राजकुमार सिंह
भारत के लिए ओलंपिक खेलों की इससे बेहतर न तो शुरुआत हो सकती थी और न ही समापन। जिस देश का ओलंपिक खेलों का सफर उपलब्धियों से परे आशाओं के निराशा में बदलने से भरा रहा हो, उसने कोरोना के आतंक के साये में एक साल विलंब से हुए टोक्यो ओलंपिक खेलों की शुरुआत पहले ही दिन रजत पदक जीत कर की तो आखिरी दिन समापन उस स्वर्ण पदक के साथ किया, जिसका इंतजार 121 साल से था। पहले दिन की नायिका अगर मणिपुर की मीराबाई चानू रहीं तो आखिरी दिन के अविस्मरणीय नायक हरियाणा के नीरज चोपड़ा रहे। ऐसा नहीं कि भारत ने ओलंपिक में पहली बार स्वर्ण जीता है। पूरे आठ स्वर्ण पदक तो हॉकी में जीते हैं। व्यक्तिगत स्पर्धा में भी पहला स्वर्ण पदक चंडीगढ़ के निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने 2008 में बीजिंग ओलंपिक में जीता था, लेकिन एथलेटिक्स में भारत की झोली स्वर्ण तो बहुत दूर, पदक से ही खाली रही। पिछले दिनों दिवंगत हुए उड़न सिख मिल्खा सिंह से लेकर उड़नपरी पीटी ऊषा तक कई जांबाज भारतीयों ने ओलंपिक की एथलेटिक्स स्पर्धाओं में आस तो जगायी, पर अंतिम क्षणों में पदक जैसे उनके हाथ से फिसल गया। मिल्खा 1960 के रोम ओलंपिक में सेकंड के दसवें हिस्से से पदक चूक गये थे तो 1984 के लॉस एजेंल्स ओलंपिक में ऊषा सेकंड के सौवें हिस्से से।
मिल्खा का सपना था कि कोई भारतीय ट्रैक एंड फील्ड में ओलंपिक पदक जीते, जो नीरज ने उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन कर साकार किया है। नीरज ने जिस शान से जेवलिन थ्रो (भाला फेंक) के फाइनल में प्रवेश किया था, उसी शान से स्वर्ण पदक भी जीता। शताब्दी से भी लंबे इंतजार का फल वाकई ऐसा मीठा साबित हुआ है, जिसकी मिठास भारतवासी शायद ही कभी भुला पायें। पानीपत निवासी 23 वर्षीय सैन्य अधिकारी नीरज ने अपने परिवार ही नहीं, प्रदेश और देश का दुनिया में जो गौरव बढ़ाया है, वह युवाओं को हमेशा बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित करता रहेगा। आखिरी दिन एक और हरियाणवी सपूत बजरंग पूनिया ने भी कुश्ती में कांस्य पदक जीत कर ओलंपिक खेलों में भारत के प्रदर्शन को यादगार बनाने में योगदान दिया। टोक्यो में कुल सात पदक जीत कर भारत ने 2012 के लंदन ओलंपिक खेलों के अपने प्रदर्शन को और बेहतर किया है, जहां उसकी झोली में छह पदक आये थे। खेलों के इस महाकुंभ में हर पदक का अपना विशिष्ट महत्व है, लेकिन पेशेवर खेल संस्कृति के बिना बेहद सीमित संसाधनों के सहारे भारतीय खिलाड़ियों ने टोक्यो में जो कर दिखाया है, वह किसी करिश्मे से कम नहीं। हमारे खिलाड़ियों को भी अगर प्रतिस्पर्धियों जैसी सुविधाएं मिलें तो ओलंपिक पदक तालिका में भारत का स्थान भी लगातार सम्मानजनक होता जायेगा। यह संकल्प सरकार और समाज को लेना होगा।