राज्य की प्रसव दौरान जच्चा मृत्यु दर अनुपात 2020-21 में देश में सबसे अधिक था, जिनकी गिनती प्रति लाख जिंदा बचे शिशुओं पर 243 थी। बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाने से, जिसमें स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच बेहतर बनाना, उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं के लिए ट्रांसिट होम, परिवहन सुविधाएं और एक नए मोबाइल ऐप शामिल थे, इन्होंने विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को गर्भवती महिलाओं की निगरानी और रिपोर्टिंग में सक्षम बनाया, परिणामस्वरूप जच्चा मृत्यु दर में नाटकीय गिरावट आई, फिलहाल यह करीब 107 है।
यह उपलब्धि किसी भी लिहाज से असाधारण है और इस साल बर्लिन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय नवोन्मेष एवं रचनात्मक प्रबंधन पुरस्कार सम्मेलन में मेघालय के अफसरों के काम की खूब सराहना हुई। इसके अलावा, शिशु मृत्यु दर में भी उल्लेखनीय गिरावट आई, हालांकि अभी शिशु बौनापन और एनीमिया जैसी बाधाएं हैं।
वित्त मंत्री को अवश्य ही सूबे के समक्ष चुनौतियों का भान होगा, जिसे मुख्यमंत्री ने स्वयं भी सहजता से स्वीकार किया। अकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव द्वारा प्रकाशित मेघालय में मातृ एवं शिशु सेहत रिपाेर्ट के मुख्य अध्याय में कहा गया- ऐसे कई मुद्दे हैं जो बदलाव में बाधा बन रहे हैं और उन पर निरंतर ध्यान देने की जरूरत है। इसमें बताया गया कि ‘सामाजिक वर्जनाएं, किशोरावस्था में गर्भधारण, गरीबी, दूरी आदि दीर्घकालिक बाधाएं हैं। राज्य सरकार को इनके हल पर लंबे समय ध्यान केंद्रित रखना होगा’।
इबालारिशिशा साईम ने एक स्थानीय समाचार चैनल से बात करते हुए एक अन्य चुनौती पर प्रकाश डाला : ‘मेघालय में एचआईवी मामले बीते दो दशकों में 220 प्रतिशत से अधिक बढ़ गए हैं, और अब राष्ट्रीय एचआईवी प्रसार सूची में राज्य छठे स्थान पर है। साल 2025 में फिलहाल, सूबे में 10,000 से अधिक लोग एचआईवी ग्रस्त हैं। फिर भी अधिकांश समाज इसे दूर का खतरा या वर्जित विषय मानता है।’ चूंकि वित्त मंत्री की आवाजाही राज्य की सड़कों और राजमार्गों पर वीआईपी काफिले में रूप में रही, जाहिर है उन्हें उस ट्रैफ़िक जाम का सामना नहीं करना पड़ा, जो फैलते शहरों की बड़ी समस्या है, चाहे यह दिल्ली हो या मुंबई, बेंगलुरु, गुवाहाटी या शिलांग। मैदानी शहरों के विपरीत, शिलांग की ढलानों वाली पहाड़ियों पर संकरी और ढलुवां सड़कों का चौड़ीकरण आसान नहीं है।
सड़कों-गलियों में लगातार बढ़ते कंक्रीट भवनों की वजह से शहर अधिक भीड़भाड़ भरे बन रहे हैं और हर साल हजारों नए वाहन जुड़ रहे हैं। पार्किंग अन्य बड़ी समस्या है और जाम लंबे एवं कष्टदायी, हालांकि बाइक-टैक्सी और पैदल चलना अच्छे विकल्प हैं। शिलांग टाइम्स ने आधिकारिक आंकड़ों के हवाले से बताया कि मेघालय में लगभग छह लाख पंजीकृत वाहन हैं; पूर्वी खासी हिल्स जिला, जिसका प्रमुख हिस्सा शिलांग है, में लगभग आधी वाहन संख्या है। राजधानी की आबादी लगभग पांच लाख है।
शिलांग में भीड़भाड़ कम करने की योजनाओं में सरकारी कार्यालयों और विधानसभा को शहर के नए हिस्से में स्थानांतरित करना शामिल है, जबकि एक अन्य भाग में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय जैसे प्रमुख शैक्षणिक संस्थान, सांस्कृतिक केंद्र और खेल के मैदान भी होंगे। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा; ‘जब नए नगर बन जाएंगे तो लोगों को अपने मौजूदा घर छोड़ उन जगहों पर बसना होगा, क्योंकि रोजाना लंबी यात्रा व्यावहारिक नहीं होगी।’
स्वास्थ्य क्षेत्र की भांति जिस एक प्रमुख क्षेत्र में राज्य सरकार को सक्रियता से काम करने की बहुत जरूरत है, वह है शिक्षा, विशेषकर स्कूली स्तर पर। क्योंकि वार्षिक शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट (2024) और केंद्र सरकार के प्रदर्शन मूल्यांकन संकेतक (पीजीआई), दोनों ने, इस क्षेत्र में मेघालय के प्रदर्शन की आलोचना की है। पीजीआई एक कड़ा मूल्यांकन है जो लगभग 73 श्रेणियों पर गौर करने के बाद किया जाता है, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या छात्रों को स्कूल पहुंचने के लिए सड़कें और परिवहन सुविधा उपलब्ध है; यह शिक्षण और शिक्षा प्राप्ति की गुणवत्ता के अलावा शौचालय व पेयजल सहित स्कूल भवन के बुनियादी ढांचे की भी समीक्षा करता है। यह जानकर निराशा हुई कि सिक्किम को छोड़कर पूर्वोत्तर के सभी राज्य निचली श्रेणियों में हैं। पीजीआई रिपोर्ट के अनुसार, मेघालय सबसे निचले पायदान पर है। मुख्यमंत्री संगमा और उनकी टीम को अपने इरादे और जोश पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र की बढ़िया कारगुजारी को शिक्षा क्षेत्र में भी दोहराना चाहिए। दोनों एक-दूजे से जुड़े हैं। यकीनन, सीतारमण और शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान इसमें भरपूर सहयोग देंगे।
नवोन्मेष जैसे कि असम के पूर्व आईएएस अधिकारी धीर झिंगरन और उनकी लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन, जो कई राज्यों में सफलतापूर्वक काम कर चुकी है, इस जैसे अन्य नवाचारों पर विचार किया जा सकता है। हालांकि, इन पहलकदमियों को मूर्त रूप देने के लिए, मेघालय को ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़िया स्कूल भवन, प्रशिक्षित शिक्षक, उचित कक्षाएं और बच्चों को आकर्षित कर उन्हें पढ़ाई में बनाए रखने के लिए मध्याह्न भोजन जैसी बुनियादी सुविधाएं बनाने की जरूरत होगी। आखिकार, ये ही तो अपने समाज की जीवंत जड़ें हैं।
लेखक स्वतंत्र स्तंभकार हैं।