अमिताभ स.
‘फिर छिड़ी रात, बात फूलों की…’ ग़ज़ल में मशहूर शायर मख़दूम मुहिउद्दीन आगे फरमाते हैं ‘…फूल खिलते रहेंगे दुनिया में, रोज निकलेगी बात फूलों की…।’ वाकई आजकल बाग-बाग बूटा-बूटा फूल खिले हैं, हर ओर फूलों की बहार है। वसंत जो है, फूलों की घाटी महक रही है।
फूल चीज़ ही ऐसी है। जाने-माने कवि गोपालदास नीरज ने फूलों की तारीफ में यूं लिखा है ‘जिसकी खुशबू से महक जाए पड़ोसी का घर, फूल इस किस्म का हर सिप्त खिलाया जाए।’ किसी ने फूल से पूछा कि जब तुम्हें कोई तोड़ता है, तो दर्द नहीं होता क्या? फूल ने कहा, ‘मैं अपना दर्द भूल जाता हूं, जब कोई मेरी वजह से ही खुश होता है।’ वाकई कुछ पाने की आशा के बगैर देना और त्याग भावना ही हर फूल के जीवन का संदेश है। भंवरे और तितलियां फूलों के पराग का रस चूसती हैं। मधुमक्खियां फूल के पराग से मिठास बटोर-बटोर कर मधु पैदा करती हैं।
फूल सुख, चैन और अमन का सूचक है। तनाव, ईर्ष्या, द्वेष और वैर को कोसों दूर रखता है। और वह अपनी सुगंध, मधु, मुस्कान और कोमलता बांट-बांट कर ही अपार स्नेह, प्यार और लगाव पाता है। यही जीवन की सार्थकता का मूलमंत्र है। हर फूल दूसरों की दुष्टता और कुरूपता झेलने के बावजूद प्रेम और दया से सदैव खूबसूरत बना रहता है। जैसे चमेली की बेल उन हाथों पर भी अपने हल्के-फुल्के फूल बरसाती है, जो उसके तने पर कुल्हाड़ी चलाते हैं।
फूल हैं ही इतने हसीन कि इनके अंग-संग अनेक प्रेरक प्रसंग जुड़े हैं। एक दफा चमेली के फूल का सहारा लेकर गुरु नानक देव जी ने एक ईर्ष्यालु को अपने विनम्र स्वभाव का परिचय दिया था। हुआ यूं कि गुरु नानक देव मुल्तान पहुंचे, तो वहां पहले से कई धर्म प्रचारक थे। एक संत ने उन्हें दूध से लबालब कटोरा भेजा। गुरु नानक देव ने बगिया से चमेली का एक फूल तोड़ा और दूध पर हल्के से टिका दिया। साथ ही, कटोरा संत को लौटा दिया। दूध का भरा कटोरा वापस आया देख संत के शिष्य तिलमिला गए। शिष्यों को लगा कि गुरु नानक देव ने उनके गुरु का घोर अपमान किया है। संत ने उन्हें शान्त किया, समझाया-वत्स, चिंतित क्यों होते हैं? बात महज इतनी है कि मैंने गुरु नानक देव से प्रश्न किया था। प्रश्न था कि मुल्तान में पहले से ही दूध जैसे नेक-पवित्र चरित्र के संत विद्यमान हैं, फिर उन्हें यहां पधारने की क्या आवश्यकता थी? उन्होंने उत्तर भेजा कि जिस प्रकार कटोरे में लबालब भरे दूध का चमेली के फूल ने कोई हर्ज नहीं किया, बल्कि उसकी शोभा ही बढ़ाई है, वैसे ही चमेली के फूल की भांति मैं भी यहां रहूंगा।’
अकेले चमेली ही नहीं, गुलाब, कमल, चंपा, मोंगरा, मोतिया, सूरजमुखी, गेंदा ,गुड़हल, सेमल, कपास आदि तमाम देशी-विदेशी फूल प्रेम, सादगी, ख़ूबसूरती, सद्भावना, सच्चाई, अमन, मित्रता और खुशी का अहसास जगाते हैं। और फिर, असली अपरिग्रही कमल के फूल की भांति होता है। वह जीवनयापन के लिए संसार रूपी तालाब से पदार्थ रूपी जल का सेवन तो करता है, लेकिन कमल की भांति तालाब से निर्लिप्त रहता है। उससे किसी किस्म के मोह के बंधन में नहीं बंधता। इससे त्याग की भावना प्रबल होती है।
सयाने बताते हैं कि दिन-प्रतिदिन आध्यात्मिक पुष्प की तलाश मत कीजिए। बीज बोइए और प्रार्थना रूपी उचित प्रयत्न के जल से सिंचन कीजिए। आसपास उगने वाली शंका, अविश्वास और उदासीनता की घास-पात को उखाड़ते-फेंकते रहिए। एक सुबह आत्म साक्षात्कार के आध्यात्मिक पुष्प को अकस्मात् सामने देखेंगे।
एक दफा फूल और कांटे में बहस छिड़ गई। कांटे ने फूल से पूछा-भई, तुम्हें ऊपर वाले ने बेकार ही बनाया है। इस कदर कोमल हो कि शीत और ताप के मामूली झोंके के भी नहीं सह पाते। केवल एक-दो दिन खिल कर मुरझाने के तुम्हारी क्षणभंगुरता पर तरस आता है। मुझे देखो, मैं कितने दिनों से जी रहा हूं। तुम्हारे कितने ही पूर्वजों को इसी टहनी पर खिलते-मुरझाते देखा है। लेकिन मेरा अब तक कुछ नहीं बिगड़ा। जानते हो क्यों? क्योंकि मेरे पास जो कोई आता है, उसे चुभ जाता हूं। लोग मुझे छूने की हिम्मत नहीं बटोर पाते। फूल सहजता से बोला, ‘बंधु, तुम्हारा कहना सही है। मगर मुझे मरने-जीने का ख्याल ही नहीं आता। उत्सर्ग ही मेरे जीवन का ध्येय बन गया है। मैं चाहता हूं कि मेरा जीवन भले पल-दो पल का हो,लेकिन ऐसा हो कि देखने वाला प्यार और प्रसन्नता से गद्गद हो जाए।’ सुन कर, कांटे का घमंड चकनाचूर हो गया। और उसी रोज से, उसने फूलों की रक्षा करना ही अपना कर्तव्य मान लिया। जाहिर होता है कि जीवन तभी सफल होगा, जब फूलों की भांति दूसरों के जीवन में सुगंध फैलाएं। जीवन का सार है कि फूलों की भांति जीवन बेशक क्षण भंगुर हो, लेकिन ऐसा हो कि देखने वाला पल भर में प्यार और खुशी से सराबोर हो जाए।