राजेन्द्र चौधरी
केन्द्र सरकार द्वारा हाल ही में पारित कृषि कानूनों का बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है। ये विरोध मूलत: उचित है पर अधूरा है। इस अधूरे विरोध का एक स्पष्ट उदाहरण 20 अक्तूबर को पंजाब विधानसभा द्वारा नये केन्द्रीय कृषि कानूनों में संशोधन हेतु पारित बिल हैं। देर-सवेर अन्य कांग्रेस शासित राज्य भी संभवत: ऐसे कानून पारित करें। इसलिए पंजाब द्वारा पारित कानूनों की समीक्षा ज़रूरी है।
इनका मुख्य प्रावधान है-न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर खरीद को गैरकानूनी घोषित करना। बड़े पैमाने पर किसान संगठनों की भी यही मांग थी पर इन कानूनों में यह आश्वासन नहीं है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद सुनिश्चित करेगी। अगर ये पंजाब द्वारा पारित कानून अपने वर्तमान रूप में राष्ट्रपति की अनुमति के बाद, जिस पर संशय है, कड़ाई से लागू हो भी जाते हैं तो इससे यह सुनिश्चित नहीं होगा कि किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिले। बल्कि इसका प्रभाव यह होगा, अगर कानून का कड़ाई से पालन होता है तो काफी सारे किसानों की फसल बिकेगी ही नहीं। अब व्यापारी इस बात के लिए तो बाध्य होगा कि अगर वह किसान की उपज खरीदे तो न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर न खरीदे, पर वह खरीदने के लिए बाध्य नहीं होगा और न ही सरकार खरीदने को बाध्य है।
कुल मिलाकर इसका वही हश्र होने वाला है जो मान्यताप्राप्त निजी स्कूलों और कालेजों में होता है। कर्मचारी हस्ताक्षर तो कानूनी रूप से देय वेतन पर करता है, बल्कि उसके बैंक खाते में भी यही वेतन आता है पर वास्तव में उससे वेतन मिलता बहुत कम है । औपचारिक पड़ताल करने पर वह यह कहने पर भी विवश है कि उसे पूरा देय वेतन मिलता है। अगर सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी नहीं करती तो अब किसान को भी यही करना पड़ेगा; कम दाम लेकर कहना पड़ेगा कि पूरा दाम मिला है।
यह कोई चूक नहीं है। पंजाब सरकार द्वारा जारी प्रेस नोट के अनुसार विधानसभा में बहस के दौरान विपक्ष द्वारा सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद का आश्वासन देने की मांग पर न केवल पंजाब सरकार ने इसको ख़ारिज कर दिया अपितु इसको अव्यावहारिक भी बताया। जब सरकार ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी के आश्वासन को अव्यावहारिक मानती है तो फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीदी पर सज़ा के प्रावधान का क्या अर्थ रह जाता है? और जब ‘किसानों की हितैषी’ सरकारें यह सुनिश्चित करने को तैयार नहीं हैं कि किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिले तो फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करने का क्या अर्थ है?
यह प्रश्न पंजाब द्वारा पारित किये गए कृषि सम्बन्धी कानूनों के एक अन्य प्रावधान के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण हो जाता है। पंजाब द्वारा पारित कानून के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर खरीदी पर सज़ा का प्रावधान केवल गेहूं एवं धान की खरीद पर लागू होगा, न कि सब फसलों पर। इस प्रावधान से दो बातें साबित हो जाती हैं। एक तो मोदी सरकार की तरह पंजाब सरकार का किसानों के हितों की रक्षा का दावा भी खोखला है। गन्ने के अलावा 22 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा बरसों से की जा रही है, तो केवल गेहूं एवं धान की न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीदी पर सज़ा क्यों, बाकी पर क्यों नहीं? इसका स्पष्ट अर्थ है कि बाकी फ़सल बोने वाले किसानों की सरकार को कोई चिंता नहीं है। इसके अलावा यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि केंद्र से लेकर राज्य सरकारें, आज नहीं, दशकों से हरियाणा-पंजाब में फसल विविधीकरण की ज़रूरत को रेखांकित कर रही हैं। जब सरकार स्वयं न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलवाने के अपने औपचारिक वायदों को भी केवल गेहूं-धान तक सीमित कर रही है तो किसान से कैसे उम्मीद करें कि वह गेहूं-धान को छोड़कर दूसरी फसलों को उगाये?
पंजाब सरकार ने केन्द्रीय अनुबंध खेती कानून में संशोधन करके न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर खरीदी को गैरकानूनी घोषित किया है। अधिकांश किसान संगठनों की भी यही मांग थी। इस गहमागहमी में यह बात नज़रअंदाज़ कर दी गई है कि अनुबंध खेती कानून में न केवल बिक्री के सौदे का प्रावधान है अपितु ‘सभी किस्म के कृषि कार्यों’ को शामिल किया गया है। इस तरह से इस कानून ने परोक्ष रूप में कम्पनियों द्वारा किसान से ज़मीन लेकर खुद खेती करने की राह भी खोल दी है। शुरू में ये कम्पनियां अच्छे पैसे भी देंगी। एक बार विशालकाय कम्पनियों की पकड़ खेती पर हो गई तो फिर किसानों को ठेके के वो भाव भी नहीं मिलेंगे जो आज मिलते हैं। पर खतरा केवल इतना नहीं है। दांव पर खेती किसानी नहीं, देश की अन्न सुरक्षा एवं पूरी अर्थव्यवस्था है।
किसान हितैषी होने के पंजाब सरकार के दावे इसलिए भी खोखले नज़र आते हैं क्योंकि इसमें एपीएमसी मंडी सुधार के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। अगर बाकी विरोधी दलों की सरकारें भी पंजाब जैसे लचर कानून पास करती हैं तो ये लीपापोती होगी। न इससे किसानों का भला होने वाला है और न मोदी विरोध प्रभावी होगा।